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अंक-सन्दर्भ, 3 सितम्बर, 2006
पञ्चांग
संवत् 2063 वि. – वार ई. सन् 2006
आश्विन शुक्ल 9 रवि 1 अक्तूबर
(श्री दुर्गा नवमी व्रत)
,, 10 सोम 2 ,,
(विजयादशमी, गांधी जयंती)
,, 11 मंगल 3 ,,
,, 12 बुध 4 ,,
(प्रदोष व्रत)
,, 13 गुरु 5 ,,
,, 14 शुक्र 6 ,,
(शरत्पूर्णिमा)
आश्विन पूर्णिमा शनि 7 ,,
(कार्तिक स्नानारम्भ, महर्षि वाल्मीकि जयन्ती)
भारत विरोधी ये भारतीय
श्री असीम कुमार मित्र ने अपने लेख “वन्दे मातरम्… और इसके विरोधी” में कई सवाल खड़े किए हैं। किन्तु सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जो वन्दे मातरम् आजादी की लड़ाई का मूल मंत्र था, जिसको गाते हुए हर मत-पंथ के मानने वालों ने आजादी की लड़ाई में योगदान दिया था, वह अब साम्प्रदायिक कैसे हो गया? क्या वन्दे मातरम् का विरोध करने वाले यह कहेंगे कि उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा इसलिए नहीं लिया था कि वहां वन्दे मातरम् का घोष होता था? यदि इसका उत्तर “हां” में देने का कोई व्यक्ति साहस करता है तो हम उसकी ईमानदारी की तारीफ करेंगे और कहेंगे कि ईमानदारी से वहां चले जाओ, जहां वन्दे मातरम् नहीं गाया जाता हो।
-डा. नारायण भास्कर
50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)
वन्दे मातरम् पर राजनीति करना उचित नहीं। वन्दे मातरम् में मातृभूमि की वन्दना की गई है। वन्दे मातरम् के नारे ने ही देशभक्तों में जोश भरा था और उन्होंने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा था। उन देशभक्तों में केवल हिन्दू ही नहीं, मुसलमान भी थे। इसलिए वन्दे मातरम् पर साम्प्रदायिक होने का आरोप नहीं लगाना चाहिए।
-कुलदीप
190, रेलवे रोड, गाजियाबाद (उ.प्र.)
हमारे यहां ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो राष्ट्र-विरोधी कार्य करते हैं और खुलेआम कहते हैं कि हां, वे राष्ट्रद्रोही हैं। यही लोग वन्दे मातरम् का भी विरोध कर रहे हैं। दुर्भाग्य से इन लोगों को सेकुलर नेताओं का समर्थन प्राप्त है। इनके विरुद्ध व्यापक जन-जागरण की जरुरत है।
-बिधूड़ी ऊधम सिंह आजाद
तेखण्ड (नई दिल्ली)
सम्पादकीय “बोलो वन्दे मातरम्” में स्वतंत्रता की लड़ाई के अमर शहीदों एवं साहित्यकारों को जीवन्त करने का प्रयास किया गया है। आश्चर्य है कि जिस कांग्रेस ने कभी वन्दे मातरम् गायन के लिए अपने अधिवेशन में प्रस्ताव पारित किया था, वही कांग्रेस अब इसके विरोध पर ढुलमुल नीति अपना रही है।
-जगन्नाथ श्रीवास्तव
सिविल कोर्ट, देवरिया (उ.प्र.)
