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केरल माकपा में दरार
– तिरुअनंतपुरम प्रतिनिधि
केरल विधानसभा चुनावों में कुछ दिन ही शेष हैं और इधर माक्र्सवादी पार्टी का आंतरिक घमासान सतह पर आ गया है। राज्य में माकपा के वरिष्ठ नेता वी.एस. अच्युतानंदन ने माकपा पोलित ब्यूरो की तानाशाही के विरुद्ध झंडा बुलंद कर दिया है। उल्लेखनीय है कि अच्युतानंदन वरिष्ठ माक्र्सवादी नेताओं में एक हैं। परंतु आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों की सूची से उनका नाम गायब है। पार्टी के वरिष्ठ कामरेडों को इस वरिष्ठतम नेता को दरकिनार कर देने से पार्टी में किसी बड़ी विध्वंसात्मक गतिविधि का अंदेशा है। ये वही अच्युतानंदन हैं जो उन 32 नेताओं में से एक थे जिन्होंने 1964 में अविभाजित भाकपा से बाहर आकर माकपा गठित की थी। सूत्रों के अनुसार, यद्यपि माकपा के केंद्रीय नेतृत्व ने ऊपरी तौर पर आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर किसी नेता को प्रस्तावित नहीं किया है किंतु माकपा के राज्य सचिव पी. विजयन ने मुख्यमंत्री के रूप में वाममोर्चा के संयोजक पी. मोहम्मद कुट्टी को आधिकारिक दावेदार घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। माकपा के महासचिव प्रकाश कारत भी इसी नाम पर अंदर ही अंदर सहमत हैं। वैसे भी पी. विजयन प्रकाश कारत के खास व्यक्ति माने जाते हैं। मोहम्मद कुट्टी हालांकि पुराने कम्युनिस्ट हैं, पर उनके समर्थक भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाने लायक नेता नहीं मानते। संलोमो सरकार द्वारा मुस्लिमों को रिझाने के लिए नरेन्द्र आयोग की सिफारिशों को, जिसमें मुस्लिमों को नौकरी में आरक्षण की बात की गई है, लागू करने के निर्णय के बाद माकपा भी मोहम्मद का नाम आगे करने की उतावली दिखा रही है। सूत्रों का यह भी कहना है कि केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वी. एस. अच्युतानंदन के विरुद्ध पीनरई विजयन को उकसाने का काम भी प्रकाश कारत ने ही किया है। उन्हीं की शह पाकर मोहम्मद कुट्टी को माकपा ने राज्य के भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित भी किया है। अब भला वी.एस. अच्युतानंदन कितने दिन शांत रहते। पार्टी ने उन्हें टिकट न देकर उन्हें व उनके समर्थकों के भीतर पनप रहे असंतोष को भी सड़क पर लाने में पूरी मदद की। तिरुअनंतपुरम के ए.के. गोपालन सेंटर में समर्थकों ने जमकर नारे लगाए- “कामरेड वी.एस., हम तुम्हारे साथ हैं। “सीटू” गुट, जो पहले अच्युतानंदन का विरोधी था, अब उनके बचाव में आगे आ गया है। इस गुट ने भी विजयन के रवैए की भत्र्सना की है। उधर विजयन समर्थकों का कहना है कि अगर अच्युतानंदन मुख्यमंत्री बने तो वह लवलीन काण्ड (पाञ्चजन्य में इसकी विस्तृत रपट प्रकाशित की जा चुकी है) में विजयन को जेल भिजवा सकते हैं। जो भी हो, 21 मार्च को केरल की अंतर्कलह को सुलझाने के लिए माकपा की केंद्रीय पोलित ब्यूरो की बैठक घंटों माथापच्ची करने के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। छ: घंटे तक चली बैठक का लब्बोलुआब यही रहा कि पोलित ब्यूरो ने सारा मामला पुन: केरल राज्य की माकपा इकाई के सुपुर्द कर दिया। केरल की राज्य इकाई के सचिव पीनरई विजयन ही समस्या की जड़ हैं। प्रकाश कारत और उनके अभयदान से शेर की तरह गरज रहे विजयन के सामने अच्युतानन्दन का हश्र क्या होगा, इसे बखूबी समझा जा सकता है। कुल मिलाकर केरल में माकपा के कार्यकर्ता खेमों में बंट गए हैं, निष्ठाएं डगमगाने लगी हैं। अब अच्युतानंदन और विजयन गुटों ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। विचारधारा के आवरण में माकपा अब तक नव उदारवाद, पूंजीवाद, वैश्वीकरण, विदेशी निवेश आदि मुद्दों पर लोगों को बहकाती आ रही थी लेकिन अब उसमें पनपी दरार दरअसल पार्टी के अकूत संसाधनों पर कब्जा जमाने की लड़ाई के रूप में देखी जा रही है। बंगाल की ही तरह केरल में भी माक्र्सवादियों की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही हैं।
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