|
-डा. दयाकृष्ण विजयवर्गीय “विजय”
कहां तक झूठ जीवन में जियोगे बोलिये,
कहां तक रक्त जनता का पियोगे बोलिये।
खड़े अलकायदी हैं आज साक्षी बन यहां,
कहां तक सत्य झुठलाते रहोगे बोलिये।
नहीं देखे कहीं भी पांव होते झूठ के,
मुखौटों से जगत कब तक छलोगे बोलिये।
नहीं बंदूक से कोई समस्या हल हुई,
कहां तक अंध गलियों में डुलोगे बोलिये।
समय हठधर्मिता का अब नहीं जग में रहा,
नहीं क्या पक्ष अन्यों का सुनोगे बोलिये
जहां जिसको लगे अच्छा रहे जनतंत्र है,
मजहबी बल बता कब तक ठगोगे बोलिये।
29
टिप्पणियाँ