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कार्बी आंग्लांग में कश्मीर से बुरे हाल

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Nov 12, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

हत्याएं, नरसंहारमगर दिल्ली चुपविद्रोह और उपेक्षा- आलोक गोस्वामीअसम (बाईं ओर) के नक्शे में पूर्वी और पश्चिमी कार्बी आंग्लांग जिलों का बड़ा चित्र (दाएं) जिसमें हिंसाग्रस्त ःलाके (रेखांकित) प्रमुखता से दिखाए गए हैं।26 सितम्बर, 2005 को असम के कार्बी-आंग्लांग जिले में जातीय संघर्ष की जो आग भड़कायी गई थी वह अब तक 100 से अधिक लोगों की जान लील चुकी है। लेकिन दुख की बात तो यह है कि उस आग की तपिश अब भी बरकरार है। कार्बी और दिमासा जनजातियों में दूरियां बढ़ाने का किसी तीसरी ताकत का षडंत्र अब भी जारी है। यह तीसरी ताकत कौन है? किसको कार्बी-दिमासा संघर्ष का सीधा लाभ पहुंचता है? स्थानीय कार्बी-दिमासा प्रतिनिधियों और जनजातीय संस्कृति के विशेषज्ञों की राय है कि नि:संदेह इसमें उत्तर पूर्व को देश से काटने की योजना चला रहे नागा विद्रोही गुट एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) और चर्च शामिल है। क्योंकि प्राचीन काल से ही कार्बी और दिमासा आपस में प्रेम और सद्भाव से रहते आए हैं, उनमें पारिवारिक सम्बंध हैं अत: वे एक-दूसरे की हत्या नहीं कर सकते। वहां गत सितम्बर से अब तक जितनी भी हिंसा की घटनाएं हुई हैं उनमें अपराधियों का कोई सुराग नहीं मिला है।ताजा घटना 21 नवम्बर को ही घटी है जिससे एन.सी. हिल्स जिले में बसे कार्बी और दिमासा समाजों में रोष उबल पड़ा है। वहां से एक 22 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल उत्तर-पूर्व जनजाति धर्म एवं संस्कृति संरक्षण मंच के अध्यक्ष श्री बिक्रम बहादुर जमातिया के नेतृत्व में गत दिनों नई दिल्ली आया था। प्रतिनिधिमण्डल में कार्बी और दिमासा जनजातियों के सदस्य शामिल थे। 27 नवम्बर को यह प्रतिनिधिमण्डल श्री जमातिया के नेतृत्व में सांसद फग्गन सिंह कुलहस्ते के साथ केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल से मिला और उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराया। प्रतिनिधिमण्डल ने गृहमंत्री को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि कार्बी आंग्लांग और एन.सी. हिल्स जिलों में पिछले दिनों हुई हिंसा की सी.बी.आई. से जांच कराई जाए ताकि असली अपराधियों का चेहरा बेनकाब हो और जनजातियों में आपस में एक-दूसरे पर संदेह का कोई कारण न बचे। ज्ञापन में कहा गया है कि इसमें दो राय नहीं है कि नागा विद्रोह के पीछे चर्च का ही उकसावा रहता है और उत्तर-पूर्व में अलगाववाद तथा विद्रोह का जनक चर्च ही है। नागालिम की मांग से स्थिति और बिगड़ी है जिससे नागा और गैर नागा जनजातियों में तनाव व संघर्ष का भाव पैदा हुआ है। सुलगते उत्तर-पूर्व में बंगलादेशी घुसपैठ से विभिन्न गुटों में झगड़े बढ़े हैं।चर्चिम में कार्बी बस यात्रियों का वीभत्स नरसंहारकेन्द्रीय गृहमंत्री को उत्तर-पूर्व की परिस्थिति की जानकारी देते हुए कहा गया है कि समय के साथ राजनीतिक और आर्थिक कारण प्रभावी हो गए हैं और कार्बी व दिमास जनजातियों के कुछ तत्वों द्वारा विद्रोही गुट क्रमश: यू.पी.डी.एस. और डी.एच.डी. बनाने के बाद स्थिति और बिगड़ गई है, हिंसा बढ़ गई है। शुरुआत में एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) ने ही डी.एच.