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भारत के लिए पाकिस्तान से बड़ा खतरा है चीन
रिचर्ड फिशर एशियाई मामलों के सुप्रसिद्ध अमरीकी अध्येता हैं। विशेषकर चीन के सन्दर्भ में उनके अध्ययन को अमरीका में काफी मान्यता मिली है। वे कई बार अमरीका-चीन सम्बंधों के बारे में अमरीकी संसद की विदेश सम्बंध समिति के समक्ष अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। कुछ समय पूर्व “रीडिफ डाट काम” की वरिष्ठ संपादक सुश्री शीला भट्ट से बातचीत में उन्होंने भारत और चीन के संबंधों पर अपनी बेबाक टिप्पणी दी। यहां प्रस्तुत हैं उसी साक्षात्कार के मुख्य अंश -सं.
चीन के संदर्भ में आप राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भारत की परेशानी को किस रूप में आंकते हैं?
चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति को लेकर भारत की चिंता उचित है। पाकिस्तान के आण्विक बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र चीन के द्वारा ही दिए गए हैं। उसे संपूर्ण प्रक्षेपास्त्र तकनीकी चीन ने उपलब्ध कराई है। चीन पाकिस्तान को हथियारों की दृष्टि से सबल देश बनाने पर तुला है। यह केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए खतरा है। इधर उत्तर कोरिया के साथ पाकिस्तान ने प्रक्षेपास्त्र क्षेत्र में जो रक्षा-सहयोग किया है, वह भी मूलत: चीनी तकनीकी पर आधारित है।
लेकिन अमरीका भी तो पाकिस्तान को पूरा सहयोग कर रहा है?
यह सहयोग समीचीन है। भारत को पाकिस्तान को मिल रहे अमरीका और चीन के सहयोग में अन्तर को समझना चाहिए। यदि हम पाकिस्तान को सहयोग बन्द कर देंगे तो वह पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। इससे भारत के पड़ोस में पनपने वाली अराजकता, अस्थिरता भयानक रूप ले लेगी और आतंकवाद का रूप और वीभत्स हो जाएगा। पाकिस्तान जिन्दा रहे, उतना ही सहयोग हम उसे देते हैं। लेकिन अमरीका ने आंखों पर पट्टी नहीं बांध रखी है कि पाकिस्तान कुछ भी करे और हमें उसकी चिंता न हो। पाकिस्तान भविष्य में लोकतांत्रिक देश बने और वहां से आतंकवाद का खात्मा हो सके, इस बारे में भारत के पास यदि कोई उपाय होगा तो हम उस पर पूरा सहयोग करेंगे।
चीन का सैन्य विस्तार भारत की सुरक्षा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
मेरा अनुमान है कि इस दशक के अंत तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पास लगभग 1000 से 2000 तक शार्ट रेंज बैलेस्टिक और क्रूज प्रक्षेपास्त्र हो जाएंगे। यह सभी पूरे चीन में आसानी से गाड़ियों या फिर हवाई मदद से कहीं भी ले जाए जा सकते हैं। भारत को इसकी प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त करनी चाहिए किन्तु यह बहुत जटिल और महंगा सिद्ध होगा। जहां तक मुझे मालूम है, भारत सरकार ने इसके लिए प्रयास किए थे। भारत को इस्रायल की एन्टी-बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली या रूस के एस 300 वी सिस्टम को देखना चाहिए। वैसे भारत और अमरीका के बीच भी इस सन्दर्भ में बात चल रही है। मैं समझता हूं कि चीन के प्रक्षेपास्त्र खतरे से बचने के लिए कुछ उपाय जल्द निकल आएगा।
क्या आप मानते हैं कि भारत-चीन के आर्थिक और व्यापारिक रिश्ते दोनों देशों के बीच तनाव को कम कर सकेंगे?
मैं इस सन्दर्भ में ताईवान का उदाहरण दूंगा। ताईवान आज एक आधुनिक एवं समृद्ध आर्थिक देशों में है, इसने चीन में भारी निवेश भी किए हैं लेकिन इन अन्तर्सम्बंधों और परस्पर मेल के बावजूद चीन की ताइवान के प्रति साम्राज्यवादी दृष्टि में कोई अन्तर नहीं आया है। बीजिंग आज भी लोकतांत्रिक ताईवान की स्वतंत्रता पसंद नहीं करता। इस बात को ध्यान में रखें कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां की सरकार देश में स्वतंत्रता के मूल्यों को प्राथमिकता देती है जबकि बीजिंग में जो सरकार है वह कम्युनिस्ट पार्टी और पोलित ब्यूरो द्वारा नियंत्रित है। वे हमेशा भारत को संदेह और घोर शत्रुता की दृष्टि से देखते हैं। भारत की सुरक्षा को कमजोर करना ही उनका उद्देश्य है।
क्या आप मानते हैं कि चीन अब बदल रहा है?
कुछ मायनों में चीन बदला है। पर उसे अभी बहुत अधिक बदलना है। बीजिंग में कट्टर कम्युनिस्ट शासन है और उसने अपने विरुद्ध उठने वाली किसी भी आवाज को तथा अल्पसंख्यकों को सदा ही कठोरता से दबाया है। चीन जैसे-जैसे शेष विश्व के साथ संबंध बढ़ाएगा, उसे अपना सैन्यशक्ति का स्वरूप बनाए रखना कठिन होगा।
अमरीकी दृष्टि से आप भारत के सन्दर्भ में पाकिस्तान और चीन के खतरे को कैसे देखते हैं?
चीन भारत के लिए पाकिस्तान से ज्यादा बड़ा खतरा है क्योंकि पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध पैदा की जा रहीं आधी समस्याएं तो चीन ने ही पैदा की हैं।
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