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आतंकवाद मिटाकर रहेंगे-जितेन्द्र तिवारीरैली में आए लोगों का अभिनंदन करते हुए (बाएं से) श्री वेंकैया नायडू, श्री जसवंत सिंह, श्री राजनाथ सिंह,श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लालकृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी एवं श्रीमतीसेकुलर तालिबानी मीडिया ने की उपेक्षाभारतीय जनता पार्टी की बहुत समय बाद यह एक जबरदस्त रैली थी। इसमें आसपास के राज्यों से दस हजार से अधिक बसें आईं। पिछले कुछ वर्षों में संसद मार्ग पर आए दिन होने वाली रैलियों में यह अब तक की सबसे विशाल रैली कही जा सकती थी। रैली के बाद संसद मार्ग थाने के प्रभारी ने स्वयं मंच पर आकर घोषणा की कि वे भाजपा के 166 सांसदों सहित एक लाख से अधिक संख्या में आए लोगों की गिरफ्तारी नहीं कर सकते क्योंकि जेलों में इतनी जगह नहीं है। रैली में भाजपा के शीर्षस्थ नेता मौजूद थे और विषय भी देश की सुरक्षा से जुड़ा था। पर आश्चर्य है अधिकांश समाचार चैनलों ने इस रैली को अपनी खबरों में शामिल तक नहीं किया। कुछ लोग इसे समाचार चैनलों का “सेकुलरवाद” कह रहे हैं तो कुछ का कहना है कि मीडिया पर मैडम सोनिया का भारी दबाव है। अगले दिन, समाचार पत्रों ने भी आतंकवाद को प्रमुख मुद्दा बनाने की बजाय रैली के कारण से हुए जाम और लोगों की परेशानियों तथा रैली के एक मंच टूट जाने की खबर को प्रमुखता दी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं श्री आडवाणी के वक्तव्यों को आठवें, नवें पृष्ठ पर स्थान दिया।आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मानो लोग उमड़ ही पड़े थे उस दिन। न आतंकवाद से कोई भय, न खुद की कोई चिंता। बस राष्ट्र की सुरक्षा के लिए पैदल-पैदल संसद भवन तक का मार्च और केन्द्र में शासन कर रहे लोगों को चेतावनी “गद्दारों पर मत रहम दिखाओ, अफजल को फांसी लगाओ”, “वंदेमातरम् से शर्माते-आतंकी को गले लगाते”, “नो माफी दो फांसी” और “राष्ट्रवादियों में खोट दीखते आतंकवादियों में वोट दीखते।” जितना लोगों में आतंकवादियों के विरुद्ध गुस्सा था उससे कहीं अधिक उनसे निपटने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा अपनाई जा रही ढुलमुल नीति को लेकर आक्रोश। देशवासियों के इस दु:ख और आक्रोश को प्रकट करने के लिए ही भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा संकल्प मार्च का आयोजन किया था। जिन स्थानों पर आतंकवादियों ने हमले किए, विशेषकर अयोध्या, वाराणसी, बंगलौर, मुम्बई, अमदाबाद और जम्मू आदि, वहां हुई संकल्प रैलियों के बाद 22 नवम्बर को नई दिल्ली में इस अभियान की पूर्णाहुति हुई। विभिन्न राज्यों के एक लाख से अधिक लोग इस रैली में सम्मिलित हुए। दिल्ली में दो स्थानों से प्रारंभ हुई इस रैली का समापन संसद मार्ग पर हुआ जहां एक जनसभा आयोजित की गई थी। जनसभा को पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह, वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता श्री जसवंत सिंह, पूर्व अध्यक्ष श्री वेंकैया नायडू एवं लोकसभा में भाजपा के उपनेता श्री विजय कुमार मल्होत्रा सहित अनेक वरिष्ठ नेताओं ने सम्बोधित किया। रैली में आंतरिक सुरक्षा पर एक प्रस्ताव भी लाया गया जिसे श्रीमती सुषमा स्वराज ने प्रस्तुत किया और लोगों ने ध्वनि मत से इस प्रस्ताव को पारित किया।