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विश्व में बढ़ी हिन्दी की स्वीकार्यताराम प्रताप मिश्रसंगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए श्री पूरन चंद, मंच पर बैठे हैं (दाएं से) सर्वश्री जगदीश बावला, राम विनय सिंह, रतन सिंह जौनसारी, नेमचंद जैन एवं देवेन्द्र भसीनकश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वही अपनी छाप छोड़ सकता है, जो हिन्दी जानता हो। जो हिन्दी नहीं जानता, वह अपूर्ण है। यह मानना है, प्रख्यात साहित्यकार रतन सिंह जौनसारी का। वह देहरादून में गत 5 जून को आयोजित “स्वतंत्रता के 60 वर्ष और हिन्दी की यात्रा” विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। गोष्ठी को विशिष्ट वक्ता के रूप में देवेन्द्र भसीन और डा. राम विनय सिंह ने भी सम्बोधित किया। गोष्ठी की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार नेमचंद्र जैन ने की। गोष्ठी में डा. राम विनय सिंह ने जहां नवगीत आन्दोलन के नामकरण तथा उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला, वहीं डा. देवेन्द्र भसीन ने हिन्दी के स्वर्णिम अतीत और भविष्य की चर्चा की। डा. नेमचन्द जैन ने हिन्दी के बढ़ते प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा कि हिन्दी विश्व मंच पर प्रतिष्ठित हो रही है। अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन संस्थाएं अब हिन्दी में भी प्रकाशन करने लगीं हैं, साथ ही विदेशों में हिन्दी का पठन-पाठन तेजी से बढ़ रहा है।-राम प्रताप मिश्रNEWS
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