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प्रिय बन्धुसप्रेम जय श्रीरामईमानदारी की तो बात यह है कि हमने या हमारे घर में अमिताभ बच्चन की फिल्में भले ही बहुत पसंद न की गयी हों पर इधर कुछ सालों से अमिताभ कुछ फिल्मी भूमिकाओं (जैसे बागवान में) और टी.वी. कार्यक्रमों द्वारा सहज भाव से अपने और आत्मीय लगने लगे हैं। उनकी दोस्ती भरी बुजुर्गियत और चटपटा सहजपन अच्छा लगता है। उनकी बातों और मुद्राओं से वह अहंकार नहीं झलकता, जो बाकी फिल्मी अभिनेताओं की पहली पहचान है। शिखर पर वे इतने स्वाभाविक लगते हैं मानो यह स्थान उनका ही है। वे अचानक बीमार हुए तो हम सबको धक्का लगा और उनके जल्दी ही भले-चंगे होने के लिए स्वाभाविक प्रार्थनाएं हुईं। वे समाजवादी पार्टी में होंगे या नहीं क्या फर्क पड़ता है। अच्छा भारतीय होना उससे बड़ी बात है। यह फर्क तो इस देश में सेकुलर, कांग्रेसी और कम्युनिस्ट करते हैं। गोवा में हुए पहले अन्तरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के उद्घाटन के लिए अमिताभ बच्चन को बुलाया गया था। फिर कांग्रेसियों ने यह कहकर निर्णय बदल दिया कि वे समाजवादी पार्टी के नेता हैं। ये लोग आतंकवादियों और पाकिस्तानियों को अपना मान सकते हैं पर अपने ही भारतीयों के प्रति गहरी नफरत रखते हैं।बहरहाल, हम तो अपने तईं देश को नफरतों से परे एक बेहतर देश बनाना चाहते हैं। अमिताभ जल्दी स्वस्थ हों, और जिस पार्टी में चाहें काम करें, यही कामना है।शेष अगली बारआपका अपनात.वि.NEWS
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