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पाठकीय

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Nov 12, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 13 नवम्बर, 2005आतंक के विरुद्ध जनमतपञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005 मार्गशीर्ष शुक्ल 11 रवि 11 दिसम्बर, 05 ,, ,, 12 सोम 12 ,, ,, ,, 13 मंगल 13 ,, ,, ,, 14 बुध 14 ,, पूर्णिमा गुरु 15 ,, पौष कृष्ण 1 शुक्र 16 “” ,, ,, 2 शनि 17 “” आवरण कथा “हिम्मती जनता, डरपोक नेता” पढ़ी। सचमुच सरकार और नेताओं की लापरवाही एवं निष्क्रियता के कारण आतंकवादी देश की एकता और अखंडता के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। अब समय दलगत आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, बल्कि आसन्न संकट पर गम्भीर चिंतन कर जागने का है। जब हम अंग्रेजों को खदेड़ सकते हैं तो मुट्ठीभर आतंकवादियों की क्या हैसियत? उनका सर्वनाश करने के लिए बस संकल्पबद्ध होने की आवश्यकता है।- चंद्रकान्त यादवचांदीतारा, साहूपुरी, चन्दौली (उ.प्र.)नेता डरपोक नहीं, बल्कि सत्ता के लालची और स्वार्थी हैं। इन्हीं कारणों से ये गलत-सही को नजरअंदाज करते हुए केवल गद्दी पर नजर गड़ाए रहते हैं। इसकी शुरुआत कांग्रेसी नेताओं ने की थी। इसी परम्परा का पालन मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, मायावती, कम्युनिस्ट एवं अन्य तथाकथित सेकुलर नेता कर रहे हैं। इनकी नीतियों के कारण भारत में आतंकवादी गतिविधियां और मतान्तरण में लगीं ईसाई मिशनरियां फल-फूल रही हैं। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को अपमानित और विघटनकारी शक्तियों को पुरस्कृत किया जा रहा है।- प्रमोद वालसांगकर,1-10-19,पथ सं.- 8ए, द्वारकापुरम, दिलसुखनगर, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश)आतंकवाद के विरुद्ध सरकार की ढुलमुल नीति और दिल्ली पुलिस की लापरवाही ने अनेक महिलाओं को विधवा बना डाला और अनेक बच्चों के सिर से मां-बाप का साया हटा दिया। हालांकि इस छद्म लड़ाई का सामना कुछ कठिन है, पर सजग रह कर इस चुनौती से निपटा जा सकता है। इस दृष्टि से दिल्ली पुलिस भी कोई कम दोषी नहीं है। जगह-जगह अवरोधक लगाकर पुलिस कागजों की छानबीन करती है और कागज पूरे न हों तो कुछ ले-देकर आगे जाने देती है। इसी आड़ में आतंकवादी भी आराम से अपना काम कर जाते हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान अभी भी आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है और हम नियंत्रण रेखा खोलकर वहां सहायता पहुंचा रहे हैं। मानवता के नाते यह कदम सही हो सकता है, परन्तु पाकिस्तान तो मानवता को ताक पर रख कर अपनी योजना को आतंकवाद के माध्यम से आज भी आगे बढ़ा रहा है।- वीरेन्द्र सिंह जरयाल,5809,सुभाष मोहल्ला, गांधी नगर (दिल्ली)दिशादर्शन के अंतर्गत श्री तरुण विजय का आलेख “हिम्मती जनता, डरपोक नेता”, श्री देवेन्द्र स्वरूप का मंथन “एक संवेदनाशून्य समाज की दीवाली”, श्री वेदप्रताप वैदिक का लेख “नेता तो हैं ही बुजदिल, जनता भी दमदार नहीं” तथा श्री प्रकाश सिंह का लेख “शक्ति दिखाओ तभी मान बढ़ेगा और आतंकवाद रुकेगा” पढ़े, तो वाल्मीकि के राम का स्मरण आया, जिन्होंने रावण वध के बाद सीता जी से कहा था, “अपमान का मार्जन करने के लिए मनुष्य का जो कर्तव्य होता है, उसे मैंने अपने मान की रक्षा के लिए रावण को मारकर पूरा कर दिया है।”हम राम के वंशज हैं। अपमान को सहते रहना हमारा चरित्र नहीं होना चाहिए।- शंभुदयाल, तिवारीग्राम व पत्रालय- बलेह, जिला-सागर (म.प्र.)जीते के.जे. रावकठिन चुनौती थी मगर, जीते के.जे.रावशांतिपूर्ण निबटे वहां, अबकी बार चुनाव।