सम्पादकीय सहित अन्य सभी सामग्री, विशेषकर राष्ट्रवादी मुस्लिम महिलाओं एवं पुरुषों के विचारों से स्पष्ट होता है कि वन्दे मातरम् के गायन में कुछ भी ऐसा नहीं है जो इस्लाम के खिलाफ जाता हो। फिर भी सेकुलरवाद के ध्वजवाहक अर्जुन सिंह ने इसके गायन को चन्द मुस्लिम उलेमाओं के विरोध पर अनिवार्य से ऐच्छिक करके एक बार फिर मुस्लिम तुष्टीकरण के समक्ष घुटने टेक दिए।
-रमेश चन्द्र गुप्ता
नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
पश्चिम बंगाल वन्दे मातरम् महामंत्र की जन्मभूमि है। किन्तु कैसी विडम्बना है कि वहां का एक बड़ा वर्ग इस महामंत्र की उपेक्षा करने लगा है। इसके पीछे शायद कम्युनिस्ट विचारधारा है। पिछले दिनों पूरे देश में वन्दे मातरम् का गायन हुआ, किन्तु बंगाल में इसको लेकर कोई विशेष उमंग नहीं दिखी!! वन्दे मातरम् को लेकर सदैव राजनीति हुई है। आजादी से पूर्व मो. अली जिन्ना ने कहा था कि हम वन्दे मातरम् के प्रारंभ के दो अन्तरे ही गाएंगे, क्योंकि आगे के अन्तरे गाने से हमारा इस्लाम खतरे में पड़ जाता है। दूसरी तरफ उसी इस्लाम को मानने वाले अमर शहीद अश्फाक उल्ला खान इस महामंत्र का जीवन भर उद्घोष करते हुए देश के लिए बलिदान हुए।
-संदीप कुमार सोमानी
माधव कृपा, संघ कार्यालय, झुन्झुनु (राजस्थान)
वन्दे मातरम् कोई सामान्य गीत नहीं है। जो लोग इसे नहीं गाना चाहते हैं, वे कभी यह भी तो कह सकते हैं कि “गांधी जी, नेताजी, राजगुरु, तिलक आदि को सम्मान क्यों दें, वे तो हिन्दू थे। हम तो केवल मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों को ही सम्मान देंगे।” ऐसी स्थिति पैदा न हो, इसके लिए गंभीरता से विचार करना होगा।
-नीरज नीखरा
1302, न्यू रायगंज, सीपरी बाजार
झांसी (उ.प्र.)
आजादी के बाद भिन्न-भिन्न भाषाओं, संस्कारों, रीति-रिवाजों में बिखरे इस देश को जन-गण-मन, वन्दे मातरम् और ऐसे ही राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत तरानों की गूंज ने फिर से एक सूत्र में पिरोने का काम किया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों के भाषा-भाषी भेद मिट गये और वे संगठित होते चले गये। इस गीत में मातृभूमि ने जो सम्पदा हमें प्रदान की है, उस उपकार के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की भावना छिपी है। और करें भी क्यों नहीं, जिस धरती मां की गोद से वायु, जल, वनस्पति, खनिज व सबसे बढ़कर जीवन दिया है, क्या ऐसी धरती मां (मातृभूमि) के प्रति हमें प्रेम से नहीं भर जाना चाहिए?
-चन्द्रभान वर्मा
सूरत (गुजरात)
तुष्टीकरण की नीति अपना कर कांग्रेस पुन: एक बार वन्दे मातरम् को अपमानित कर रही है। इसी कांग्रेस ने पहले मूर्ति पूजा का बहाना बनाकर वन्दे मातरम् को बांटा था, तो अब इसके गायन को ऐच्छिक बनाकर कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रही है। संप्रग सरकार आए दिन स्वाधीनता सेनानियों का भी अपमान कर रही है। यह सरकार किसी दिन वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत के पद से ही हटा दे तो आश्चर्य नहीं।
-देश दीपक सिंह
क्वा.- 2सी, सड़क-33, सेक्टर-8, भिलाई (म.प्र.)
