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Mar 9, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Mar 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 6 अगस्त, 2006पञ्चांगसंवत् – 2063 वि.- वार – ई. – सन् 2006 भाद्रपद शुक्ल 10 रवि 3 सितम्बर ,, 11 सोम 4 ,, ,, 12 मंगल 5 ,, ,, 14 बुध 6 ,, भाद्रपद पूर्णिमा(चन्द्र ग्रहण) गुरु 7 ,, आश्विन कृष्ण 1 शुक्र 8 ,, (महालयारम्भ, प्रतिपदा श्राद्ध),, 2 शनि 9 ,, हैं भीषण रोगकोका-पेप्सी पी रहे, अब भी मूरख लोगखुला निमन्त्रण दे रहे, जो हैं भीषण रोग।जो हैं भीषण रोग, कौन समझाए उनकोफिक्र नहीं है छोटे बच्चों तक की जिनको।कह “प्रशांत” इनको पीकर बीमारी पालोमहंगी लेकर दवा, जेब उनकी भर डालो।।-प्रशांतजिहादी ढाका के सेकुलर आकाआवरण कथा “सुरक्षा बनी मजाक” के अन्तर्गत प्रकाशित रपटों से पता चलता है कि संप्रग सरकार देश की दृष्टि से खतरनाक बातों को जानबूझकर दबाना चाहती है। गृहमंत्री शिवराज पाटिल का बयान कि “मदरसे आतंक के केन्द्र नहीं, बल्कि समाज सेवा के केन्द्र हैं” अविश्वसनीय है, क्योंकि खुद उनके गुप्तचर अधिकारी मदरसों के बारे में कुछ और ही कहते हैं।-राजेश कुमार11552, गली सं. 1, नवीन शाहदरा (दिल्ली)”पहले घुसपैठ अब जमीन पर कब्जा” रपट पढ़कर लगा कि भारत, बंगलादेश के सामने भी बौना है। यहां की कमजोर सरकार बंगलादेश जैसे देश के कब्जे से भी अपनी 500 एकड़ जमीन मुक्त नहीं करा सकती। तमिलनाडु में व्यास नगर का लोकार्पण सेवा भारती की उज्ज्वल परंपरा के अनुरूप ही है। भिवानी में “राष्ट्र के समक्ष चुनौतियां” विषय पर रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री मधुभाई कुलकर्णी का विश्लेषण प्रशंसनीय है। “श्रीलंका में अशोक वाटिका का जीर्णोद्धार” समाचार इस अंक का सबसे बड़ा आकर्षण रहा। जीर्णोद्धार अभियान चलाने वाले श्री अशोक कैंथ ने नवयुग के हनुमान की भूमिका निभाई है। भगवान श्रीराम इनके संकल्प को पूरा कराएं! समाज को भी मंदिर उद्धार के कार्य में सहयोग देकर राम कार्य में सहभागी बनना चाहिए।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)सच में हमारे देश की सुरक्षा निकम्मी संप्रग सरकार के हाथों में मजाक बनकर रह गई है। तमाम तरह की सुख-सुविधाओं में डूबे हमारे नेता सदन में हल्ला मचाने और भाषण देने में ही माहिर हैं। देश की सुरक्षा एवं सम्मान से इनका कोई लेना-देना नहीं रह गया है। अत: नागरिकों को जागरूक होना होगा। संगठित होकर उन नेताओं पर दबाव डालना होगा कि वे घुसपैठिए और हमारी जमीन हड़पने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करें।-रामचंद्र शौचे12, जवाहर नगर, रतलाम (म.प्र.)श्री शाहिद रहीम का आलेख “मदरसों का आतंकवाद से रिश्ता सदियों पुराना” देश के हर नागरिक को पढ़ना चाहिए। गृहमंत्री शिवराज पाटिल द्वारा मदरसों को “क्लिन चिट” देना मुस्लिम वोटों को अपनी ओर खींचने का एक तरीका है। आज देश की सुरक्षा को कितना बड़ा खतरा है, इसका अंदाजा इन घटनाओं से लगाया जा सकता है- 1. प्रधानमंत्री के जहाज से शराब की बोतलें गायब हो रही हैं, 2. प्रधानमंत्री निवास में मदमस्त युवा बेरोकटोक घुस जाते हैं, और 3. गृहमंत्री अपने ही देश में सुरक्षा की कमी बताकर डोडा नहीं जा सकते।-दिलीप शर्मा114/2205, एम.एच.वी. कालोनी,कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)जसवन्त जी विस्तार से बताएंश्री जसवन्त सिंह की पुस्तक “ए काल टू आनर-इन सर्विस आफ इमर्जेंंट इण्डिया” की श्री तरुण विजय द्वारा की गई समीक्षा से पता लगा कि श्री जसवन्त सिंह को जिन बातों पर गर्व करना चाहिए था, उन पर वे पश्चाताप करने में लगे हैं। उन्हें अपनी 426 पृष्ठ की भारी-भरकम किताब में कंधार प्रकरण, प्रधानमंत्री कार्यालय में जासूस तथा आपरेशन पराक्रम के विषय में विस्तार से बताना चाहिए था। पुस्तक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरसरी तौर पर जिक्र करना उनकी बेबाकी को संदिग्ध बनाता है।