संत रविदास चेतना यात्रा
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संत रविदास चेतना यात्रा

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Jan 1, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Jan 2006 00:00:00

छुआछूत नहीं सहेंगे, हिन्दू हम सब एक रहेंगे

– ब्राहृभिक्षु

स्वामी रामानन्द के परम शिष्य एवं प्रसिद्ध सन्त रविदास जी की जयन्ती पर 27 नवम्बर से 8 दिसम्बर तक “संत गुरु रविदास चेतना यात्रा” आयोजित हुई। यह यात्रा संत रविदास की समाधिस्थली चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रारम्भ हुई और जन्मस्थल वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में पूर्ण हुई। चेतना यात्रा का शुभारम्भ चित्तौड़गढ़ के श्री सांवरिया सेठ मन्दिर के विशाल प्रांगण में लगभग 200 संतों की उपस्थिति में हुआ। इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल एवं संत रविदास जन्मस्थल मंदिर के महंत श्री मेवादास ने दो रथों की आरती उतारी और वे रथ इस “चेतना यात्रा” के लिए समर्पित किए गए। “जय श्रीराम- जय रविदास” के उद्घोष के साथ ही दोनों रथ चल पड़े।

एक रथ पर संत रविदास की संपूर्ण ग्रन्थावली रखी हुई थी। संत चंवर डुलाते हुए सतत् पाठ कर रहे थे। दूसरे रथ में श्रीकृष्ण भगवान की संगमरमर की त्रिभंगी प्रतिमा, महान भक्त मीराबाई की एक भावपूर्ण मूर्ति एवं संत रविदास की सजीव-सटीक दिव्यमूर्ति जन-जन को मोहित कर रही थी। सर्वत्र लोगों ने इन प्रतिमाओं पर फूल बरसाए, शंख ध्वनि के साथ नमन कर जगह-जगह यात्रा का स्वागत हुआ। पहले यह यात्रा चित्तौड़गढ़ के उस किले में पहुंची, जहां मीराबाई ने श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित की थी। उसी के साथ में संत रविदास जी की समाधिस्थली भी है। उल्लेखनीय है कि मेवाड़ की महारानी के निमंत्रण पर संत रविदास जी यहां आए थे। उनकी सिद्धता देखकर उन्हें राजगुरु का पद दिया गया था। यहां पर हवन-पूजन हुआ। इसके बाद समीप के एक मैदान में सभा हुई। यहां हजारों की संख्या में स्थानीय लोग उपस्थित थे। “हिन्दू-हिन्दू एक रहें, भेदभाव को नहीं सहें”, “छुआछूत दूर करो-दूर करो-दूर करो” जैसे नारों से आकाश गूंज रहा था। इसी बीच संतों के प्रवचन प्रारंभ हुए। श्री राधे बाबा, श्री ब्राहृ वैरागी, श्री प्रेमदास, श्री दिव्यानंद, श्री रामफल सिंह के बाद श्री अशोक सिंहल एवं राजस्थान की मुख्यमंत्री ने भी लोगों को सम्बोधित किया। श्रीमती वंसुधरा राजे ने कहा- “हमें ऊंच-नीच, छुआछूत, अमीर-गरीब के अंतर को समाप्त करके समतामूलक समाज की रचना करनी है। इसमें देर नहीं होनी चाहिए। हिन्दू दर्शन के उच्च उदार विचारों के साथ जुड़ा सामाजिक भेदभाव एक रोग की तरह है। आज संत इसको दूर करने के लिए आगे आए हैं। मुझे प्रसन्नता है और पूर्ण विश्वास है कि हिन्दू समाज का यह रोग सदा के लिए समाप्त होगा।”