इससे पूर्व बिड़ला मंदिर से प्रारंभ हुई रैली का नेतृत्व श्री राजनाथ सिंह ने किया जबकि राजघाट से प्रारंभ हुई रैली का नेतृत्व श्री लालकृष्ण आडवाणी कर रहे थे। रैली में भाग लेने के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराञ्चल, राजस्थान, बिहार, हरियाणा तथा पंजाब के भाजपा कार्यकत्र्ता बसों तथा रेलगाड़ियों से यहां पहुंचे थे। संसद मार्ग से लेकर कनाट प्लेस तक का चौड़ा मार्ग भाजपा के झंडों और पोस्टरों से पटा पड़ा था। इस विराट जनसागर को देखकर पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि यह केन्द्र सरकार के लिए चेतावनी है कि वह आतंकवाद से लड़ने की अपनी वर्तमान नीति बदले अन्यथा जनता उनकी सरकार ही बदल देगी। श्री वाजपेयी ने केन्द्र में सत्तारूढ़ संप्रग सरकार को कमजोर और दिग्भ्रमित बताते हुए कहा कि देश इनके हाथों में सुरक्षित नहीं है। कुछ दिनों बाद ही संसद भवन पर हमले की पांचवीं वर्षगांठ मनाई जाएगी तब इस सरकार में शामिल लोग अपने दिल पर हाथ रखकर सोचें कि वे उस हमले के प्रमुख आरोपी को माफी दिलाने की बात कहकर क्या देश की सुरक्षा के प्रति अपने दायित्व को पूर्ण कर रहे हैं? उन्होंने सरकार से पूछा कि वह बताए कि आतंकवाद के विरुद्ध उनकी नीति क्या है?इससे पूर्व जनसभा को सम्बोधित करते हुए श्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस विराट रैली की तुलना कच्छ एवं गोवध आंदोलन के समय हुई रैलियों से की। उन्होंने कहा कि इस रैली में लोगों ने जो अभूतपूर्व उत्साह प्रकट किया है वह इस बात का संकेत देता है कि देश की सुरक्षा को लेकर जनमानस कितना आंदोलित है। उन्होंने कहा कि संसद भवन पर जो हमला हुआ यदि वह सफल हो जाता तो वह विश्व के आतंकवादी इतिहास की सबसे बड़ी घटना होती। श्री आडवाणी ने सुरक्षाकर्मियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि उनके कारण ही हम सब सुरक्षित हैं। वे इतना कम वेतन लेकर भी देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देते हैं। उन्होंने कहा कि अफजल को फांसी दिए जाने के निर्णय को लटकाए रखना सुरक्षाकर्मियों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव डालेगा। उन्होंने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और संप्रग की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी से मांग की कि वे रैली समाप्त होने के बाद स्पष्ट करें कि वे अफजल को फांसी देने का समर्थन करते हैं अथवा माफी देने के पक्ष में हैं।भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने इस रैली को देशभक्तों का मेला बताते हुए कहा कि अभी हम चेतावनी देने आए हैं और यदि सरकार ने आतंकवाद से निपटने की इस लचर नीति का त्याग नहीं किया तो अगली बार दस लाख से अधिक लोगों के साथ भाजपा संसद का घेराव करेगी और इस कमजोर सरकार को उखाड़ फेंकेगी। उन्होंने कहा कि यह सरकार मजहबी आधार पर आरक्षण, सच्चर कमेटी के गठन, नौकरियों, विशेषकर सेना में हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर गणना करके इस देश को फिर से मजहबी जुनून की आग में झोंक देना चाहती है।23 नवम्बर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही भाजपा ने अफजल मुद्दे पर सरकार को घेरा। भाजपा के सांसद पूछ रहे थे कि सरकार बताए कि वह अफजल को फांसी दिए जाने का मामला क्यों लटकाए हुए है? उल्लेखनीय है कि अफजल के परिजनों द्वारा राष्ट्रपति से की गयी दया की याचिका को उन्होंने गृह मंत्रालय भेज दिया है, जिस पर केन्द्रीय मंत्रिमण्डल को ही अंतिम निर्णय लेना है।41
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