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चिरन्तन संस्कृति की अभिव्यक्तिराजेन्द्र शाहज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्री राजेन्द्र केशवलाल शाह 92 वर्ष के हैं, लेकिन उनकी रचनाधर्मिता उम्र के इस आखिरी पड़ाव में भी निरन्तर प्रवाहमान बनी हुई है। “साम्प्रत मैं चिरन्तन” में उनकी अन्र्तध्वनि का प्रस्फुटन यह बताता है कि उनके अन्तर्मन में दार्शनिकता, आध्यात्मिकता और मानव जीवन के विविध रूपों के प्रति कितनी गहरी संवेदनशीलता पैठी हुई है। मूलत: गुजराती में लिखी उनकी कविता रूपी यह भावाभिव्यक्ति संस्कृत के शाब्दिक छन्दों के माधुर्य से बंधी है। पुस्तक में कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी सरस, सहज, लयबद्ध और अपने में भावों की पूर्णता लिए हुए अत्यंत सटीक बन पड़ा है। “द्वार पर” उनकी सहचरी, अर्धांगिनी के वियोग की पीड़ा का मार्मिक वर्णन है कि सृष्टि का क्षण-क्षण किस प्रकार से जीवन के पल-पल की स्मृतियों को अतीत में, स्वप्न में बदलता जाता है।पुस्तक का नाम:साम्प्रत मैं चिरन्तनलेखक:राजेन्द्र शाहमूल्य:200/-पृष्ठ:264
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