इसके बाद श्री अशोक सिंहल ने कहा, “यह यात्रा हिन्दू समाज के भेदभाव को दूर करने वाली अखंड यात्रा सिद्ध होगी। जब तक यह अमानवीय भेदभाव दूर नहीं हो जाता तब तक संतों को यह अभियान-आंदोलन चलाते रहना चाहिए।” उन्होंने कहा, यह छुआछूत-अस्पृश्यता इस्लाम की देन है। जो मुगलों का विरोध करते रहे, संघर्ष करते रहे, वे ही हारने पर शासकों द्वारा बंदी बनाए गए। जबरदस्ती मत परिवर्तन न स्वीकारने के कारण ही मुगल शासकों ने उन्हें अपमानित कर हेय कार्यों में लगाया। मेहतर, चर्मकार, तथा सुअर के साथ रहने वाली जातियों का जन्म भारत में मुगलों की देन है। उन्होंने कहा, “जिन्हें आज “चर्मकार” कहा जाता है, वे वास्तव में “चंवर वंश” के क्षत्रिय थे। ये स्वतंत्रता सेनानी थे, आज इनका सम्मान होना चाहिए।” इसके बाद यह यात्रा चन्दोरिया, हमीरगढ़ होते हुए सायं भीलवाड़ा पहुंची। अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधियों एवं विशाल जनसमूह ने यहां यात्रा का भव्य स्वागत किया। उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए श्री ब्राहृ वैरागी जी ने कहा- संत रविदास चेतना यात्रा-चेतावनी, चिन्तन, चिन्ता के साथ, हिन्दू समाज की चिति (आत्मा) की खोज की यात्रा है।”

दूसरे दिन यह यात्रा अजमेर, किशनगढ़ होते हुए जयपुर पहुंची। सायं संतों का विशाल जुलूस एक धर्मसभा में बदला। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने कहा, “छुआछूत केवल भाषण एवं कथनों से दूर नहीं होगा। इसे व्यावहारिक रूप देना होगा। परस्पर रोटी-बेटी के व्यवहार के लिए तैयार रहना होगा।” दूसरे दिन दौसा, भरतपुर होते यह यात्रा आगरा पहुंची। यहां विश्व हिन्दू परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आचार्य गिरिराज किशोर ने यात्रा को सम्बोधित किया। इसके बाद यात्रा ग्वालियर (मध्य प्रदेश) पहुंची। यहां वेस्टइंडीज-त्रिनीदाद से आईं अनंदा बहन ने कहा, हिन्दू समाज एक होगा तो राष्ट्र मजबूत होगा और पूरा विश्व हिन्दू की आवाज सुनेगा। यह तभी संभव है जब छुआछूत हटाकर हम सब एक हो जाएं। इसके बाद यह यात्रा, सीतापुर होते हुए झांसी आई। यहां युगपुरुष स्वामी परमानंद जी महाराज, स्वामी महावीर एवं निरंजना साध्वी जी ने अपने विचार रखे। फिर श्री मैथिलीशरण गुप्त (राष्ट्रकवि) के गांव चिरंगाव होते हुए उरई, कालपी, पुखरायां, कानपुर होते हुए यात्रा फतेहपुर पहुंची। यहां विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री डा. प्रवीण तोगड़िया ने यात्रियों का हौसला बढ़ाया।

यात्रा इलाहाबाद, गोपीगंज होते हुए 8 दिसम्बर को वाराणसी में संत रविदास की जन्मस्थली पर अपार भीड़ के साथ पहुंची। यहां भजन-कीर्तन के बाद कई संतों ने अपने विचार रखे। श्री ब्राहृ वैरागी ने विदेशस्थ हिन्दुओं में जागरण के अनेक प्रेरणाप्रद संस्मरण सुनाए। श्री प्रेमदास ने हिन्दू समाज की सभी कमियों-कमजोरियों को उजागर करते हुए उन्हें तत्काल दूर करने का आह्वान किया। श्री राधे बाबा ने संस्कार-सहयोग, समता पर जोर दिया। श्री विजय सोनकर शास्त्री ने कहा, “छुआछूत पाप है, अधर्म है।” अंत में महंत श्री मेवादास ने “हिन्दू समाज को मजबूत करने के लिए संतशक्ति के साथ-साथ नई पीढ़ी का भी आह्वान किया।” उन्होंने कहा, “हिन्दू समाज छुआछूत के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह घिर गया है जिसे पूरी तरह से तोड़ने की जरूरत है।” इस यात्रा को जगह-जगह पर अनेक सन्त-महात्माओं एवं विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों का आशीर्वाद मिला। इनमें प्रमुख हैं-स्वामी हंसदास जी, साधु रामबालक, स्वामी अशोक गिरी, स्वामी मुक्तानन्द, श्री कौशल किशोर महाराज, स्वामी रामेश्वरानंद, स्वामी ओमानंद, श्री बद्रीदास जी, श्री ओंकार भावे, श्री सुधीरदास जी महाराज, श्री पंकज, श्री बालकृष्ण नायक, श्री युगल किशोर आदि।

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