डी. को हथियार और प्रशिक्षण दिया था लेकिन नागालिम के मुद्दे पर डी.एच.डी. से मतभेद होने कारण आज दोनों गुट एक दूसरे के शत्रु हो गए हैं।गृहमंत्री को स्पष्ट जानकारी दी गई कि एन.सी.हिल्स और कार्बी आंग्लांग जिलों में प्रमुख रूप से हिन्दू ही हैं और वे वृहत् नागालैण्ड की रूपरेखा में एक बाधा माने जाते हैं। कार्बी और दिमासा विद्रोही गुटों में झगड़ा बढ़ाकर चर्च और नागालिम के पैरोकार वहां से किसी भी तरह का प्रतिरोध खत्म कर देना चाहते हैं।इसके बाद ज्ञापन में विस्तार से वर्तमान घटनाओं की जानकारी दी गई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई दिफू के दौरे पर गए थे और मौजूदा संघर्ष के पीछे कार्बी व दिमासा विद्रोही गुटों का हाथ बताकर न्यायमूर्ति (से.नि.) पी.सी. फूकन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग को नियुक्त कर इतिश्री कर ली। 2003 में ह्मार और दिमासा संघर्ष की जांच भी इन्हीं न्यायमूर्ति फूकन ने की थी पर उसका कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाया था। ज्ञापन के अंत में मांग की गई है कि1) कार्बी आंग्लांग और एन.सी.हिल्स जिलों को “ग्रेटर नागालैण्ड” की परीधि से बिल्कुल अलग रखा जाए।2) इन जिलों में जारी हिंसा को जातीय संघर्ष का नाम देकर गलत धारणा पैदा की जा रही है। जबकि कार्बी और दिमासा जनजातियां प्राचीन समय से ही भाईचारे से रहती आई हैं। प्रदेश सरकार जिला, प्रखण्ड और गांव स्तर पर शांति समितियां गठित करे जिसमें दोनों जनजातियों के लोग शामिल हों।3) हिंसाचार के दोषियों को पहचानने के लिए सी.बी.आई. की जांच हो।4) राहत शिविरों के प्रबंधन में सामाजिक कार्यकर्ताओं और संस्थाओं को जोड़ा जाए।5) प्रभावित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।6) राहत शिविरों में रह रहे विस्थापितों के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था हो।7) राहत शिविरों में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए अतिरिक्त चिकित्सकीय और आर्थिक मदद पहुंचाई जाए।8) पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध किए जाएं ताकि लोग अपने गांवों को लौट सकें।9) प्रदेश सरकार ने अब तक भी स्थिति सुधारने का प्रयास नहीं किया है। इस ओर जल्दी ध्यान दिया जाए ताकि अपराधी पकड़े जा सकें और शांति बहाल हो।गृहमंत्री ने प्रतिनिधिमण्डल को बताया कि “सुरक्षा व्यवस्था प्रदेश सरकार का दायित्व है और वहां पर्याप्त सुरक्षाबल उपलब्ध है अत: भविष्य में हिंसा की घटना नहीं होनी चाहिए।” लेकिन प्रदेश सरकार की अब तक की कार्रवाई किसी दृष्टि से पर्याप्त नहीं रही है।जनजातीय प्रतिनिधिमण्डल ने 30 नवम्बर की शाम उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत से भी भेंट की। उपराष्ट्रपति ने पूरी बात गौर से सुनी और समस्या के निदान में हरसंभव सहयोग देने का आश्वासन दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे स्वयं प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेंगे।प्रतिनिधिमण्डल के नेता श्री बिक्रम बहादुर जमातिया ने पांचजन्य से बातचीत में कहा कि जनजातीय समाज में आपसी प्रेमभाव बना रहे, उन्हें सबसे अधिक इसी बात की चिंता है। इस दृष्टि से कार्बी और दिमासा लोगों की हत्या करने वाले असली अपराधी पकड़े जाने चाहिए ताकि लोग देख सकें कि हिंसा करने वाला उनके अपने बीच का नहीं बल्कि कोई और ही है। श्री जमातिया आशंका व्यक्त करते हैं कि ग्रेटर नागालैण्ड की मुहिम चलाने वाले नागा विद्रोही गुट एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) और चर्च के इशारे पर यह सब किया जा रहा है। विद्रोही नागा गुट की मंशा है कि “चिकन नेक” में विद्रोह और असंतोष फैलाकर मेघालय और मणिपुर के साथ “एन.