|
शेख की हरकत-मुजफ्फर हुसैनमुजफ्फर हुसैनभारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी मित्रता किस प्रकार कायम हो, यह लाख टके का सवाल है। दोनों देशों के बीच सरहदें खोल दिए जाने का क्रम जारी है। आज जो नियंत्रण रेखा है उसे दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा मान लिया जाए, यह सुझाव बारम्बार सामने आता है। व्यापार, क्रिकेट और फिल्मों के आदान-प्रदान जारी हैं। सैकड़ों पाकिस्तानी और भारतीय सीमा पार कर एक देश से दूसरे देश में आ जा रहे हैं। सरकारी प्रतिनिधिमंडलों के दौरे जारी हैं, लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में जब कुछ बात बनी थी तो पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला कर दिया। नतीजा यह हुआ कि दोनों देशों के सम्बंध बिगड़ गए। फिर वही स्थिति हो गई, जो 1997 के पूर्व थी। डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने भी वाजपेयी की नीति को जारी रखा।इस बार पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी आगरा की तरह कोई तुनकमिजाजी नहीं दिखाई और भारत में आकर खूब वाहवाही लूटी। आगरा की बातचीत में जिन आडवाणी को रोड़ा माना गया था पिछले दिनों वे भी पाकिस्तान की यात्रा करके लौट आए। वहां उन्होंने जो कुछ कहा वह सब पाकिस्तान के समर्थन में था इसलिए इस बार आडवाणी से भी कोई शिकायत नहीं रही। लेकिन हुर्रियत के नेता ज्यों ही पाकिस्तान यात्रा से लौटे यासीन मलिक ने इस बात का भंडाफोड़ किया कि पाकिस्तान के सूचना मंत्री शेख रशीद कश्मीरी आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए शिविर चलाते थे। रशीद का “फार्म हाउस” इन आतंकवादियों के लिए शरणस्थली था। वहां उन्हें हथियारों की आपूर्ति की जाती थी। आतंकवादियों ने जिस तरह से कश्मीर में मार काट की उसमें शेख रशीद की भूमिका मुख्य थी। यह सारा वृत्तांत सामने आते ही श्री वाजपेयी ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को एक चिट्ठी लिख कर इस घटना पर कड़ी आपत्ति प्रकट की। इसके बाद भारत सरकार ने शेख रशीद, जिन्होंने कश्मीर आने की इजाजत मांगी थी, को कश्मीर आने की इजाजत नहीं दी।पाकिस्तान के सूचना मंत्री शेख रशीदशेख रशीद पाकिस्तान में, जो भी सरकार आती है, उसमें काबीना मंत्री के पद पर होते हैं। चाहे नवाज शरीफ की सरकार हो या परवेज मुशर्रफ की। क्या कारण है कि पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों और सेना के अधिकारियों के लिए शेख रशीद इतने प्रिय व्यक्ति हैं? उनका निजी जीवन कितना गंदला और वासना से परिपूर्ण है, यह बताने की किसी को आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अनेक पाकिस्तानी और विदेशी महिलाओं ने अक्सर उनके चेहरे से काली चादर हटाने की कोशिश की है। पाकिस्तानी नेताओं की अय्याशियों की जो कहानियां पुस्तक के रूप में छपती हैं उनमें रशीद का नम्बर अयूब खान और याहिया खान से पीछे नहीं है। शेख रशीद के लिए यासीन मलिक चाहे जैसे शब्दों का उपयोग करें लेकिन एक बात साफ है कि रशीद जिहादियों का हमेशा से सरपरस्त रहे हैं। यह बात केवल भारतीय ही नहीं पाकिस्तानी भी कहते हैं। पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष असलम बेग एवं पूर्व मंत्री नसीरूल्ला खान बाबर कहते हैं कि शेख रशीद स्वयं इस बात को कह चुके हैं कि वे 1989 से कश्मीर में आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्र चलाते आ रहे हैं। हाशिम कुरैशी, जो भारतीय विमान के अपहर्ता के रूप में कुख्यात है, ने भी रशीद की इन हरकतों का भंडा-फोड़ किया है। रशीद के भूत और वर्तमान से कश्मीरी और पाकिस्तानी भलीभांति परिचित हैं। इसलिए उस