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– डा. बजरंग लाल गुप्त
सचिव, श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी समारोह समिति
रा.स्व.संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य, उत्तर क्षेत्र के संघचालक एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डा. बजरंग लाल गुप्त को श्री गुरुजी जन्मशताब्दी समारोह समिति का अखिल भारतीय सचिव चुना गया है। समिति के कार्यों एवं उद्देश्यों के बारे में उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं –
श्री गुरुजी के जन्म शताब्दी वर्ष को “समरसता वर्ष” के रूप में ही मनाने का निर्णय क्यों लिया गया?
वर्तमान समय में देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है समाज के बीच फैली भेदभाव और ऊंच-नीच की भावना। इस संकुचित भावना को मिटाकर राष्ट्र और समाज के समक्ष उपस्थित समस्याओं के समाधान के लिए सभी को एकजुट और संगठित करने की आवश्यकता है। पूज्य श्री गुरुजी प्रारंभ से ही जातिवादी भावना को समाप्त करने, छूआछूत और भेदभाव को मिटाने के लिए प्रयत्नशील रहे। वे एक आध्यात्मिक विभूति थे, उनके प्रयत्नों से ही देश के सभी प्रतिष्ठित संतों-आचार्यों ने एक मंच पर आकर घोषित किया था- हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत तथा मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र समानता। इन्हीं बोध वाक्यों के आधार पर हमने अपनी समिति का केन्द्रीय उद्देश्य तय किया है- सामाजिक समरसता।
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किस प्रकार के कार्यों की संरचना की जा रही है?
देशभर में तीन स्तरों पर समिति का गठन किया जाएगा। केन्द्रीय समिति का गठन हो ही चुका है। प्रान्त स्तर पर समितियों के गठन का काम चल रहा है तथा कार्य की दृष्टि से जिला स्तर पर समितियों का गठन किया जाएगा। देश भर में एक समान कार्यक्रमों की संरचना की जा रही है और खण्ड स्तर को एक इकाई मानकर कार्यक्रम होंगे। प्रत्येक खण्ड में एक विशाल हिन्दू सम्मेलन किया जाएगा, जिसमें सभी जाति, पंथ, वर्ग तथा सम्प्रदायों को सम्मिलित करने का प्रयत्न करेंगे। प्रत्येक खण्ड में सभी जाति, पंथ तथा वर्गों के प्रमुख को एक मंच पर लाने की योजना है और उनके माध्यम से ही सामाजिक समरसता का संदेश घर-घर तक पहुंचाएंगे। इन हिन्दू सम्मेलनों में जनसंख्यात्मक असंतुलन पर भी लोगों को जाग्रत किया जाएगा तथा आर्थिक साम्राज्यवाद के खतरे से बचने के लिए स्वदेशी की भावना को भी जन-जन तक पहुंचाएंगे।
इसके साथ ही सामाजिक सद्भाव के लिए विभिन्न जाति-उपजाति के प्रमुखों की खण्ड तथा जिला स्तर पर बैठकें तथा विचार-विमर्श के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके साथ ही हिन्दुत्व और उसकी विचार यात्रा और उसके वाहक संगठनों, हिन्दुत्व के प्रतीकों, श्रद्धा केन्द्रों पर होने वाले वैचारिक आक्रमणों को परास्त करने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर तथा प्रबुद्ध जनों की विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। नगरों में पदयात्रा, मानव श्रृंखला, राम खिचड़ी तथा समरसता दौड़ आदि कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
इन कार्यक्रमों को सफल बनाने की दृष्टि से किन संगठनों को विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई है?
यह तो राष्ट्र कार्य है, इसलिए समाज जीवन के ऐसे सभी बन्धुओं से हम सहयोग का आह्वान कर रहे हैं जो राष्ट्रनिष्ठ हैं और जो राष्ट्र तथा समाज के सामने उपस्थित समस्याओं के निदान के लिए सक्रिय रूप से भागीदारी करते हैं। रा.स्व.संघ और श्री गुरुजी की प्रेरणा से प्रारंभ हुए विश्व हिन्दू परिषद, विद्यार्थी परिषद जैसे अनेक राष्ट्रव्यापी समविचारी संगठनों ने तो विशेष प्रयत्न करने तथा अपने अनुसार भी कार्यक्रम करने का संकल्प व्यक्त किया ही है। इनके साथ ही देश के सभी धार्मिक तथा सामाजिक संगठनों से सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे।
कब से शुरू होंगे कार्यक्रम तथा उनकी जानकारी सब तक कैसे पहुंचेगी?
वर्ष भर चलने वाले श्री गुरुजी जन्मशताब्दी समारोहों का भव्य शुभारंभ 24 फरवरी को नागपुर में होगा। सायंकाल 6 बजे सार्वजनिक समारोह से पूर्व 2.30 बजे सभी सदस्यों एवं पदाधिकारियों की बैठक होगी। शताब्दी वर्ष का समापन समारोह दिल्ली में 18 फरवरी, 2007 में होगा। देशभर में होने वाली गतिविधियों एवं योजनाओं की जानकारी 24 जनवरी से वेबसाइट ध्र्ध्र्ध्र्.द्मण्द्धत्ढ़द्वद्धद्वत्र्त्.ड़दृथ्र् पर भी उपलब्ध रहेगी।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक प. पू. श्री गुरुजी ने समय-समय पर अनेक विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। वे विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे। इन विचारों से हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं और सुपथ पर चलने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। इसी उद्देश्य से उनकी विचार-गंगा का यह अनुपम प्रवाह श्री गुरुजी जन्म शताब्दी के विशेष सन्दर्भ में नियमित स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। -सं
ऐसा है “आधुनिक” हिन्दू जीवन
हम अपनी आध्यात्मिक परंपराओं पर गर्व करते हैं। किन्तु हम रहते किस प्रकार हैं? हमारे दैनिक संस्कार क्या हैं? क्या हमारे नित्य के क्रियाकलापों में ईश्वर का कोई स्थान है? क्या हमारे घरों में कम से कम एक स्थान ऐसा है, जहां बैठकर हम उसका ध्यान कर सकें? एक बार मेरे एक परिचित ने अपने नए बने मकान को देखने के लिए मुझे बुलाया। वह भली प्रकार सुसज्जित तथा हर दृष्टि से एक आधुनिक गृह था। जब उसने मकान की विशेषताएं बताना समाप्त किया, तब मैंने पूछा कि देवगृह कहां है? क्या तुम्हारे कोई कुल-देवता नहीं हैं, जिसकी पूजा तुम्हारे पूर्वज करते रहे हों और तुम्हें सौंप गए हों? मेरे प्रश्न से चकित होकर क्षमा मांगते हुए उसने कहा- “मैं उस विषय में बिल्कुल भूल गया था।” कुछ महीने पश्चात् जब मैं पुन: उस स्थान पर गया तो उसने विशेष रूप से यह कहकर मुझे अपने घर पर आमंत्रित किया कि मेरे कथनानुसार काम कर लिया गया है। मैं उसे देखने गया। जीने के नीचे एक टेढ़े-मेढ़े स्थान में बनी हुई छोटी सी आलमारी मुझे दिखाई। परिवार के सदस्यों के चप्पल, जूते उस आलमारी के ऊपर बड़ी सफाई से रखे हुए थे। उन्होंने कहा- “मैंने इसे नया बनवाया है और अपने कुलदेवता को यहां रखा है।” मैं तो उसे देखकर संत्रस्त हो गया। ऐसा है -“आधुनिक प्रगतिशील” हिन्दू-जीवन।
(साभार: श्री गुरुजी समग्र : खंड 11, पृष्ठ 67-68)
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