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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ”स्त्री” स्तम्भ के लिए सामग्री, टिप्पणियां इस पते पर भेजें-“स्त्री” स्तम्भद्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य,संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55तेजस्विनीकितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गईं श्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।उम्र 90 की, पर हौसला 30 काडा. शकुंतला देशपाण्डेअपने शुभचिंतकों के बीच श्रीमती शकुन्तला देशपाण्डेएक निर्धन परिवार में उन्होंने जन्म लिया लेकिन निर्धनता उनके भीतर छिपी प्रतिभा को पल्लवित होने से रोक न सकी। बचपन में सिर्फ तकलीफें ही तकलीफें उन्होंने झेलीं, लेकिन हलाहल पीते हुए भी समाज को अमृत देने की उनकी आकांक्षा ने उन्हें आज देश की तेजस्वी नारियों में से एक बना दिया है। प्रख्यात गांधीवादी व सर्वोदयी कार्यकर्ता डा. शकुन्तला देशपाण्डे का जीवन है ही ऐसा कि जो भी उनके सान्निध्य में आया, उन्हीं की रौ में बहता चला गया।शकुंतला देशपाण्डे योगासान करती हुईंलगभग 54 वर्ष पूर्व अपनी प्रतिभा और परिश्रम से उन्होंने चिकित्सा विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त कर समाज की सेवा के लिए एक छोटे से “मेटरनिटी होम” की नींव इन्दौर में रखी थी। इस कार्य के पीछे उन्हें महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे से प्रेरणा मिली थी। उनके जीवन में सादगी और स्वदेशी का संकल्प इतना प्रबल है कि आज भी वे खादी के वस्त्र ही पहनती हैं। भारतीय योग परम्परा, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद आदि अनेक विधाओं में वे सिद्धहस्त हैं। उनके जीवन में जब सुख-समृद्धि के दिन आए तो उन्होंने अपनी कमाई का एक-एक पैसा समाज की नि:स्वार्थ सेवा हेतु अर्पित कर दिया। इन्दौर में उनके द्वारा दी गई 5 एकड़ जमीन में स्वास्थ्य प्रतिष्ठान न्यास आज परम्परागत चिकित्सा के क्षेत्र में नित् नवीनतम आयाम स्थापित कर रहा है।इस न्यास की नींव उन्होंने 1983 में रखी थी। डा. देशपाण्डे के मार्गदर्शन में आज यह स्थान सैकड़ों-हजारों असाध्य रोगों से ग्रस्त दु:खी मनुष्यों के कष्टों को हरने में सतत् सक्रिय है। उनकी दोनों पुत्रियां-डा. विजया पराड़कर व शीला वर्मा-भी उन्हें इस कार्य में पूरा सहयोग करती हैं। विभिन्न यौगिक क्रियाओं, जैसे नेति, धौति, कुंजल, कपालभाति के साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा की अनेक विधियों, जैसे भाप स्नान, कटि स्नान, सूर्य स्नान, मिट्टी व जल चिकित्सा द्वारा यहां रोगियों का इलाज होता है। साथ ही महिलाओं व शिशुओं के लिए अलग से स्त्री प्रसूति व शिशु कल्याण केन्द्र भी चलता है। आज जब चारों ओर एलोपैथी का ही बोलबाला दिखता है, ऐसे में डा. देशपाण्डे ने आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की प्रमाणिकता स्थापित करने और उसमें जन विश्वास बनाए रखने में महती सफलता प्राप्त की है। सन् 1993 में डा. देशपाण्डे ने अपने विविध सेवा प्रकल्पों में एक विशेष आयाम और जोड़ा। घर से तिरस्कृत वृद्धों की नि:स्वार्थ सेवा और उनके जीवन की सांझ को सुखमय बनाने के लिए नि:स्वार्थ भाव से वृद्धाश्रम की स्थापना की। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त सभी कार्य डा. देशपांडे के मार्गदर्शन में बिना कोई लाभ लिए किए जा रहे हैं। अपने जीवन के अन्तिम चरण में पहुंचकर भी डा. देशपांडे की सक्रियता जस की तस है। 90 वर्ष की उम्र में वे स्वयं विभिन्न यौगिक क्रियाओं और कठिन आसनों का अभ्यास करती हैं। देश में योग और प्राकृतिक चिकित्सा के बढ़ते प्रभाव से उन्हें प्रसन्नता होती है। वे कहती हैं, “देश की विधाएं अब प्रतिष्ठित हो रही हैं, देश की युवा पीढ़ी अपनी विरासत को सहेज संभालकर आगे बढ़े, इससे ज्यादा सन्तोष की बात कुछ और नहीं है।” दीपक नाईक22
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