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विश्व हिन्दू परिषद् की केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल बैठक
मंदिर पर कोई समझौता नहीं
विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल बैठक गत 16 व 17 सितम्बर, 2006 को उदासीन आश्रम, नई दिल्ली में सम्पन्न हुई। इसके पूर्व 15 सितम्बर को श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण उच्चाधिकार समिति की बैठक में श्रीराम जन्मभूमि के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा हुई। दोनों बैठकों में उपस्थित अनेक सन्तों-महन्तों व धर्माचार्यों में प्रमुख थे- ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज, जगद्गुरु मध्वाचार्य, पूज्य स्वामी विश्वेशतीर्थ जी महाराज, सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द जी महाराज, महामण्डलेश्वर युगपुरुष परमानन्द जी महाराज, पूज्य स्वामी विवेकानन्द जी महाराज, पूज्य महंत रामप्रकाशदास जी, जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी राघवाचार्य जी महाराज, जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी कृष्णाचार्य जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी हंसदास जी महाराज, पूज्य स्वामी डा. रामेश्वर दास जी, श्री वैष्णव, पूज्य गोपाल स्वामी जी, आचार्य धमेन्द्र, डा. रामविलासदास वेदान्ती, महन्त कौशलकिशोर दास, स्वामी अमृतराम, महन्त सूरजनाथ, स्वामी उमेशमुनि, जगद्गुरु रामानुजाचार्य वृन्दावनदासाचार्य, स्वामी देवानन्द ब्राह्मचारी, महन्त सुधीरदास, स्वामी शिवचैतन्य ब्राह्मचारी, बालयोगी आतुरकर स्वामी, स्वामी युधिष्ठिरदास, महन्त नवलकिशोर दास, महन्त धूनीदास, स्वामी संग्राम जी महाराज, महन्त श्यामसुन्दर दास आदि। विश्व हिन्दू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल और महामंत्री डा. प्रवीण तोगड़िया की उपस्थिति में दो दिन के चिंतन-मनन के बाद बैठक में 4 प्रस्ताव पारित किए गए, जो इस प्रकार हैं-
प्रस्ताव -1 – मंदिर वहीं बनेगा
इस तरह की बातें की जा रही हैं कि श्रीराम जन्मभूमि पर समझौता करके आयोध्या में मस्जिद बना दी जाये। मार्गदर्शक मण्डल दो टूक शब्दों में अपना मत स्पष्ट कर देना अपना कर्तव्य समझता है कि “मंदिर वहीं, मस्जिद नहीं और बाबरी मस्जिद देश में कहीं भी नहीं”।
मार्गदर्शक मण्डल घोषणा करता है कि 1989 ई. के प्रयागराज महाकुंभ के अवसर पर आयोजित तृतीय धर्मसंसद में एवं पूज्य देवराहा बाबा जी की उपस्थिति में सम्पन्न विराट सन्त सम्मेलन में मंदिर के जिस प्रारुप को लाखों संतों-भक्तों ने स्वीकार किया था और रामशिला पूजन के समय 2.75 लाख ग्रामों के करोड़ों रामभक्तों के घरों में प्रस्तावित मंदिर का जो प्रारुप पहुंचा था, नागर शैली के उसी प्रस्तावित प्रारुप के अनुसार श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण, उसी स्थान पर, जहां आज रामलला विराजमान हैं, उन्हीं पत्थरों से होगा, जो नक्काशी करके अयोध्या में सुरक्षित रखे हुये हैं।
प्रस्ताव- 2 : एन.सी.ई.आर.टी. पाठक्रम में विकृत इतिहास
साम्यवादी विचारधारा के एन.सी.ई.आर.टी.के शिक्षाविदों ने इतिहास को और भी अधिक विकृत कर दिया है। इन्होंने अपने श्रेष्ठ पूर्वजों, महापुरुषों, देवी-देवताओं के प्रति घृणा, अश्रद्धा उत्पन्न करने वाली बातें इतिहास में जोड़ दीं, जैसे- वैदिक ऋषि गोमांस खाते थे, राधा-कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेमभाव को अपमानित करना और जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी को दिगम्बर रूप में प्रस्तुत करने के लिए उन्हें एक ही वस्त्र पहने 12 वर्ष तक भटकता हुआ लिखा गया। 14 सितम्बर को वृन्दावन स्थित बांकेबिहारी मंदिर में विराजमान श्री ठाकुर बिहारी जी का अभद्रतापूर्ण और हिन्दू आस्थाओं पर चोट करने वाला श्रृंगार किया गया, मार्गदर्शक मण्डल उस कुकृत्य की कड़ी भत्र्सना करता है एवं उत्तर प्रदेश शासन से मांग करता है कि मंदिर प्रशासन को इसके लिए दण्डित किया जाये।
प्रस्ताव -3 : तिरुपति देवस्थानम् में ईसाई गतिविधियां
पवित्र तिरुमला क्षेत्र में ईसाइयों ने अनधिकृत घुसपैठ की है। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि तिरुपति देवस्थानम् और तिरुमला के सातों पर्वतों के हिन्दू चरित्र को सदा सर्वदा संरक्षित और सुरक्षित रखा जायेगा।
मार्गदर्शक मण्डल आन्ध्र प्रदेश सरकार से आग्रह करता है कि वह समय रहते निम्नलिखित मांगों को पूरा करे- 1. पवित्र तिरुमला पर्वतों के 250 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में किसी भी अहिन्दू मत के प्रचार की अनुमति न दे। 2. राज्य सरकार यह घोषित करे कि उपरोक्त सात पर्वत क्षेत्र (250 वर्ग कि.मी.), जो श्री तिरुपति बालाजी के स्वामित्व में आता है, उसमें परिवर्तन करने का किसी को अधिकार नहीं है। 3. तिरुपति देवस्थानम् कोष के गैर धार्मिक कार्यों में किये गये उपयोग पर श्वेत पत्र जारी हो। 4. तिरुमला पर्वतों में “रोप वे” का निर्माण रोका जाए।
प्रस्ताव-4 : जन जागरण यात्राएं
आज आश्रम में स्थिर होने का समय नहीं है। देश, धर्म, अवतार, तीर्थंकरों, गुरु परम्परा व मान्यताओं के साथ-साथ राष्ट्र के तत्वज्ञान व संस्कृति की रक्षा हेतु भारत के 6 लाख ग्रामों में जन जागरण के लिए सन्त यात्राओं के आयोजन की आवश्यकता है। हिन्दू समाज राजनीतिक भ्रमपूर्ण नारों को छोड़कर भ्रष्ट और हिन्दू विरोधी सेकुलर राजनेताओं की घृणित चालों को समझकर “हिन्दू सारा एक” का भाव धारण कर धर्मरक्षा, देशरक्षा हेतु संगठित हो और स्वधर्म का पालन करे। प्रतिनिधि
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