-नितिन पुण्डीरएस-139, पल्लवपुरम, फेज-2, मोदीपुरम, मेरठ (उ.प्र.)श्री जसवंत सिंह कोई साधारण व्यक्ति या लेखक नहीं हैं। इसलिए उन्हें कोई बात कहने या लिखने से पूर्व अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। नहीं तो लोग उस राजनीतिक दल को भी अच्छी दृष्टि से नहीं देखेंगे, जिससे वे जुड़े हैं। उनका दल केवल दल नहीं, बल्कि एक “मिशन” है। उस “मिशन” को सफल बनाने के लिए बहुत तपस्वी लोग लगे हैं। इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी एक व्यक्ति के कारण “मिशन” को कोई क्षति न पहुंचे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री जसवंत सिंह का यह कहना कि वे अधिकारियों के दबाव में आ गए और तीन आतंकवादियों को कंधार ले जाकर छोड़ना पड़ा, किसी के गले नहीं उतरता। और यदि यह सही है तो शर्म की बात है।-राकेश गिरिरूड़की, हरिद्वार (उत्तरांचल)यह जानकर बड़ा दु:ख हुआ कि आपरेशन पराक्रम रुकवाने में तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री जसवन्त सिंह की भूमिका रही है। उल्लेखनीय है कि संसद पर आतंकवादी हमले के बाद पूरा देश एक साथ खड़ा था। हमारी सेना भी पराक्रम दिखाने के लिए पाकिस्तान से लगी सीमा पर तैनात हो गई थी। किन्तु सेना वहां लगभग एक साल तक तैनात रहकर वापस आ गई। श्री सिंह कहते हैं कि उन पर अधिकारियों का दबाव था। क्या यही है हमारे देश के कर्णधारों का रवैया?-सुमेश गोयलहनुमान गली, फतेहपुर सीकरी, आगरा (उ.प्र.)भांजा नहीं, भाईश्री वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु” के लेख “आजाद हैं हम और आजाद ही रहेंगे” में चन्द्रशेखर आजाद के अंगरक्षक के रूप में स्व. विश्वनाथ वैशंपायन का उल्लेख किया गया है। विद्वान लेखक ने इसमें मेरा भी जिक्र करते हुए लिखा है, “इनके भांजे झांसी के श्री ओंकार भावे से भी मेरा सम्बन्ध रहा है…।” वास्तविकता यह है कि मैं स्व. विश्वनाथ वैशंपायन का नहीं अपितु उनके स्व. पिताजी का भांजा हूं। उनकी बुआ का पुत्र होने के नाते उनका भाई हूं। काफी पुरानी बात होने के कारण त्रिपाठी जी को विस्मरण हो जाना स्वाभाविक है।-ओंकार भावेसंकट मोचन आश्रम, सेक्टर-6,रामकृष्णपुरम (नई दिल्ली)आन्तरिक व्यथाचर्चा सत्र में श्री मुजफ्फर हुसैन के लेख “मुम्बई के जागरूक मुस्लिम नेता जिहादी जड़ों पर गौर करें” में उनकी आन्तरिक व्यथा उजागर हुई है। मुम्बई के सजग मुस्लिम नागरिक जिहादी जड़ों को लेकर कुछ कहें भी तो उनकी बातों का शायद ही असर हो। लेखक को देवबंदी मुल्लाओं, मुफ्तियों और फाजिलों से ऐसा आग्रह करना चाहिए था। बरेलवी मुल्ला-मौलवी भी इस्लामी जगत में ज्यादा मुखर हैं। “जिहाद” और “फिदाइन” जैसे शब्दों की व्याख्या करने में यही लोग आगे रहते हैं। किन्तु यह विडम्बना है कि इन लोगों ने आज तक किसी जिहादी कार्रवाई के खिलाफ कुछ नहीं कहा।-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया,कोडरमा (झारखंड)घिनौना खेलसम्पादकीय “वोट बैंक राजनीति का विषफल” से स्पष्ट होता है कि कांग्रेस आज भी वही घिनौना खेल खेल रही है, जो वह अंग्रेजों के समय खेलती थी। गृहमंत्री शिवराज पाटिल मदरसों की तारीफ करते हैं। जबकि गुप्तचर विभाग की रपट स्पष्ट कहती है कि मदरसों में राष्ट्र-विरोधी शिक्षा दी जा रही है। यही नहीं, विस्फोटक पदार्थ एवं हथियार भी एकत्रित किए जा रहे हैं। गृहमंत्री इस रपट को नकार रहे हैं। यानी कांग्रेस येन-केन प्रकारेण कुर्सी बनाए रखने का खेल चल रही है।