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हीनता हिंसा से भी हीन-मैथिलीशरण गुप्त (जय भारत, सर्ग 41)भाजपा की प्रखर धार और देशहित-निरपेक्ष सेकुलरचाहे अरुणाचल पर चीन के असामयिक एवं अवैध दावे का विरोध हो या अफजल जैसे गद्दार को माफी के विरोध का प्रश्न हो, केवल भाजपा ही राजनीति में राष्ट्रीयता की सशक्त आवाज बनी हुई है। आश्चर्य तो इस बात का है कि जब चीन के भारत स्थित राजदूत ने अरुणाचल पर अपने देश की घिसी-घिसाई, तर्कहीन दावेदारी मीडिया के सामने रखी तो भी भारत सरकार के किसी प्रतिनिधि ने उसका उसी समय जवाब नहीं दिया और न ही भारत के विदेशभक्त कम्युनिस्टों ने इसके सम्बंध में मुंह खोला।हालांकि चीन और भारत के संबंध तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से भी पहले से हैं और सिवाय सन् 62 के कभी युद्ध भी नहीं हुआ है। परंतु भारत ने अपनी सदाशयता के कारण चीन से जो धोखा खाया उसे भूल कर संबंध बनाने का अर्थ होगा पुन: धोखे की तैयारी। कूटनीति केवल अपने राष्ट्रहितों पर निर्भर होती है। इसलिए सन् 62 के बाद चीन द्वारा लगातार पाकिस्तान को समर्थन देने का पहलू भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चीन को लगता है कि भारत अपनी लोकतांत्रिक ताकत के बल पर महाशक्ति बन रहा है, इसलिए भारत की क्षेत्रीय स्थिति नियंत्रित करने के लिए उसने एक ओर पाकिस्तान दूसरी ओर पूर्वी एशियाई देशों के साथ आर्थिक और सैन्य संबंध गहरे बनाए हैं। ऐसी स्थिति में भारत की राजनीतिक पार्टियों को चाहिए था कि वे सब मतभेद भूलकर देश की संप्रभुता और भौगोलिक एकता के संबंध में एकजुट रूख अपनातीं। लेकिन भारत के सेकुलर दल फिलिस्तीन और दक्षिण अफ्रीका के बारे में एक हो सकते हैं, अपने देश के बारे में नहीं।ऐसी स्थिति में भाजपा ही एकमात्र राजनीतिक दल है जिसने भारत माता के दु:ख को बिना लाग-लपेट के प्रकट करने का दम दिखाया और चीन के दावे का जोरदार विरोध किया। इसी के साथ अफजल को माफी दिए जाने के गर्हित कृत्य का विरोध भी केवल भाजपा कर रही है। माकपा सहित बाकी बुजदिल सेकुलर पार्टियां अफजल के बहाने अपने वोट बैंक तलाश रही हैं। उन्हें न तो कारगिल विजय दिवस याद रहता है, न ही चुशूल के भयंकर संग्राम के वीर मेजर शैतान सिंह की शहादत और कुमाऊं रेजीमेंट का पराक्रमी शौर्य। देशभक्ति के आधार पर राष्ट्रीय राजनीति का अध्याय भाजपा ही लिख रही है। उन सेकुलर तालिबानी राजनीतिक दलों के साथ खुद को वस्तुनिरपेक्ष और स्वतंत्र कहने वाले तथाकथित मीडिया को भी सोचना चाहिए कि सत्ता के इतने पिछलग्गू होने का क्या अर्थ है जब इससे उनकी साख पर ही बट्टा लग रहा हो। इस देश का मानस और काल भाजपा के साथ है। भाजपा ने पहले भी देखा है कि जब भी उसने राष्ट्रीयता के प्रश्नों पर निर्भीक रवैया अपनाया है, भारत की जनता ने सेकुलर मीडिया और उसके अभिभावकों को धता बताते हुए पार्टी का साथ दिया है। अगर वह आज भी अपने मुद्दों पर छायी धूल पोंछकर बिना किसी सेकुलर क्षमा भाव के राष्ट्रीयता का संघर्ष जारी रखे, तो उसके प्रवाह को कोई रोक नहीं सकेगा।श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी समारोह- जनता भेदभाव नहीं मानतीदेश भर में परमपूज्य श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी समारोह मनाए जा रहे हैं और इसी सन्दर्भ में प्राय: हर क्षेत्र में हिन्दू सम्मेलन भी आयोजित हो रहे हैं। राजनीतिक विद्रूपताओं और स्वार्थों से दूर इन सम्मेलनों में भारत के मन का दर्द और आकांक्षाएं प्रकट हुई हैं। तमिलनाडु में तो संघ के कार्यक्रमों में भाग लेकर द्रविड़ कषगम के कार्यकर्ता इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ के कार्यकर्ताओं को अपने शैक्षिक संस्थानों में आकर प्रेरक उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया। जाति और भेदभाव से परे हटकर श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष और समरसता कार्यक्रम समाज पर एक अनूठी छाप छोड़ रहे हैं और भारत के भविष्य में एक ऐसी आशा जगा रहे हैं जो किसी सेकुलर प्रपंच या राजनीतिक तमस से प्रभावित होने वाली नहीं है। इन कार्यक्रमों का मूल मंत्र एक ही है कि सब समाज को लिए साथ में आगे है बढ़ते जाना। ये समाज मेरा है, मेरा उसके प्रति कुछ दायित्व है, अपना और परिवार का पालन-पोषण करने के साथ ही समाज के प्रति अपने-अपने कर्तव्य का निर्वाह किये बिना मेरा जीवन अधूरा रहेगा, इस भावना के साथ देश के हर तालुका स्तर तक स्वयंसेवक जन्मशताब्दी का संदेश लेकर पहुंच रहे हैं और हर क्षेत्र में उन्हें अद्भुत सकारात्मक अनुभव हो रहे हैं। भेदभाव और विचारधारा के आधार पर मनभेद एवं अस्पृश्यता सेकुलर अफजल-वादियों की पहचान है। देश की जनता तो उसके साथ रहती है जो भारत के साथ है।6
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