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वाह! क्या खूब जमा मुकाबलादूसरे दौर में होगी जोर-आजमाइश-कन्हैया लाल चतुर्वेदीदमदार टक्कर- 21 जून को “समूह सी” की प्रतियोगिता में अर्जेंटीना के कारलोस टेवेज (दाएं) से बाल छीनने की कोशिश करते नीदरलैंड्स के खालिद बोलाहरूजजर्मनी में चल रहे विश्व-कप फुटबाल का लीग चरण पूरा हो चुका है। इन पंक्तियों के आप तक पहुंचने के समय क्वार्टर फाइनल के लिए आठ टीमें भी तय हो चुकी होंगी। निश्चित रूप से यह विश्व-कप 2002 के विश्व कप की तुलना में अधिक रोमांचक सिद्ध हुआ है। इस बार गोल भी अधिक हुए हैं और कांटेदार मुकाबले भी पहले से कहीं ज्यादा हुए हैं। श्रेष्ठ समझे जाने वाले कुछ देशों ने चमकदार प्रदर्शन किया है और ऊंचे पायदान वाली कुछ टीमें दर्शकों की वाहवाही नहीं लूट सकी। इसके विपरीत हल्की समझी जाने वाली टीमों ने मंत्रमुग्ध कर देने वाली फुटबाल खेली है।घाना, पश्चिमी अफ्रीका में ढाई करोड़ की आबादी वाला एक पिछड़ा देश है, किन्तु इसके खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि फुटबाल में वे अग्रिम पंक्ति के देशों में हैं। घाना के खिलाड़ियों की तकनीक और कला-कौशल देखते ही बनता था। विश्व वरीयता में इस समय ब्राजील सबसे ऊपर है तथा दूसरे पायदान पर चेक गणराज्य है। दुनिया की दूसरी सर्वश्रेष्ठ टीम को घाना ने फुटबाल का शानदार सबक सिखाया। 17 जून को हुए मैच में इस अफ्रीकी देश ने चेक-गणराज्य को दो गोल से शिकस्त दी। स्थिति यह थी कि चेक खिलाड़ी मैदान में हतप्रभ से दिखाई पड़ रहे थे। लगता था मानो वे खेलना ही भूल गये हैं। खेल के तीसरे मिनट में ही घाना के आक्रमणकर्ता गियान ने एक दर्शनीय गोल कर दिया। गजब के तालमेल से उन्होंने चेक गणराज्य की किलेबन्दी को धाराशायी कर दिया।ऐसा ही चमत्कृत करने वाला खेल अर्जेण्टीना ने सर्बिया-मोण्टेनेग्रो के खिलाफ दिखाया। फुटबाल का खेल क्या है और फुटबाल कैसी खेली जानी चाहिए, इसका एक नायाब नमूना दो बार के विश्व-विजेताओं ने प्रस्तुत किया। उस दिन हर खिलाड़ी अपनी लय में था और जुआब रोमन रिक्वीम लाजवाब फुटबाल खेल रहे थे। लियोनिअल मैसी, रूनी, रोनाल्डिन्हो, पोडोल्स्की आदि सितारे खिलाड़ी हैं, बेशक उनकी उपस्थिति रोमांच पैदा कर देती है, किन्तु रिक्वीम जैसे सम्पूर्ण खिलाड़ी बिरले ही होते हैं। रिक्वीम अर्जेण्टीना टीम की जान हैं, टीम की व्यूह-रचना उन्हीं पर निर्भर रहती है। रिक्वीम के जादुई खेल की बदौलत अर्जेण्टीनी खिलाड़ियों ने सर्बिया के खिलाफ गजब का खेल दिखाया। सर्बिया छह गोलों से हारा और उनमें से एक गोल तो ऐसा था जिसके लिए अर्जेण्टीनी खिलाड़ियों ने 24 बार गेंद का आदान-प्रदान किया। कैम्बियासो ने चौंबीसवीं बार में गेंद का रुख गोल की ओर किया। इस विश्व-कप के दर्शनीय गोलों में यह गोल भी शामिल किया ही जाना चाहिए।