|
भारतीय वन अनुसंधान संस्थान करेगाअंगकोरवाट मंदिर की जैविक सुरक्षाकम्बोडिया स्थित विश्व के प्राचीनतम एवं सबसे बड़े हिन्दू मन्दिर की जैविक सुरक्षा का काम अब देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफ.आर.आई.) करेगा। एफ.आर.आई. के निदेशक डा. एस.एस. नेगी ने यह जानकारी दी। इसके लिए मंदिर परिसर से पेड़ों के तनों, डाली-पत्तियों व पत्थर-मिट्टी के नमूने लाये गये हैं। संस्थान के विशेषज्ञ इन नमूनों के परीक्षण कार्य पर जुट गए हैं। श्री नेगी ने बताया कि कम्बोडिया के सिमरिप शहर के करीब स्थित मन्दिर की दीवारों व परिसर में फैले पेड़ों के संरक्षण का दायित्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने एफ.आर.आई. को सौंपा है। मन्दिर परिसर में बरगद प्रजाति के लगभग 400 पेड़ हैं। इतनी बड़ी संख्या में दुनिया के किसी मन्दिर में पेड़ नहीं हैं। इन पेड़ों के कारण यहां पर्यावरण स्वच्छ और यह प्राचीन मन्दिर संरक्षित रहा। पत्थरों से बने इस मन्दिर की सुरक्षा हेतु संतुलित जलवायु जरूरी है, जिसके लिए पेड़ों का बचे रहना जरूरी है, हालांकि कम्बोडिया शासन ने पेड़ काटने का फैसला ले लिया था।कम्बोडिया से लाये गए 4 फीट व्यास वाले वृक्ष तने के एक नमूने के साथ मिट्टी-पत्थर के 20 और पेड़ों की डाली-पत्तियों के नमूने एफ.आर.आई. पहुंच चुके हैं। अब यह निर्धारित होगा कि चार-पांच सौ वर्ष तक जीवित रहने वाले इन पेड़ों की उम्र अभी तक कितनी हुई है, और ये किसी बीमारी ग्रस्त हैं या नहीं।बौद्ध व थेरवादी संप्रदाय को मानने वाले देश कम्बोडिया में यह मन्दिर अपने विराट परिसर के कारण दुनिया के सबसे बड़े हिन्दू मंदिरों में गिना जाता है। चार सदियों तक उपेक्षित रहा यह मन्दिर दुनिया की स्मृति से लुप्त हो गया था और उसमें जंगल उग आए थे। एक फ्रांसीसी खोजकर्ता हेनरी माउंट ने इस प्राचीन मन्दिर को 1885 में खोजा। पांच सौ एकड़ में बने दुनिया के इस सबसे बड़े प्राचीन मन्दिर के जीर्णोद्धार हेतु भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण “अंगकोरवाट परियोजना” के अन्तर्गत दो दशक से कार्य कर रहा है। 1980 में कम्बोडिया के राजकुमार ने विश्व समुदाय से मन्दिर को बचाने की अपील की थी, जिसको भारत ने संज्ञान में लिया और पहला सर्वेक्षण दल 1986 में कम्बोडिया भेजा गया था। तभी से इसके संरक्षण का कार्य चल रहा है। सुभाष चंद जोशी16
टिप्पणियाँ