सी.हिल्स” क्षेत्र को भी ग्रेटर नागालैण्ड में जोड़ा जाए। उनके “नक्शे” में वह भाग दर्शाया भी जाता है। इसीलिए प्रतिनिधिमण्डल ने मांग की है कि सी.बी.आई. तुरंत जांच करके स्पष्ट कर दे कि असली षडंत्रकारी कौन है।जनजातीय समाज में चर्च मिशनरी जिस प्रकार मतान्तरण की कोशिश में लगे हैं, उसके प्रति श्री जमातिया रोष प्रकट करते हुए कहते हैं कि चूंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं दिया जाता, इस वजह से लोग अपने बच्चों को मिशनरी स्कूलों में भेज रहे हैं। वहां उनमें पश्चिमी सोच और संस्कार रोपे जाते हैं। समाज की नई पीढ़ी अपने मूल्यों से दूर हो रही है। उत्तर-पूर्व जनजातीय धर्म व संस्कृति संरक्षण मंच प्रयासरत है कि लोग स्वधर्म का पालन करें।नई दिल्ली में कार्बी-दिमासा प्रतिनिधिमण्डल उत्तर-पूर्व के विभिन्न सांसदों से भी मिला और उनसे संसद में इस मुद्दे को उठाने का आग्रह किया।प्रतिनिधिमण्डल में शामिल श्री देवेन्द्र तिमुंग और श्री हिरण्मय बठारी, जो क्रमश: कार्बी और दिमासा जनजातियों से हैं, ने दोनों जनजातियों में आपसी भाईचारे की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दोनों ही समाज इतने घुले-मिले हुए हैं कि रंजिश का कोई कारण नहीं है। साथ रहना, खाना-पीना, उठना-बैठना, सुख-दु:ख में शामिल होना। फिर यह कैसे सम्भव है कि आपस में खून खराबा हो और वह भी इतनी बर्बरता से! हत्याएं गोली मारकर नहीं बल्कि गला काटकर की जा रही हैं। यहां तक कि तीन माह के बच्चे का भी गला काट दिया गया। चर्चिम नामक स्थान पर एक बस में सवार 35 कार्बी जनजातीय लोगों की गला काटकर हत्या की गई, उनके शव बस में डालकर आग लगा दी गई। हत्यारे साफ बच कर भाग गए।इस पूरे घटनाक्रम में अब तक सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, 46 गांव जला दिए गए हैं। और इसमें 52 हजार लोग सीधे प्रभावित हुए हैं। भयभीत गांववासी गांवों से निकलकर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर चुके हैं। 5 हजार परिवार विस्थापित हुए हैं जिनके रहने के लिए जनजातिय धर्म व संस्कृति संरक्षण मंच की ओर से 60 राहत शिविर चल रहे हैं। हर विस्थापित परिवार को रोजमर्रा की जरूरत की चीजों के अलावा एक कम्बल, एक शाल और मच्छरदानी दी गई है। अब तक कुल 20 लाख रुपए मंच की ओर से खर्च हो चुके हैं। प्रदेश सरकार चावल और नमक उपलब्ध करा रही है।उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार और विद्रोही नागा गुट के बीच जारी संघर्षविराम की अवधि 31 जनवरी, 2006 को समाप्त हो रही है। नागा गुट ग्रेटर नागालैण्ड (लैण्ड फार क्राइस्ट) यानी नागालिम के अपने मुद्दे पर अडिग है। इस बात की पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है कि 31 जनवरी से पहले नागालैण्ड से सटे मेघालय, मणिपुर और असम के एन.सी.हिल्स क्षेत्र में तनाव पैदा करके वहां ईसाई प्रभाव उत्पन्न करने की एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) की योजना है ताकि वृहत् नागालैण्ड पर विचार करते समय इन क्षेत्रों से कोई विरोधी-स्वर न सुनाई दे।NEWS

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