अर्जेण्टीना के साथ ब्राजील, मैक्सिको, इंग्लैण्ड, फ्रांस, इटली, स्पेन और जर्मनी को इस प्रतियोगिता में आयोजकों ने वरीयता दी है। वरीयता के दो दावेदार हालैण्ड और पुर्तगाल भी हैं। अर्थात् इन दस देशों में से ही कोई “विजेता” बनना चाहिए। इनमें से जर्मनी, अर्जेण्टीना और स्पेन ने धमाकेदार शुरुआत की है। तीनों ही देशों ने लीग चरण में चमकदार फुटबाल खेली है। जर्मनी और स्पेन ने तेज और आक्रामक फुटबाल का प्रदर्शन किया है और अर्जेण्टीनी खिलाड़ियों ने लयबद्ध फुटबाल, जो दक्षिण अमरीकी देशों की विशेषता है, का नायाब दृश्य प्रस्तुत किया है। हालैण्ड के नौजवान खिलाड़ियों ने भी अभी तक उत्कृष्ट फुटबाल खेली है। फ्रांस का खेल अब तक निराशाजनक रहा है, जब कि इस टीम में थियरे हेनरी हैं, जिन्होंने इंग्लैण्ड की लीग में इस बार सर्वाधिक गोल बनाये थे। महान जिनादिन जिदान, ट्रेजेगुए और मेकेलेले भी इस टीम में हैं। वास्तव में टीम के कोच न तो अब तक सटीक रणनीति खोज पाये हैं और न ही यह तय कर पाये हैं कि किस खिलाड़ी का उपयोग कहां किया जाये। लुईस साहा जैसा आक्रामक खिलाड़ी अभी तक मैदान के बाहर ही बैठा है। मध्य-पंक्ति के धुरंधर राबर्टपिरेस को टीम में ही शामिल नहीं किया गया।कुछ ऐसी ही स्थिति इटली की है। इटली के मशहूर क्लब ए.एस. रोमा के कप्तान फ्रांसेस्को टोटी को कहां खिलाया जाय, इसका असमंजस बना हुआ है। टोटी विलक्षण रूप से प्रतिभाशाली है और वह अकेले अपने दम पर टीम को जिता सकता है। मार्सेलो लिप्पी बड़े अनुभवी और सफल प्रशिक्षक रहे हैं, किन्तु इटली के सितारे खिलाड़ियों की प्रतिभा का सामंजस्य अभी तक वे नहीं कर पाये हैं। पुर्तगाल के प्रशिक्षक सोलारी कल्पनाशील व्यक्ति हैं। पिछली बार पांचवां विश्व कप जीतने वाली ब्राजील टीम के प्रशिक्षक वही थे। फिर भी, पुर्तगाली भी अभी तक वह चमकदार खेल नहीं दिखा पाये हैं, जिसकी उनसे आशा की जा रही है। विश्व में चौथे पायदान के मैक्सिको के खेल में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। उनके तुरूप के इक्के-बरगुट्टी का चोटिल हो जाना भी समस्या बना हुआ है।देखा जाय तो इस बार के फुटबाल-कुम्भ में वरीयता में नीचे आने वाली टीमों और विशेषकर अफ्रीकी टीमों ने दमदार-प्रदर्शन किया है। अन्तरराष्ट्रीय अनुभव की कमी के कारण ये देश आगे नहीं बढ़ सके। फुटबाल की तकनीक और कलाकारी में अफ्रीकी खिलाड़ी यूरोप या लातीन अमरीकी खिलाड़ियों से उन्नीस नहीं हैं। टोगो, प. अफ्रीका का कुल 15 लाख की आबादी का देश है, लेकिन उसने अपने समूह के तीनों नामचीन टीमों को कड़ी टक्कर दी। टोगो का लम्बा स्ट्राइकर एबेडेयोर इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध क्लब आर्सेनल से खेलता है। इसी तरह आइवरी कोस्ट का ड्रोग्बा इंग्लैण्ड के चेल्सी क्लब से खेलता है। आइवरी कोस्ट जिस ग्रुप “सी” में था, उसे “मृत्यु की घाटी” माना जा रहा था, क्योंकि इसकी चारों टीमें अगले दौर में खेलने की दावेदार थीं। अर्जेण्टीना और हालैण्ड जैसी सशक्त टीमों को आइवरी कोस्ट के खिलाफ पसीना बहाना पड़ा। हालैण्ड तो बड़ी कठिनाई से इस टीम से पार पा सका।लीग दौर की सर्वाधिक कांटे की टक्कर हालैण्ड और आइवरी कोस्ट की ही थी। घाना के पड़ोसी इस अफ्रीकी देश का दुर्भाग्य ही था, कि वह अगले दौर में नहीं पहुंच सका। हालैण्ड के खिलाफ एक निश्चित पेनेल्टी आइवरी कोस्ट को नहीं दी गई। इसके विपरीत हालैण्ड का दूसरा गोल करने वाले खिलाड़ी नेसलराय 100 फीसदी “आफ-साइड” थे। यह गोल दिया ही नहीं जाना चाहिए था। ये दोनों निर्णय आइवरी कोस्ट के पक्ष में जाते तो यह टीम हालैण्ड पर जीत दर्ज कर दूसरे दौर में पहुंच जाती।जहां तक गोलों की बात है हालैण्ड के रोबिन वान पर्सी का फ्री-किक पर किया गया गोल भी दर्शनीय था। प्रतियोगिता के उद्घाटन मुकाबले में जर्मनी के रक्षक फिलिप लेम का कोस्टारिका के विरुद्ध किया गया गोल भी उत्कृष्ट था। इंग्लैण्ड के जेराई, जर्मनी के ही कलोसे, अर्जेण्टीना के कार्लोस टेवेज और स्पेन के फरनाण्डो टोरेस ने भी धमाकेदार गोल किए हैं। ये ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप खेल दिखाया है। अर्जेण्टीना के रिक्वीम के अतिरिक्त जर्मनी के रनाइडर, हालैण्ड के रोबेन और वान पर्सी, स्पेन के फेब्राीगास और टोरेस, इटली के पिर्लो, स्वीडन के लुंजाबर्ग, घाना के माइकल ईसें, ब्राजील के रोनाल्डिन्हो और काक तथा आस्ट्रेलिया के टिम केहिल ने अपने जादुई खेल से दर्शकों का दिल जीता है। वैसे दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और अमरीका की टीमों ने भी उत्कृष्ट फुटबाल खेली है। मध्य पंक्ति के डोनावन और मैकब्राइड ने अमरीकी की ओर से सराहनीय फुटबाल खेली है। दूसरी ओर ऐसे सितारों की भी कमी नहीं है जो अब तक सिफर साबित हुए हैं। इनमें सबसे ऊपर है स्वीडन का इब्राहिमोविक। यह धुरंधर स्ट्राइकर इटली के शीर्ष के क्लब “जुवेण्टस” से खेलता है और इटली की “सिरीज-ए” में उसका दबदबा है, किन्तु लीग दौर में वह कुछ नहीं कर पाया। इटली का लूका टोनी, इंग्लैण्ड का माइकल ओवन, फ्रांस के जिनादिन जिदान, ब्राजील के रोनाल्डो और चेक-गणराज्य के नेडवेक ऐसे खिलाड़ी हैं,जो अपने क्लबों के लिए जान लड़ा देते हैं, पर अपनी राष्ट्रीय टीम में दोयम दर्जे के सिद्ध हो रहे हैं।