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सेकुलरों को समझ क्यों नहीं आती?-सरोजिनीआजादी मिले 59 वर्ष बीत गए, लेकिन हमारे देश में अनेक विद्वान, बुद्धिजीवी एवं इतिहासकार अभी भी दास मानसिकता को लेकर जी रहे हैं। उन्होंने हमारे देश के प्राचीन गौरवपूर्ण इतिहास को जानने का प्रयत्न भी नहीं किया है। अंग्रेजों द्वारा निर्देशित एवं स्वातंत्र्य पूर्व लिखे गए इतिहास को ही वे अब तक सच मानकर चल रहे हैं। वस्तुत अंग्रेजों और उनके द्वारा प्रेरित इतिहासविदों ने अपने लेखन में भारतीयों को कायर एवं डरपोक सिद्ध करने का ही प्रयास किया है।देश के अनेक मूर्धन्य विद्वानों एवं राष्ट्रभाव से प्रेरित इतिहासविदों ने वैदिक साहित्य, रामायण, महाभारत एवं पुराण आदि ग्रन्थों का अनुशीलन कर बताया है कि वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज आदि ऋषियों ने हिमालय की गिरि-कंदराओं से सरयू नदी घाटी तक वैदिक सभ्यता की स्थापना की थी। मनु वैवस्वत अयोध्या के पहले राजा थे। पुराणों में अयोध्या के 108 सूर्यवंशी राजाओं का वर्णन आता है जिन्होंने हजारों वर्ष तक राज किया। हमारे वैदिक ग्रन्थों में भारत वर्ष का नाम ही आर्यावर्त बताया गया है। अतीत में आर्यावर्त अर्थात् भारतवर्ष अत्यंत शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित हो चुका था और यहां से सारे संसार में वैदिक सभ्यता, संस्कृति का प्रकाश फैला। हमने विश्व को गणित, बीज गणित, रेखा गणित, अंक गणित, दशमलव, शून्य, ज्योतिष शास्त्र आदि अनेक ज्ञान विधाएं सिखायीं। लेकिन दुर्भाग्य से इसे बताने की बजाए हमें पाठ्यपुस्तकों में बताया गया कि आर्य नामक विदेशी हमलावरों ने सिन्धु सभ्यता नष्ट की। वस्तुत: सिन्धु सभ्यता ही वैदिक सभ्यता थी जिसे अनेक विद्वानों ने अपने शोधों द्वारा अब प्रमाणित भी कर दिया है। लेकिन एक झूठ को बार-बार दोहराकर सच बनाने का प्रयास हमारे ही देश के कुछ इतिहासकारों द्वारा दिया गया। आज भी इतिहास की पाठपुस्तकों में हमारे वीर पुरुषों की गाथाओं को सीमित करने के प्रयास जारी हैं। महाराजा विक्रमादित्य ने विदेशी हमलावर शकों एवं हूणों को भारतभूमि से समूल उच्छेद कर दिया था। विश्व विजेता सिकन्दर को पोरस के साथ युद्ध में लोहे के चने-चबाने पड़े और वह भारतभूमि में पराजित हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को पराजित किया आदि आदि भारतीय इतिहास में नहीं पढ़ाई जाएंगी तो फिर कहां पढ़ाई जाएंगी। किन्तु पृथ्वीराज चौहान, राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी सहित हमारे इतिहास नायकों को जितनी प्रतिष्ठा से पाठ्यपुस्तकों में उल्लिखित किया जाना चाहिए था, नहीं किया गया। और तो और स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, स्वामी श्रद्धानंद, बंकिम चन्द्र चटर्जी, वीर सावरकर, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्रपाल, बाल गंगाधर तिलक, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सरदार वल्लभ भाई पटेल का भी जो विवरण हमारी पुस्तकों में आना चाहिए, वह नहीं दिया गया है। आखिर इन सेनानियों और महापुरुषों को हम क्यों विस्मृत कर रहे हैं? हमारे सेकुलर इतिहासकार देश के गौरवपूर्ण इतिहास को विस्मृत कर युवा पीढ़ी के समक्ष जिस आत्मदीनता के इतिहास को परोस रहे हैं, यह न केवल दु:खद है वरन् देश के भविष्य के प्रति अपराध भी है। जैसे भी हो, लेखन का यह ढर्रा बदलना चाहिए।19
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