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प्रत्येक पत्थर कुछ बनना चाहता है और वह अपने आपको प्रसन्नता से उन हाथों को सौंप देता है, जिन अंगुलियों में छेनी पकड़ी होती है।- अमृता प्रीतम (एक थी अनीता, पृ. 31)असली चेहरा सामने आएवोल्कर रिपोर्ट के संदर्भ में नटवर सिंह के मामले में कांग्रेस के विदेश प्रकोष्ठ के पूर्व सचिव और नटवर सिंह के सहयोगी माने जाने वाले अनिल माथेरानी ने जो कहा है उसके विवेचन की आवश्यकता है। अनिल इस समय क्रोशिया में भारत के राजदूत भी हैं। साप्ताहिक इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने इराक से तेल व्यापार का सारा दारोमदार नटवर, उनके बेटे जगत सिंह और रिश्तेदार अन्दलीब सहगल पर मढ़ा है और यह बताना चाहा है कि नटवर सिंह कांग्रेस का हिस्सा भी हड़प कर गए। संसद के सत्र के दौरान सोनिया और नटवर के नजदीकी माने जाने वाले पदासीन राजदूत अनिल माथेरानी का यह साक्षात्कार कई प्रश्न खड़े करता है। क्या अनिल को यह सब बातें कहने की “अनुमति” इसलिए मिली होगी ताकि कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी को किसी भी प्रकार के आरोप से मुक्त रखते हुए सारा दोष केवल नटवर सिंह पर मढ़ कर पूरी कथा को दूसरी ओर मोड़ दिया जाए? वोल्कर रिपोर्ट के संदर्भ में जांच के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जो पाठक जांच अधिकरण बनाया है, उसे ठीक उसी तरह दंतहीन रखा गया है जैसी कोशिश बोफोर्स मामले को दबाने में की गई थी। भाजपा अध्यक्ष और विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस बारे में सोनिया गांधी के संदर्भ में भी सवाल उठाए और यह मांग की है कि न्यायमूर्ति पाठक जांच अधिकरण को वे सब अधिकार क्यों नहीं दिए गए जो दिए जा सकते थे? भाजपा महासचिव श्री अरुण जेटली ने भी कहा है कि इस मामले की तुरंत आपराधिक जांच होनी चाहिए। भारत सरकार इस पूरे मामले को दबाने और ढंकने की जितनी कोशिश कर रही है हर दिन उतने नए रहस्य उजागर हो रहे हैं। ये केवल कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं या कांग्रेस पार्टी द्वारा सद्दाम हुसैन की तेल हुंडियों के व्यापार का ही मामला नहीं है बल्कि राष्ट्रीय हितों को व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए बेचने का मुद्दा है। कम्युनिस्टों द्वारा अभी तक संरक्षित किए जाने वाले नटवर सिंह भारतीय राजनीति के कलुषित व्यापार का प्रतीक बना दिए गए हैं। लेकिन मामला यही तक नहीं खत्म होता। देश इस प्रतीक्षा में है कि इस पूरे मामले में संलिप्त बाकी चेहरों को भी सामने लाया जाए।अब राज करो, कुछ काज करोशिवराज सिंह चौहान युवा हैं, प्रतिभावान और अनुशासित भी। वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए तो लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। बाबू लाल गौर मुख्यमंत्री पद छोड़कर किनारे हो गए। श्री चौहान के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल हुए और कहीं कोई टेढ़ा-मेढ़ा बयान नहीं दिया। पार्टी के लोग इसी को सांत्वना और राहत की बात मान रहे होंगे, क्योंकि आजकल कोई आसानी से पद छोड़ दे और फिर भी चुप रहे, यह स्वाभाविक नहीं माना जाता।शिवराज सिंह चौहान के सामने किसी भी पहले मुख्यमंत्री से ज्यादा चुनौतियां हैं। उन्हें अब स्वयं को सिद्ध करना है, प्रशासन पर अपनी मजबूत पकड़ और राजनीतिक दबावों को झेलने की क्षमता प्रदर्शित करनी है। हाल ही में भोपाल में हुई सम्पादक परिषद् की बैठक में उन्होंने श्रेष्ठता की हर कसौटी पर खरा उतरने वाला शिक्षण संस्थान बनाने का भी वायदा किया। अच्छी बात है। लेकिन आने वाले दिन बताएंगे कि जहां भाजपा पूर्ण बहुमत में भी है वहां वह कितना कर पाती है। म.प्र. में ऐसा उदाहरण बनाना चाहिए कि भाजपा अभिमान के साथ कह सके कि उसने अपने सपनों और आदर्शों का एक अनुकरणीय नमूना प्रस्तुत किया है। मान लिया कि इनके हर निर्णय के पीछे कुछ समझदारी और समाज तथा देश हित का गहरा भाव छिपा रहता है, मगर जनता में भाजपा की छवि ऐसी बन रही है कि ये लोग आपस की लड़ाई और सत्ता हस्तान्तरण के खेल में शासन-प्रशासन की अनदेखी कर रहे हैं। सड़कें, बिजली, तीर्थ, शिक्षा संस्थान, कानून-व्यवस्था यह सब कौन संभालेगा अगर हर रोज सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर अरुचिपूर्ण तमाशे होते रहें?मध्य प्रदेश में जो भी मुख्यमंत्री बने, हरेक ने बेहद ईमानदारी के साथ वायदे किए, घोषणाएं कीं, योजनाएं बनाईं, अपनी-अपनी पसंद के अधिकारी लाए और नापसन्द कोने-किनारे में ठोंक दिए। फिर अदला-बदली होगी। अब तो गंभीरतापूर्वक लम्बी दौड़ की सोचनी चाहिए। जनता के विश्वास को जीतने वाले कैसे बनें, यही श्री शिवराज सिंह चौहान के सामने पहला काम है।NEWS
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