अबकी बार चुनाव, भरोसा पुन: जमायाठोस प्रशासन कैसा होता है यह बतलाया।कह “प्रशांत” जनता ने लालू को ठुकरायाऔ नीतिश को सिर-आंखों पर ला बैठाया।।- प्रशांतबम काण्ड के सन्दर्भ में जितने भी विचार प्रकाशित किए गए हैं, सबने पाकिस्तान को दोषी ठहराया है। परन्तु जब भी ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं हमारी सेकुलर सरकार मुआवजे की खानापूर्ति करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है और जल्दी ही बात आई-गई हो जाती है। कुछ समय बाद जनता भी खामोश होकर बैठ जाती है। अकेले दिल्ली में 1996 के बाद से अब तक कुल 19 आतंकवादी हमले हो चुके हैं। 1994 से अब तक सम्पूर्ण भारत में आतंकवादी हिंसा में 50,000 निर्दोषों की आहुति दी जा चुकी है। यह इस बात को ही दर्शाता है कि वर्तमान लचर हालात के रहते भारत की कथित सेकुलर सरकार आतंकवाद को परास्त करने में सक्षम नहीं है, जो दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ-साथ देश की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा खतरा है।- रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)”पंजाब केसरी” के सम्पादक श्री अश्विनी कुमार के विचार “आतंकवाद से इतने लड़े, पाकिस्तान से युद्ध ही लड़ लें तो हर्ज क्या है?” से मैं सहमत हूं। वास्तव में इस परोक्ष युद्ध का देश को बहुत बड़ा मूल्य चुकाना पड़ रहा है। प्राय: प्रतिदिन हमारे वीर जवान इन दुष्टों का मुकाबला करते हुए शहीद हो रहे हैं, तो दूसरी ओर आतंकवाद को मिटाने के लिए करोड़ों रुपए प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। इतना खर्च तो एक खुली लड़ाई में भी नहीं होता है।- अजय कुमार,बनबीर टोला,जमनीपहाड़पुर, जिला-गोड्डा (झारखंड)वास्तव में एक बार पाकिस्तान से सख्ती से निपटा जाए तो हमारी अनेक समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। इतिहास को देखते हुए पाकिस्तान पर विश्वास नहीं करना चाहिए। संसद, अक्षरधाम और रघुनाथ मंदिर पर हुए हमले तथा अमरनाथ एवं वैष्णो देवी की यात्रा को बाधित करने के प्रयासों को कौन भूल सकता है? पर हमारे नेता सब कुछ भूलकर पाकिस्तान-पाकिस्तान की रट लगा रहे हैं।- विनोद कुमार शर्माभूरा, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)पूरा अंक पठनीय है। पर देश के कितने लोग इसे पढ़ेंगे और उनमें स्वाभिमान जागृत होगा? श्री प्रकाश सिंह का लेख एक देशभक्त प्रशासनिक अधिकारी की अंतर-व्यथा और उनकी असहाय स्थिति का जीता-जागता प्रमाण है।- अनंत शर्माडी.- 1865, सुदामा नगर, इन्दौर (म.प्र.)पता नहीं क्यों भारतीय जनमानस अन्याय, भेदभाव और आतंकवाद के विरोध में अपने गुस्से का इजहार नहीं कर पाता है? जबकि चहुंओर मजहब के नाम पर हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है और जिन पर राष्ट्र की सुरक्षा की महती जिम्मेदारी है, वे ऐसी घटनाओं पर अपने वोट-बैंक की रक्षा के लिए लीपापोती कर जाते हैं। उन्हें तो बस, पाकिस्तान को दोस्ती के नाम पर नित नई सौगातें देनी हैं। छद्म सेकुलरवाद और उसे हवा देने में जुटे माओवादी दोनों देश के लिए खतरा हैं।- गजानन पाण्डेय, म.नं. 2-4-936,निम्बोली अड्डा, काचीगुडा, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश)दिल्ली बम धमाकों से अनेक हिन्दू परिवारों के चिराग सदा-सदा के लिए बुझ गए तथा उनकी दीपावली अंधकारमय हो गई। जहां-जहां धमाके हुए उन स्थानों पर भी खून के ऐसे धब्बे लग गए, जिनका निशान अब नहीं मिट सकता है। आतंकवादी घटनाओं में अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं। इन घटनाओं से कुछ प्रश्न उठते हैं-1. इस प्रकार के नरसंहार हिन्दुओं के पर्व पर ही क्यों किए जाते हैं? 