व्यक्ति के बारे में अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है। पाठकों को याद होगा कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनते ही जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री रूबैया का अपहरण हो गया था। तीन दिन बाद वह मिली। यासीन मलिक इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने रूबैया का अपहरण कराया था। क्या उसे शेख रशीद के फार्म हाउस में छिपाया गया था? क्या यह सब रशीद के इशारे पर हुआ था? मुफ्ती इन दिनों कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं, क्या वे अपनी पुत्री के इन दोनों अपहर्ताओं को गिरफ्तार करने का साहस करेंगे? स्थिति लगभग वही आ चुकी है जो भारतीय संसद पर हमला करने एवं कारगिल युद्ध के समय में पैदा हुई थी। तत्कालीन भारत सरकार ने तो पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते तोड़ लिए थे, क्या देशहित में डा. मनमोहन सिंह की सरकार ऐसा कर सकेगी? यदि नहीं करती है तो इस देश की रक्षा के लिए उसकी जिम्मेदारी क्या है? पाकिस्तान सरकार के विदेश विभाग और शेख रशीद ने इसका खंडन करके अपना सर “नहीं” में हिला दिया है। लेकिन क्या भारत सरकार इस “नहीं” को स्वीकार करेगी? यदि नहीं करती तो फिर क्या पाकिस्तान से बढ़ रही दोस्ती पर विचार करेगी? पाकिस्तान सरकार सही है तो उसे शेख रशीद को तत्काल मंत्रिमंडल से हटा देना चाहिए। यही नहीं, शेख रशीद और पाकिस्तान सरकार को भारत के साथ क्षमा याचना करनी चाहिए। इधर भारत सरकार को शीघ्र इस मामले की जांच पड़ताल करवाकर देश को सच्चाई बतानी चाहिए। चूंकि यह भारत की सुरक्षा का सवाल है इसलिए सरकार को बिना हिचकिचाहट के इस पर ठोस कदम उठाना चाहिए। जिस दिन से पाकिस्तान बना है, भारत के साथ उसने छल और कपट से काम लिया है। जिन्ना ने कश्मीर को हड़पने के लिए कश्मीर के राजा हरि सिंह का अपहरण कराने की साजिश रची। हरि सिंह को उनके रसोइए के जरिए जहर देने की कोशिश की गई। कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री रामचंद्र कोंक को भ्रष्ट कर कश्मीर का सौदा करने की बात तय की गई। लेकिन मिहिर चंद महाजन की नियुक्ति के बाद जिन्ना का कोई षडंत्र नहीं चला। अंतत: 22 अक्तूबर, 1947 को कबाइलियों की वेष भूषा पहना कर पाकिस्तानी सेना से कश्मीर पर हमला करवा दिया गया। जब राजा हरि सिंह ने भारत के साथ कश्मीर के विलय पर हस्ताक्षर कर दिए तब लेडी माउंटबेटन को माध्यम बनाकर पं. जवाहरलाल से युद्ध विराम करवा दिया गया। इसके बाद 1965 और 1971 के युद्ध हुए। कारगिल पर चढ़ाई तो हाल की बात है। कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ। विभाजन में दस लाख लोग बड़ी निर्ममता से कत्ल कर दिए गए। 23 हजार महिलाओं को अपमानित किया गया। आतंकवाद को लाद कर आज भी पाकिस्तान सब कुछ वही कर रहा है जो कल तक कराता था। क्या पाकिस्तान वास्तव में भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है? यदि उसके मन मे ऐसी बात है तो फिर जापान ने जिस तरह चीन से क्षमा मांगी थी, उसी प्रकार पाकिस्तान भी भारत से माफी मांगे। 1930 से 1940 के बीच जापान ने चीन के साथ नृशंसता का जो व्यवहार किया, वह आज भी चीन भूला नहीं है।1972 के बाद चीन और जापान दोनों निकट आए हैं। जापानियों ने उनसे क्षमा मांगी है, लेकिन आज भी चीनियों को जापान पर भरोसा नहीं है। यदि पाकिस्तान भारत के साथ मिल-जुलकर रहना चाहता है तो पहले अपने पापों के लिए उसे क्षमा याचना करनी चाहिए। उसके बाद ही भारत को दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए। वरना हर कदम पर शेख रशीद जैसे धोखेबाजों से उसका सामना होता रहेगा।NEWS
टिप्पणियाँ