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-दिल्ली ब्यूरो
मौलाना फिजूल विवाद न खड़ा करें
-फरीद भाई, कोटा
कोटा के रहने वाले हैं फरीद भाई। पाञ्चजन्य का स्वतंत्रता दिवस विशेषांक पढ़ने के बाद उन्होंने दूरभाष पर बधाई दी और आग्रह किया कि आप वन्दे मातरम् के सन्दर्भ में भी विस्तार से सामग्री प्रकाशित करें, जिसमें आम मुसलमान की भावनाओं का भी जिक्र हो। इसी के साथ उन्होंने कहा कि वन्दे मातरम् मुसलमानों को कहीं से भी बुतपरस्त नहीं बनाता। इसके भाव को गहराई से समझने की जरूरत है। आजादी के आन्दोलन की तहरीक जब चल रही थी, लोगों में आजादी का जज्बा पैदा करने के लिए यह गीत गाया गया। इसे गाते हुए वतन पर मर मिटने की भावना अपने आप पैदा हो जाती है। इस्लाम की हदीस में कहा गया है कि अगर किसी मोमिन में मुल्कपरस्ती नहीं है तो वह पूरा मुसलमान नहीं है। 50 फीसदी ईमान का दर्जा मुल्कपरस्ती है। जो मुल्क-परस्त नहीं है, कौम परस्त नहीं है, वह अपने दीन और ईमान से दूर है। ये मोहम्मद साहब कह गए हैं। तो हमारे मौलाना वन्दे मातरम् पर फिजूल के विवाद न करें। पिछले 50 सालों से ऐसे विवादों ने आम मुसलमान को क्या दिया है? हमारे नेता मुसलमानों के आर्थिक हालात पर, शिक्षा पर सोचें, लेकिन उस पर तो सोचने की फुर्सत उन्हें है ही नहीं।
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