2. करोड़ों हिन्दू मारे जा रहे हैं पर हिन्दू समाज शान्त क्यों है? 3. दिल्ली में विस्फोटक पदार्थ कैसे पहुंचते हैं तथा कहां रखे जाते हैं? 4. पुलिस तथा खुफिया तंत्र क्या करती है? ये ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनके उत्तर की तलाश हिन्दू समाज को अविलंब करनी चाहिए। आखिर इस प्रकार की हत्याएं कब तक होती रहेंगी तथा पूरा हिन्दू समुदाय अब और कितना जुल्म सहेगा? अब एक ही रास्ता है, हर जुल्म का मुंहतोड़ जवाब दो।- डा. जनार्दन सिंहशिवधाम, करेरु बाजार, पो.- करेरु,जिला- फैजाबाद (उ.प्र.)कृपया ध्यान दें”पं. दीनदयाल उपाध्याय” पुस्तक में पुस्तक छापने वालों ने बजरंगशरण तिवारी का नाम बजरंगीशरण तिवारी लिखा। पर पाञ्चजन्य ने इस पुस्तक की समीक्षा में उनका नाम बहुरंगीशरण तिवारी कर दिया। कृपया ध्यान दें।- विजय कुमारराष्ट्रधर्म, राजेन्द्र नगर, लखनऊ (उ.प्र.)देवनागरी कम्प्यूटरपाठकीय में भूपेन्द्र राठौर का पत्र “हिन्दी के लिए एक ही कुंजीपटल हो” पढ़ा। उनके विचार समयोचित हैं। मैंने इस विषय में काफी शोधकार्य किया है। अपने सीमित साधनों और उपलब्ध समय का यथासम्भव उपयोग करते हुए मैंने एक ऐसे कुंजीपटल का प्रारूप तैयार किया है, जो संगणकों में देवनागरी में “डाटा प्रोसेसिंग” करने की दृष्टि से बहुत उपयुक्त है। इसमें साधारण प्रचलित गोदरेज या रेमिंगटन कुंजीपटल में तोड़े जाने वाले अक्षरों जैसे क्ष, ख, भ, ध, घ आदि और मात्राओं जैसे आदि के बजाय प्रत्येक अक्षर को पूरा और आधा टंकित करने के लिए अलग-अलग कुंजियां हैं। इसमें कोई अक्षर अनावश्यक रूप से तोड़ा नहीं जाता है और देवनागरी में “डाटा प्रोसेसिंग” जैसे नामों को वर्णमाला के क्रम में लगाना और छापना (जो फिलहाल बहुत जटिल कार्य है) भी सरलता से किया जा सकता है। मैंने अपने शोधकार्य के बारे में कई लेख आदि यत्र-तत्र प्रकाशित कराए हैं। परन्तु उचित प्रोत्साहन के अभाव में सारा कार्य कागजों पर ही है। यदि मेरे कार्य का समग्र मूल्यांकन हो और उचित प्रोत्साहन मिले, तो अत्यन्त कम समय में ही हम वास्तविक देवनागरी कम्प्यूटर तैयार कर सकते हैं, जिन पर कोई भी व्यक्ति अंग्रेजी का एक शब्द जाने बिना भी सरलतापूर्वक कार्य कर सकेगा।- विजय कुमार सिंघल144, सेक्टर 12-ए, पंचकूला-134113जनमनपाञ्चजन्य के अंतरताना संस्करण पर अब नियमित रूप से जनमत सर्वेक्षण भी किया जाता है। पाठकों से आग्रह है कि वे अधिक से अधिक मित्रों तक पाञ्चजन्य के अंतरताना संस्करण का पता भेजें और साथ ही पाञ्चजन्य के अंत:क्षेत्र को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए हमें इस पते पर अपने सुझाव लिख भेजें -पाञ्चजन्य अंतरताना संस्करणद्वारा सम्पादक पाञ्चजन्यसंस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, नई दिल्ली-110055अणु डाक – editor@panchjanya.comअंतरताना – www.panchjanya.comपिछले सप्ताह हमने अंतरताना संस्करण में प्रश्न किया था कि भारतीय परमाणु नीति की आलोचना करने वाले वामपंथी ईरान की परमाणु नीति के पक्ष में हैं। इसके पीछे क्या कारण है -(अ) मुस्लिम मतदाताओं को रिझाना(आ) अमरीका का विरोध(इ) देश-विरोधी सोचइस प्रश्न के भारी संख्या में उत्तर प्राप्त हुए हैं।अ. – – – – – – – – – – – 58.54 प्रतिशतआ. – – – – – – – – – 31.71 प्रतिशतइ. – – – – – – – – – 9.76 प्रतिशतइस सप्ताह का प्रश्न है -गांगुली की क्रिकेट टीम में वापसी क्यों हुई?(अ) उसकी योग्यता के कारण(आ) खेल प्रेमियों का दबाव(इ) क्रिकेट की राजनीतिअपना मत www.panchjanya.com पर जनमन के बक्से में डालें।NEWS

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