उड़ीसा में बढ़ती नक्सली हिंसा
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उड़ीसा में बढ़ती नक्सली हिंसा

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Dec 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Dec 2005 00:00:00

सूरज छिपते ही छिप जाती है पुलिस भीपंचानन अग्रवालउड़ीसा का जनजातीय बहुल जिला है सम्बलपुर। पिछले दिनों इस जिले के जुजुंमुरा खण्ड की चामुण्डा न्याय पंचायत के बर्दा ग्राम के दौरे पर जब उड़ीसा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री जुएल ओराम के साथ एक प्रतिनिधि मण्डल गया तो ग्रामीणों ने उन्हें नक्सली आतंक के किस्से सुनाए। गांव वालों ने बताया कि इस क्षेत्र में मेघपाल गांव के सरपंच केदार सिंह की हत्या के बाद से नक्सली हिंसा बढ़ गयी है। आस-पास के ग्रामों में भी नक्सली आतंक इस कदर पसरा है कि ग्रामीण अब पुलिस से शिकायत नहीं करते। नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों से खुलेआम वसूली तो हो ही रही है, सरकार और व्यवस्था के विरुद्ध भी विद्रोह करने के लिए लोगों को भड़काया जा रहा है। गत 17 मई को नक्सलियों ने बदई ग्राम के सरपंच जयराम भोई और एक स्थानीय ठेकेदार राजीव पाणिग्रही का अपहरण कर लिया और उनसे विकास कार्यों के लिए आवंटित धन में से 40 प्रतिशत देने की मांग की। पुलिस को सूचना के बाद भी इनकी सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं हुआ अन्तत: दोनों नक्सलियों की कृपा पर ही 24 घंटे बाद छूट सके।इसी प्रकार गत 27 मई की रात, लगभग 10.30 बजे आठ-दस सशस्त्र माओवादी, जिनमें से अधिकांश हिन्दी बोलते थे, ने बन्दूक की नोक पर आधा दर्जन गांव वालों को घेरा और उनसे कहा कि वे सरपंच को उसके घर से बाहर लाएं। अन्य गांव वाले शोर सुनकर सरपंच के घर के पास जुट गए। गांव वालों ने सशस्त्र नक्सलवादियों से कुछ बातचीत करनी चाही तो उनकी बन्दूकें आग उगलने लगीं। परिणामत: कान्हा साहू, दिबाकर साहू, अश्विनी बैरिक मौके पर ही मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। गांव के ही ऋषिकेश साहू और नेपाल पात्रा ने जब यह सूचना मेघपाल की पुलिस चौकी को दी तो पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की बजाय उन दोनों को ही सुबह तक थाने पर बैठाए रखा। पुलिस अगले दिन दोपहर बाद ही गांव पहुंची। वैसे भी पुलिसकर्मियों को ऊपर से यह निर्देश है कि शाम ढलने के बाद वह गांवों की ओर रुख न करें। वस्तुत: गांववासियों का स्थानीय पुलिस पर से विश्वास पूर्णतया उठ चुका है। उड़ीसा के जनजातीय बहुल इलाकों में “लाल सलाम” की बढ़ती गूंज से शायद राज्य सरकार अभी भी अनजान बनी हुई है।NEWS

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