जर्मनी में अब तक बेहतरीन फुटबाल खेली गई है, लेकिन वास्तविक आनन्द पूर्व-क्वार्टर फाइनल से शुरू होगा। इस नाक-आउट दौर में हारने वाली टीम को दूसरा मौका नहीं मिलेगा अर्थात् उसे बोरिया-बिस्तर बांधने ही होंगे। प्रतियोगिता के पहले हिस्से (समूह ए से डी) में जर्मनी, अर्जेण्टीना और हालैण्ड के सामने बाकी सब बौने नजर आ रहे हैं। सम्भावना यह दिख रही है कि क्वार्टर फाइनल में जर्मनी की अर्जेण्टीना से और इंग्लैण्ड की हालैण्ड से भिड़न्त होगी। उसी तरह दूसरे भाग में (समूह ई से एच) इटली और ब्राजील (यदि ये क्वार्टर फाइनल से पहले न टकराये) सेमी फाइनल में जाते दिख रहे हैं। पर इसके लिए ब्राजील को घाना और इटली को द. कोरिया से पार पाना होगा। इधर पहले हिस्से में जर्मनी या अर्जेण्टीना और हालैण्ड के अंतिम चार में आने के हालात बनते दिख रहे हैं। इस स्थिति में इटली और जर्मनी (या अर्जेण्टीना) तथा ब्राजील-हालैण्ड में टक्कर होगी। चूंकि इस बार किसी यूरोपीय देश की विश्व कप जीतने की बारी है इसलिए इटली, जर्मनी या हालैण्ड में से कोई बाजी मार सकता है। इनमें से “द अजूरी” (फुटबाल में इटली का नाम) इस समय सबसे कमजोर दिख रही है तथा जर्मनी सबसे सशक्त, किन्तु ऐसी उच्च-स्तर की प्रतियोगिताओं में सफलता उन टीमों को मिलती है जो सही समय पर अपने रंग में आती हैं।शुरू में ही धमाकेदार खेल दिखाने वाली टीमें अक्सर आखिरी पायदान पर आते-आते हांफने लगती हैं और बुरी तरह मात खा जाती हैं। स्पेन, अर्जेण्टीना और जर्मनी ने शुरुआती चरण में ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। देखना है कि उनमें आगे के लायक ऊर्जा बचती है या नहीं। वैसे जर्मनी का पूरा दारोमदार रनाइडर, बैलक, श्वाइन स्टाइगर और क्लोसे पर है। इनका तालमेल लगातार अच्छा बना रहा और आखिर तक जूझने की ताकत उनमें बची रही तो बत्तीस साल बाद जर्मनी फिर अपने घर में दुनिया का सिरमौर बन सकता है। उधर अर्जेण्टीना की टीम विलक्षण फुटबाल खेल रही है। रिक्वीम, मैसी, मैकरानो, सेवियोला, टेवेज, क्रेस्पो, सोरिन और कैम्बियासो न केवल जाने माने खिलाड़ी हैं, बल्कि अपने जीवन की उत्कृष्ट फुटबाल खेल रहे हैं। अत: फाइनल में पहुंचने की असली हकदार अर्जेण्टीना ही है। इटली की टीम अभी जमी नहीं है। प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कमी इटली में भी नहीं है। यदि सबका तालमेल बैठ गया तो इटली को हराने की ताकत किसी में नहीं है। पिर्लो, कोमेरोनेसी, टोटी, लूका टोनी, इंझागी, नेस्टा और केनेवारो जिस टीम में हों उसे अजेय कहने में कोई हर्ज भी नहीं है।वास्तव में 9 जुलाई को इटली और अर्जेण्टीना की टक्कर इस विश्व-कप की तार्किक परिणति होनी चाहिए और यह हुआ तो इटली चौबीस साल बाद विश्व-कप पर अधिकार जमा लेगा।46
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