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आइसक्रीम में जानवर की हड्डी ?मेनका गांधी, सांसद, लोकसभासुनने में आया है कि गाय के सींगों को बढ़ने से रोकने के लिए कई क्रूर तरीके अपनाए जाते हैं। क्या यह सही है?-ब्राज मोहन जुयाल, धूमाकोट, पौड़ी गढ़वाल (उत्तरांचल)गाय के सींगों को जड़ से या तो काट दिया जाता है या जला दिया जाता है। इस कारण उसे अत्यधिक दर्द होता है, उसका खून बहता है। यह मुर्गों या कुत्तों की पूंछ काटने के समान है और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत गैर कानूनी है।क्या कुछ कंपनियों के नमक में हड्डी का मिश्रण होता है?-चंद्रकांत यादव, चंदौली (उत्तर प्रदेश)नमक में हड्डियां नहीं मिलाई जातीं, परन्तु हड्डी और जिलेटिन उन चीजों में डाली जाती हैं जिनमें कैल्शियम की जरूरत पड़ती है।किन वस्तुओं में हड्डी या जिलेटिन का इस्तेमाल होता है?-रमा पाण्डेय, मेरठ (उत्तर प्रदेश)जिलेटिन जानवरों की उबाली हुई हड्डी, त्वचा और तंतुओं से बनती है। इसका प्रयोग निम्नलिखित चीजों में होता है- टूथपेस्ट, जेली, दवा के कैप्सूल, जैम, आइसक्रीम, क्रीम, डिब्बा बंद दूध आदि। इसका प्रयोग वजन घटाने वाले भोजन में भी होता है जिससे कि ज्यादा खाने का अनुभव तो हो परन्तु कैलोरी की मात्रा कम निकले। बेकरी वाले इसका इस्तेमाल “एक्लेयर” बनाने में करते हैं। मिठाई उद्योग में जिलेटिन एक मुख्य पदार्थ है। जिलेटिन का प्रयोग सेब का रस या सिरका जैसी चीजों को छानने के लिए भी किया जाता है। मछली की पित्त की थैली, जिसे “आइसिंग ग्लास” कहते हैं, का प्रयोग “वाइन” और “बियर” में किया जाता है। डिब्बा बंद मांस को संरक्षित करने में भी जिलेटिन का सहारा लिया जाता है। दवाइयों के कैप्सूल और गोलियों के ऊपर इसका लेप होता है। गाय और सूअर की चर्बी से बना जिलेटिन मरीजों को “इंजेक्शन” के तौर पर दिया जाता है, जैसे- खसरा, डीपथीरिया, टिटनस, इन्फ्लुएंजा और रैबीज इत्यादि की वैक्सीन में। इसे खून में प्लाज्मा के प्रतिरूप में भी प्रयोग किया जाता है। नहाने के कैप्सूल, जिनमें तेल होता है और जो पानी में घुल जाते हैं, उनमें भी जिलेटिन का प्रयोग होता है। पानी में उगने वाली घास, जिसे अगर-अगर कहते हैं, वह जिलेटिन का एक विकल्प है।सूअर भी एक जानवर है। फिर मुसलमान इससे घृणा क्यों करते हैं, जबकि गायों को वे मारते हैं?-जगन्नाथ श्रीवास्तव, देवरिया (उत्तर प्रदेश)यह आश्चर्य की बात है कि इस्लाम में हमेशा से ही जानवरों को मारा जाता है, जबकि पैगम्बर मोहम्मद साहब स्वयं शाकाहारी थे और शाकाहार की सलाह कुरान में भी दी गई है। परन्तु मजहब अपने आपको दूसरे पंथ से अलग दिखाने के लिए कुछ समय बाद ऐसी बातें गढ़ लेता है। उन्हीं में से एक है कि फलां तरह का जानवर मारो और फलां तरह का नहीं। पर यह परम्परा शायद स्वास्थ्य की दृष्टि से बनायी गयी है क्योंकि सूअर का मांस जल्दी सड़ जाता है। ज्यादातर सूअर के मांस में “पैरासाइटिक टेपवर्म” और “सिस्टीसरकोसिस” पाए जाते हैं, जिनकी वजह से मिर्गी का रोग होता है। दपशु कल्याण आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक पाठकग्श्रीमती मेनका गांधी से 14, अशोक रोड,नई दिल्ली-110001 के पते पर अथवा ढ़ठ्ठदड्डण्त्थ्र्ऋद्रठ्ठद्धथ्त्द्म.दत्ड़.त्द पर सम्पर्क कर सकते हैं।इस स्तम्भ में हर पखवाड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शाकाहार कीे समर्पित प्रसारक श्रीमती मेनका गांधी शाकाहार, पशु-पक्षी प्रेम तथा प्रकृति से सम्बंधित पाठकों के प्रश्नों का उत्तर देती हैं। अपना प्रश्न भेजते समय कृपया निम्नलिखित चौखाने का प्रयोग करें।श्रीमती मेनका गांधी”सरोकार” स्तम्भ / द्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्यसंस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला,नई दिल्ली-11005520
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