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-फान मींगशींग
भारत-चीन मैत्री के बुनियादी बिन्दु
1.वरिष्ठ नेताओं ने जो राजनीतिक संकल्प व्यक्त किए हैं वे दोनों देशों के सम्बंधों के मूलभूत आधार हैं।
2.रणनीतिक दृष्टि से और व्यापक परिप्रेक्ष्य में आपसी सम्बंध विकसित करने का राजनीतिक संकल्प ही इसकी बुनियाद है।
3.दोनों देशों के बीच सम्बंध सुधारने का व्यावहारिक तरीका यही है कि मतभेदों को एक ओर रखकर पहले समान हितों का आधार खोज लें और द्विपक्षीय आदान-प्रदान व सहयोग बढ़ाने की पहल करें। अर्थात पहले ऐसे मामलों का समाधान खोजें जो आसान हैं, पेचीदा मामलों को बाद में निपटाएं।
4.यहां तक कि जब दोनों देशों के सम्बंध तनावपूर्ण हों, उस समय भी दोनों ओर से सद्भाव का माहौल बनाने के प्रयास होने चाहिए।
40 वर्ष पूर्व मैंने बीजिंग विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था हिन्दी भाषा सीखने के लिए। सौभाग्य से बाद में मुझे भारत में 10 वर्ष से अधिक समय तक काम करने का अवसर भी मिला। इस दौरान भारत की मेरे मन पर बहुत गहरी छाप पड़ी। यह मन को आनंदित करने वाली थी। वहां कई भारतीय मेरे मित्र बने। अब वर्ष 2006 चीन-भारत मैत्री वर्ष है इसलिए चीन-भारत सम्बंधों के बारे में लिखने का विचार आया।
मुझे गर्व है कि एक बड़े एशियाई देश चीन का नागरिक होने के साथ ही दूसरे बड़े एशियाई देश भारत से मेरा निकट सम्बंध है। मुझे याद है, 1988 की 31 दिसम्बर को जब मैंने पहली बार भारत की धरती पर कदम रखा था, तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन की यात्रा पर थे, जो चीन-भारत सम्बंध सुधारने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण रही। भारत में मैंने अतिथि भाव खूब महसूस किया। एक विवाह उत्सव में मैं वरिष्ठ भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी से मिला। हम दोनों ने हिन्दी में ही बातचीत की। चीन वापस लौटकर मैंने “मेरे हृदय में दिल्ली” शीर्षक से लेखमाला लिखी जिसमें मैंने भारत में अपने अनुभवों को बांधना चाहा था। 1998 में जब मैं एक बार फिर भारत पहुंचा तो मेरे मित्र और पाञ्चजन्य के सम्पादक श्री तरुण विजय को चीन-भारत विशिष्ट व्यक्ति फोरम का सदस्य नियुक्त किया गया था। यह इस बात का संकेत था कि चीन-भारत सम्बंध सुधार पर हैं और विकास के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। जुलाई, 2003 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की तो दोनों देशों के सम्बंध एक नई ऊंचाई पर पहुंचे। इस यात्रा के पहले और बाद में चीन के नेता ली फेंग, ज्यांग जेमीन, जू रेंगजी, जिआ छिंगलिन और वेनजियाबाओ ने अलग-अलग भारत की यात्रा की। दोनों देशों के नेताओं द्वारा एक-दूसरे देश की यात्राओं से चीन-भारत सम्बंधों को नई ऊर्जा मिलती रही। चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के बाद दोनों देश शांति और समृद्धि की ओर बढ़ने वाले रणनीतिक सहयोगी बन गए। ये सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं और इसके लिए कुछ सिद्धांतों पर समझौता भी हुआ है। सच कहूं तो चीन-भारत सम्बंध टेढ़े-मेढ़े रास्ते से गुजर कर एक नई मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं। यह दोनों देशों की जनता और उनके नेताओं के विवेक का परिणाम है। भारत-चीन वार्ता के लिए निर्धारित एवं स्वीकृत सिद्धांतों में कम से कम निम्नलिखित बिन्दु बहुत उपयोगी हैं-
1. वरिष्ठ नेताओं ने जो राजनीतिक संकल्प व्यक्त किए हैं वे दोनों देशों के सम्बंधों के मूलभूत आधार हैं। 2. रणनीतिक दृष्टि से और व्यापक परिप्रेक्ष्य में आपसी सम्बंध विकसित करने का राजनीतिक संकल्प ही इसकी बुनियाद है। 3. दोनों देशों के बीच सम्बंध सुधारने का व्यावहारिक तरीका यही है कि मतभेदों को एक ओर रखकर पहले समान हितों का आधार खोज लें और द्विपक्षीय आदान-प्रदान व सहयोग बढ़ाने की पहल करें। अर्थात पहले ऐसे मामलों का समाधान खोजें जो आसान हैं, पेचीदा मामलों को बाद में निपटाएं। 4. यहां तक कि जब दोनों देशों के सम्बंध तनावपूर्ण हों, उस समय भी दोनों ओर से सद्भाव का माहौल बनाने के प्रयास होने चाहिए।
अब मैं सेवा से अवकाश ग्रहण कर चुका हूं, फिर भी भारत के प्रति अगाध लगाव है। प्रतिदिन अन्तरताने (इंटरनेट) पर भारतीय समाचार पत्र पढ़ता हूं। मैं भारत की आर्थिक प्रगति से खुश हूं तो मुम्बई की बाढ़, दिल्ली के बम विस्फोट, कश्मीर में आए विनाशकारी भूकम्प से बहुत दु:खी भी हूं। इधर कुछ सालों में चीन और भारत के बीच व्यापार बहुत तेजी से बढ़ा है जिससे दोनों देशों की आम जनता को लाभ मिल रहा है। अब छिगतु शहर, जहां मैं और मेरा परिवार रहता है, में अनेक भारतीय दुकानें खुल गई हैं। इस कारण हमें अपने घर के आसपास ही भारतीय वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं। कहा जाता है कि शंघाई शहर में 12 से अधिक भारतीय रेस्तरां हैं। कुछ दिन पहले मैं भी अपनी पत्नी, बेटे और बहू के साथ एक भारतीय रेस्तरां में भोजन करने गया था।
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