|
अव्यवस्था के दर्शन, असुविधाओं की छाप-इन्द्रजीत मल्होत्राउत्तराञ्चल की पहचान नि:संदेह यहां स्थित चार धामों-बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री से है। इन चारों पवित्र धामों की यात्रा करने की इच्छा भी प्रत्येक हिन्दू के मन में जीवन में एक बार अवश्य होती है। लेकिन यहां आने वाले तीर्थयात्रियों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, उनका यहां नितांत अभाव है। सुविधाएं न होने से तीर्थयात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गत 30 मई को मैंने जब यमुनोत्री की यात्रा की तो तीर्थयात्रियों को होने वाली परेशानियों को देखकर मन सिहर उठा। पर्यटन की दृष्टि से यह स्थिति उत्तरांचल के लिए शुभ नहीं है।यह बहुत दु:खद है कि यमुनोत्री मार्ग पर हनुमान चट्टी से जानकी चट्टी तक के आठ किलोमीटर मार्ग पर बस की सुविधा नहीं है। यहां आने वाले साधन संपन्न यात्री तो टैक्सियों का प्रयोग कर लेते हैं लेकिन निर्धन व मध्यम वर्गीय तीर्थयात्रियों को यह दुर्गम मार्ग पैदल ही पार करना पड़ता है। हालांकि इस मार्ग पर बसें उपलब्ध कराने की स्वीकृति सन् 2005 में होनी थी लेकिन जिला प्रशासन द्वारा कोई रुचि न लेने का खामियाजा तीर्थयात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। बस सुविधा की बात तो अलग है ही, इस पूरे मार्ग पर जगह-जगह गड्ढे बन चुके हैं जिसमें यात्रियों के निजी वाहन फंस जाते हैं। यात्रियों के लिए सुविधाओं की बात करें तो इस मार्ग पर निजी होटल तो जगह-जगह हैं लेकिन पर्यटन विभाग या जिला प्रशासन का एक भी बसेरा यहां नहीं है। इस कारण जो तीर्थयात्री पैदल यात्रा करते हैं उन्हें वर्षा व धूप की मार भी सहनी पड़ती है।यमुनोत्री मार्ग में जानकी चट्टी एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। पांच कि.मी. की कठिन यात्रा का दौर यहीं से प्रारंभ होता है। इसी स्थान पर सैकड़ों की संख्या में घोड़े-खच्चर खड़े रहते हैं। शासन की ओर से सहायता केंद्र उपलब्ध न होने के कारण घोड़ा-खच्चर मालिक एवं डण्डी वाले मनमानी करते हैं। इस कारण भी यात्रियों की समस्याएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। चार धाम यात्रा में यमुनोत्री यात्रा का पांच कि.मी. का यह चढ़ाई मार्ग ही सर्वाधिक दुर्गम है। पांच कि.मी. के इस मार्ग में शुरुआती दो कि.मी. का मार्ग पक्का बनाया गया है जबकि आगे का दो कि.मी. अभी निर्माणाधीन है। शेष बचा एक कि.मी. का मार्ग भी पक्का बना दिया गया है। यह स्थिति तब है जब केन्द्र सरकार द्वारा 3 करोड़ 18 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की जा चुकी है।निर्माणाधीन दो कि.मी. के 10 फीट चौड़े कच्चे मार्ग पर पैदल यात्री व घुड़सवार दोनों ओर से चलते हैं। बरसात में यहां की स्थिति इतनी विकट हो जाती है कि यात्री फिसलकर गिरने लगते हैं। पांच कि.मी. के इस मार्ग में लोक निर्माण विभाग द्वारा तीन-चार यात्री विश्राम स्थल जरूर बनवाए गए हैं लेकिन इनका निर्माण ऐसा है कि वर्षा में यहां खड़े होने पर भीगने से बचा नहीं जा सकता।यात्रा मार्ग में शौचालय जैसी अति आवश्यक सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई गई है। इससे बुजुर्ग और महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन निराशा की बात यह है कि प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी समस्या से आंखें मूंदे बैठा है। मार्ग पर हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है। घंटों जाम लगे रहने के बावजूद इसे नियंत्रित करने के लिए यहां पुलिस की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।यमुनोत्री मंदिर परिसर की स्थिति तो और भी अधिक चिंताजनक है। यह कालिन्दी पर्वत के नीचे स्थित है और इसके खिसकने का खतरा सदैव बना रहता है। सन् 2004 में कालिन्दी पर्वत के खिसकने से 6 तीर्थयात्रियों की मृत्यु भी हो चुकी है। लेकिन जिला प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। बताया गया कि कालिन्दी पर्वत की सम्भावित दुर्घटना को रोकने हेतु प्रवण चट्टानों आदि की कांट-छांट के लिए निविदाएं मंगाई गई थीं लेकिन सिंचाई विभाग द्वारा इस दिशा में आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई। वन विभाग ने भी इस खतरे को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जबकि यहां पौधे लगाकर दुर्घटना के खतरे को कम किया जा सकता था। यह अनदेखी घातक सिद्ध हो सकती है।यात्रा मार्ग और मंदिर परिसर में विद्युत व्यवस्था दयनीय है। यात्री रात में यात्रा करना पसंद करते हैं लेकिन प्रकाश का समुचित प्रबंध न होने से उन्हें अनेक परेशानियों से गुजरना पड़ता है। यह स्थिति तब है जब यमुनोत्री के जल से बिजली उत्पन्न कर केंद्र और राज्यों को दी जा रही है। पास में ही स्थित गरुड़ गंगा पर बना छोटा बिजलीघर भी ठीक से नहीं चल रहा है। “ऊर्जा अंचल” का दावा करने वाले उत्तरांचल के लिए यह स्थिति शर्मनाक है।मंदिर परिसर में स्थित तप्त कुण्ड के सौन्दर्यीकरण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है जबकि यह कुण्ड यात्रियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहां न तो रात में स्नान करने वाले यात्रियों के लिए प्रकाश की व्यवस्था है और न ही अन्य जरूरी सुविधाएं। यमुनोत्री यात्रा मार्ग में कहीं भी पर्यटन विभाग द्वारा सूचना पट नहीं लगाए गए हैं जबकि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह बहुत आवश्यक है।इन सभी समस्याओं का मैंने यमुनोत्री यात्रा के दौरान सामना किया है। इन पर तत्काल कार्रवाई की आवश्कता है। सरकार के पास धन की कमी नहीं है किन्तु सरकार द्वारा सुविधाएं उपलब्ध न कराना तीर्थयात्रियों के साथ अन्याय है। चार धाम यात्रा उत्तरांचल का गौरव है और यदि इसके लिए यात्रियों को पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं तो इससे होने वाली क्षतिपूर्ति की भरपाई नहीं की जा सकती। (पूर्व न्यायाधीश श्री इन्द्रजीत मल्होत्रा बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी रहे हैं। वे उत्तराञ्चलके विधि मंत्रालय में प्रमुख सचिव (विधि) का दायित्व भी निभा चुके हैं।)15
टिप्पणियाँ