-ऋषिदेवपुनाईचक, पटना (बिहार)सनातन शक्तिराष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका श्रीमती प्रमिला ताई मेढ़े ने अपने साक्षात्कार में बिल्कुल सही कहा है कि नारी को अपनी शक्ति पहचाननी होगी। यह उचित होगा कि भारतीय नारी अपनी सनातन शक्ति को पहचाने और उसका भान उसे हर समय रहे। भारत में नारी को उच्च स्थान दिया गया है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस अपनी धर्मपत्नी श्रीमती शारदा देवी को “मां” कहकर पुकारते थे। भारतीय नारी पश्चिमी जगत का अनुकरण न ही करे, तो अच्छा रहेगा, अन्यथा उसकी शक्ति कमजोर होगी।-प्रदीप सिंह राठौरमेडिकल कालेज, कानपुर (उ.प्र.)सराहनीय प्रयासश्री राकेश सैन की रपट “श्रीलंका में अशोक वाटिका का जीर्णोद्धार” पढ़ी। जीर्णोद्धार के प्रयास में लगे श्री अशोक कैंथ के प्रयासों की सराहना करनी होगी। विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने हार नहीं मानी और श्रीलंका सरकार से बातचीत कर कोई हल निकालने में जुट गए। अभी भारत में इस संदर्भ में कोई प्रचार-प्रसार नहीं है। यदि प्रचार हो तो बड़ी संख्या में भारतीय श्रद्धालु श्रीलंका जाएंगे। हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित अनेक तीर्थस्थलों का जीर्णोद्धार होना बाकी है। इसके लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आना होगा।-गोविन्द खोखानीप्रज्ञा ज्योति, न्यू वास, पो. मधापर, कच्छ (गुजरात)पशु बलि?सरोकार स्तम्भ में श्रीमती मेनका गांधी ने कहा है, “अशुभ है पशु बलि”। यह कार्य सिर्फ इसलिए होता है कि मन्दिर के पुजारी और कार्यकर्ता उस मांस को बेचकर पैसा कमाएं।” क्या केवल मन्दिर में दी जाने वाली पशु बलि अशुभ होती है? बकरीद के समय तो लाखों ऊंट, बकरे काटे जाते हैं। कोई उनका विरोध क्यों नहीं करता?-दत्ता भाई904, एल.जी. नगर, विश्रामपुरा,वडोदरा (गुजरात)पुरस्कृत पत्रसंस्कृत चैनल क्यों नहीं?संप्रग सरकार ने 15 अगस्त को देश को दूरदर्शन के उर्दू चैनल के रूप में एक ऐसा “तोहफा” दिया है, जिससे करोड़ों हिन्दुओं के घाव पुन: हरे हो गए हैं। उल्लेखनीय है कि 1938 से 1945 के बीच राष्ट्र भाषा आन्दोलन चला था। इसमें उर्दू के नाम पर जिहादियों ने पाश्विक तांडव किया था और पूरे देश में हिन्दुओं को निशाना बनाया गया था। एक तो पहले ही हमारी सरकार उर्दू शिक्षकों एवं मदरसों को विशेष सुविधा दे रही है। दूसरी ओर, सूत्रों का कहना है कि मदरसों में पढ़ने वालों की संख्या घटती जा रही है और जो पढ़ रहे हैं, वे जिहाद की तालीम पा रहे हैं। जब दूरदर्शन का एक प्रमुख चैनल डी.डी. 2 घाटे के कारण बंद कर दिया गया हो तो इस उर्दू चैनल के सफल होने की क्या गारंटी है? इसे कौन लोग देखेंगे? कट्टर से कट्टर इस्लामी देशों में इस्लाम व कुरान के आधार व नाम पर तो चैनल शुरू किये गये हैं, मगर भाषा को आधार बनाकर शुरू किया गया शायद यह पहला चैनल है। यदि यह चैनल घाटे में जाएगा, तो इसका बोझ कौन उठाएगा? स्पष्ट है भारतीय करदाताओं पर इसका बोझ पड़ेगा। जिस देश की आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है, उस देश में ऐसे चैनल की क्या आवश्यकता है? यह मत भूलिए कि पाकिस्तान की मांग के मूल में उर्दू जुबान भी थी। आश्चर्य है कि 543 सांसदों में से किसी में भी यह कहने की हिम्मत नहीं है कि “उर्दू चैनल क्यों” और अगर उर्दू चैनल हो तो फिर संस्कृत चैनल क्यों नहीं?-अभिजीत ” प्रिंस”इन्द्रप्रस्थ, मझौलिया, मुजफ्फरपुर (बिहार)हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।-सं.4

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