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खतरे में खेती
गोवंश आधारित कृषि से बदलेगा भारत का भविष्य
“देश के किसान परंपरागत कृषि को बचाने के लिए आगे आएं, गोवंश का संरक्षण करें। गोवंश आधारित जैविक खेती और धर्म के आधार पर ही भविष्य का भारत वैभव-सम्पन्न और समृद्ध होगा।” यह कहना था रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन का। श्री सुदर्शन गत दिनों अकोला में ग्रामीण गोवंश प्रमुखों के प्रशिक्षण वर्ग को सम्बोधित कर रहे थे। वर्ग का आयोजन आदर्श गोसेवा एवं अनुसंधान प्रकल्प, अकोला (महाराष्ट्र) द्वारा किया गया था। श्री सुदर्शन ने कहा कि रासायनिक खाद के अत्यधिक प्रयोग ने हमारे खेतों की उत्पादन क्षमता को नष्ट कर दिया है, हमारी खेती आज खतरे में है। कृषि पर लागत मूल्य बढ़ गया है, इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, किसान इसके लिए कर्ज लेता है और ऋण न चुका पाने पर अंतत: वह आत्महत्या की ओर बढ़ जाता है।
श्री सुदर्शन ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरोध का आह्वान किया और कहा कि वे हमारी खेती पर नजरें गड़ाए बैठे हैं। उनके कारण हमारी खेती महंगी हो गई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब खेती को अपनी आय बढ़ाने के लिए उपयोग करने में जुटी हैं, ऐसी परिस्थिति में कृषकों को स्वावलंबन की ओर बढ़ना होगा। जैविक खेती, गोवंश तथा परंपरागत तकनीकी का खेती में प्रयोग करने से किसान बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मायाजाल से स्वयं को बचा सकते हैं। श्री सुदर्शन ने किसानों की आत्महत्या के लिए सरकार की किसान विरोधी नीतियों को भी दोषी ठहराया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन के प्रमुख वैज्ञानिक डा. देवेन्द्र कुमार सदाना ने कहा कि हमारी परंपरा हमें गाय को माता मानना सिखाती है। विज्ञान अब गाय के दूध, गोमूत्र और गोबर के महत्व को समझने लगा है। गोदुग्ध और गोमूत्र दोनों कीटाणुनाशक और जीवाणु प्रतिरोधी हैं। गोमूत्र का उपयोग औषधि के रूप में सिद्ध है। देसी गाय का संरक्षण और संवर्धन समय की मांग है।
विश्व हिन्दू परिषद् के संयुक्त मंत्री श्री हुकुमचंद सांवला ने कहा कि गोसेवा और गोसंरक्षण से भारत का भाग्य बदल जाएगा। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध रामायणाचार्य संजय महाराज पाचपोर ने कहा कि गोहत्या रोकने के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है। विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य श्री दायमा महाराज ने कहा कि गाय को राष्ट्रीय प्राणी घोषित किया जाना चाहिए।
छूत-अछूत का भाव मिटाएं
उधर बेलगाम (कर्नाटक) में समरसता भवन का भूमि पूजन करने के उपरांत आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए श्री सुदर्शन ने कहा कि समाज में सर्वत्र समरसता फैले, ऊंच-नीच, छूत-अछूत आदि भावनाएं मिटें, इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही श्रीगुरुजी ने विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना करायी थी। 1969 में उड़ुपी में कर्नाटक प्रान्त के धर्म सम्मेलन में सभी धर्माचार्यों ने समरस समाज निर्माण करने के लिए ही “हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत” की उद्घोषणा की। गत 13 नवम्बर को बेलगाम में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा निर्मित किए जाने वाले “समरसता भवन” के भूमि पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। श्री सुदर्शन ने बताया कि विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना का विचार श्रीगुरुजी के मन में बेलगाम प्रवास के दौरान ही आया था। श्री सुदर्शन ने आशा व्यक्त की कि समरसता-भवन हिन्दू समाज में समरसता लाने का महत्वपूर्ण केन्द्र बनेगा। इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद् के जिलाध्यक्ष श्री एस.एम. कुलकर्णी ने भवन निर्माण के लिए भूमि प्रदान करने वाले जन कल्याण न्यास के न्यासियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में श्री शशिकांत नाइक, श्री सुरेश अंगड़ी, श्री अभय पाटिल, श्री बाबू राव देसाई, डा. जी.एच. नरगेल, श्री मनोहर चौगुले सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि
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