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माली बिना उगे “वनफूल”- आचार्य रघुनाथ भट्टपुस्तक का नाम : वनफूललेखक : डा. रमानाथ त्रिपाठीपृष्ठ : 290, मूल्य : 275 रुपएप्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्स,कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006बीहड़ों से घिरे एक छोटे से गांव क्योंटरा के निवासी और रुदौली गांव के प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर पं. रामनारायण त्रिपाठी के संस्कारी घर में जन्मे बालक रमानाथ ने अपने पैरों पर खड़े रहकर शिक्षा-जगत के अनेक सोपानों को दृढ़ संकल्प और अपार आत्मविश्वास के साथ लांघा। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति प्राप्त की। इस संघर्षमयी यात्रा में उनको न कोई सहारा मिला न कोई मार्गदर्शक। वे अपने मार्गदर्शक स्वयं थे। उनके शब्दों में कहें तो – “रबी की फसल में चना बोया जाता है, कभी जौ भी। खेत जोतते समय पठारी धरती पर बड़े-बड़े ढेले उभर आते हैं। उनके बीच चने का पौधा हवा पीता हुआ खूब लहराता है। यह बिना सिंचाई के भी जिन्दा रहता है। मैंने पाया कि इसी पठारी चने के समान मेरा व्यक्तित्व रहा है। विषम परिस्थितियों के बीच संघर्ष करता हुआ मैं आगे बढ़ा हूं। मुझे किसी समर्थ व्यक्ति का सहारा प्राय: नहीं ही मिला है।” (पृ. 9) वास्तव में डा. त्रिपाठी ने अपनी इस यात्रा के दौरान बाहरी और भीतरी झंझावातों का, आंधी और तूफानों का, आतंकों और कष्टों का जिस निर्भयता से डटकर मुकाबला किया उसका अत्यन्त रोचक और प्रेरक वर्णन इस आत्मकथा की पहली उपलब्धि है। वास्तव में यह आत्मकथा एक ओर संकल्पित मन के लक्ष्य की ओर पहुंचने की दृढ़ आस्था की प्रेरक कहानी है तो दूसरी ओर सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक माहौल की भी खट्टी- मीठी कथा है। विश्वास है कि इसका दूसरा भाग भी लेखक इतनी ही रोचकता और सम्पन्नता से प्रस्तुत करेगा। यह आत्मकथा पठनीय है, संग्रहणीय तथा ज्ञानवर्धक भी है।- आचार्य रघुनाथ भट्टNEWS
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