स्वतंत्रता संग्राम के समय हर समारोह वन्दे मातरम् के गायन से प्रारंभ होता था। क्रांतिकारियों के लिए यह गीत प्रेरणा स्रोत रहा है। लेकिन कुछ कट्टरपंथियों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है, जो उचित नहीं है। हमारे मत-पंथ भिन्न हो सकते हैं लेकिन देशभक्ति भिन्न नहीं हो सकती। इसीलिए देशभक्ति से जुड़े निर्देश एवं नियमों का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है। इसमें किसी को छूट नहीं दी जा सकती।
-चम्पत राय जैन
4 बी, रेस कोर्स, देहरादून (उत्तराञ्चल)
भारत के प्रगतिशील मुस्लिम समाज को श्री मुख्तार अब्बास नकवी और श्री आरिफ मोहम्मद खान जैसे नेताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिनकी दृष्टि में राष्ट्रवाद सर्वोपरि है। भारत का कोई भी पंथ यहां तक कि इस्लाम भी राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् के प्रति निष्ठा व्यक्त करने की मनाही नहीं करता, क्योंकि इन प्रतीकों के प्रति सम्मान व्यक्त करना या राष्ट्रीय निष्ठा के साथ वन्दे मातरम् गाना राष्ट्र की वन्दना है। राष्ट्र की वन्दना के लिए कोई पंथ, कोई पूजा पद्धति और किसी प्रकार की व्यक्तिगत निष्ठा आड़े नहीं आ सकती, क्योंकि राष्ट्र सर्वोपरि है।
-डा. विष्णु प्रकाश पाण्डेय
एस.वी. कालेज, अलीगढ़ (उ.प्र.)
वन्दे मातरम् का गायन आज तक ऐच्छिक घोषित नहीं हुआ था, किन्तु कांग्रेस के राज में ऐसा हुआ। जो सरकार चंद कट्टरपंथियों के विरोध के कारण राष्ट्रगीत के गायन को ऐच्छिक कर सकती है, उसके हाथों इतना बड़ा देश सुरक्षित कैसे रह सकता है? वन्दे मातरम् का किसी पंथ से कोई सम्बंध नहीं है, बल्कि यह अपने राष्ट्र के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
-कपिल
3डी- 56 बी.पी., एन. आई.टी.
फरीदाबाद (हरियाणा)
पुरस्कृत पत्र
इनसे क्या अपेक्षा की जाए?
राष्ट्र को स्नेहमयी मां मानकर गाया जाने वाला वन्दे मातरम् इस्लाम विरोधी कैसे हो सकता है? यह बात समझ में नहीं आती। दारूल उलूम देवबन्द के मौलाना जहां इसे इस्लाम विरोधी बताते हैं, वहीं फारसी के विद्वान एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने 1931 के कांग्रेस अधिवेशन में वन्दे मातरम् को राष्ट्र गीत के रूप में प्रस्तुत किया था। इतना ही नहीं उन्होंने इसे हिन्दूवादी और इस्लाम विरोधी बताने वालों को शास्त्रार्थ कर ऐसा सिद्ध करने की चुनौती दी थी। उल्लेखनीय बात यह भी है कि कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में वन्दे मातरम् को अनिवार्य घोषित कराने वाले इस्लामी विद्वान मौलाना रहीमतुल्ला सयानी थे, जो 1896 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे। इन्हीं मौलाना सयानी के आमंत्रण पर कविवर रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने कांग्रेस अधिवेशन के मंच से वन्दे मातरम् गाया था। 1906 के बंगभंग आन्दोलन के समय ब्रिटिश सरकार के विरोध के पीछे वन्दे मातरम् ही प्रेरणा स्रोत था। किन्तु अब कुछ लोग इसके गायन से भी परहेज करते हैं और इनका साथ सेकुलर नेता देते हैं। जिन्हें चन्द्रशेखर आजाद आतंकवादी, महाराणा प्रताप और महाकवि भूषण साम्प्रदायिक दिखाई देते हों उनसे क्या अपेक्षा की जाए? शहीद अश्फाक उल्ला खां, ब्रिगेडियर उस्मान और वीर अब्दुल हमीद इसी वन्दे मातरम् के अमर सेनानी हैं। स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर ए.आर. रहमान द्वारा वन्दे मातरम् गीत गाया गया था। बाद में उसका कैसेट भी बना और खूब बिका। इसी से वन्दे मातरम् की सार्वजनिक स्वीकार्यता सिद्ध होती है। मैं तो कहना चाहूंगा-
देशभक्ति है पाप यदि तो,
मैं हूं पापी घोर भयंकर।
और यदि यह पुण्य कर्म तो,
मेरा है अधिकार पुण्य पर।।
-डा. रुद्रदत्त चतुर्वेदी
19 “क”, हीरापुरी कालोनी,
विश्वविद्यालय परिसर, गोरखपुर (उ.प्र.)
हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।-सं.
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