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– राजेन्द्र निशेशअपनी हीपरछाईं के पीछे भागता आदमीतृष्णाओं की अंधी गली मेंभटक जाता है अक्सर।मरीचिकाओं का छलावासम्मोहन की जादुई छड़ी लिएउसे अपनी उंगलियों परनचाता रहता हैउम्र भर।सपनों के सौदागर परनींद में भी जागते हुएआकांक्षाओं की बेड़ियां पहनेकभी गहरे में उतर
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