|
ऊंची फीस, भारी बस्ताभोपाल निवासी वरिष्ठ शिक्षक श्री बृजमोहन कौशिक लगभग दस वर्ष तक मुख्य अध्यापक रहने के पश्चात 1996 में रशीदिया मिडिल स्कूल से सेवानिवृत्त हुए हैं। पाञ्चजन्य ने जब उनसे बस्तों के बढ़ते बोझ और पाठक्रम के बदलाव के बारे में बात की। उनका कहना था,”लगभग बीस साल पहले तक शिक्षकों में अध्यापन के प्रति जो समर्पण भाव था, वह अब नहीं दिखता। शिक्षक अपने दायित्वों को मात्र नौकरी की नजर से देखता है। वैसे सरकारी स्कूलों के शिक्षकों पर आजकल बाहरी काम, जैसे-चुनाव, जनगणना, पशुगणना, पल्स-पोलियो आदि भी बहुत रहते हैं, जिससे उनके अध्यापन कार्य में बाधा आती है। सरकारी शालाओं और निजी शिक्षण संस्थाओं के संचालन में जमीन-आसमान का अन्तर है। निजी शिक्षण संस्थाओं में जहां उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग के बच्चों का दाखिला होता है वहीं सरकारी विद्यालयों में प्राय: निम्न मध्यम तथा निम्न वर्ग के बच्चे ही प्रवेश लेते हैं। इसके पीछे शिक्षा शुल्क ही बड़ा कारण है। यहां तक देखा गया है कि निजी स्कूल तो अभिभावकों का भी साक्षात्कार लेते हैं, तब कहीं बच्चे का दाखिला होता है। शिक्षा शुल्क भी मनमानी वसूला जाता है। इस पर सरकार को कानून बनाकर निगरानी रखनी चाहिए ताकि अभिभावकों का शोषण बंद हो। हमारे जमाने में पहली कक्षा का विद्यार्थी केवल स्लेट व पेंसिल (चाक) लेकर स्कूल आता था। आज तो वह अपने वजन से भी ज्यादा भारी कापी-किताबें ढोने को मजबूर है, यह बंद होना चाहिए। कुछ वर्ष पूर्व सरकारी स्कूलों में खेल-खेल में पढ़ाने, सिखाने की योजना प्रारंभ हुई थी। यह लापरवाही के कारण क्रियान्वित नहीं हो पा रही है। इसका सख्ती से पालन होना चाहिए। साथ ही इसे निजी स्कूलों में भी लागू किया जाना चाहिए। अनावश्यक पुस्तकों को बंद कर देना चाहिए। इसका लाभ केवल प्रकाशकों को ही मिलता है। निजी स्कूल संचालक केवल श्रेष्ठता और ठसक का दिखावा करते हैं। दूसरे प्राथमिक पाठशाला के बच्चों की परीक्षा तो हो, लेकिन वह ज्यादातर मौखिक व बच्चों का बौद्धिक स्तर जानने के लिए ही होनी चाहिए, फेल या पास के लिए नहीं। फीस आसमान छू रही है, बस्ते भारी हो रहे हैं, बच्चे निढाल हैं, माता-पिता परेशान।”मध्य प्रदेश में पांचवीं तथा आठवीं कक्षाओं की बोर्ड परीक्षाएं होती हैं। सरकारी स्कूलों में जो पाठ्यक्रम होता है वह अधिकांशत: निजी स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता। निजी स्कूलों में सी.बी.एस.ई. (केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। कुछ अन्य गैर सरकारी स्कूलों में कुछ विषयों की अतिरिक्त पुस्तकें भी होती हैं। साधारणत: पांचवीं में चार विषय, हिन्दी, अंग्रेजी, गणित और पर्यावरण आदि विषय पढ़ाए जाते हैं जिनकी पुस्तक-कापियों का कुल वजन लगभग 1.5 किलो होता है। आठवीं में छह विषयों की कुल कापी-किताबों का वजन लगभग2.5 किलो होता है।सरस्वती शिशु मंदिरों में पांचवीं में संस्कृत एवं वैदिक गणित अतिरिक्त विषय पढ़ाए जाते हैं। सरस्वती शिशु मन्दिर, शिवाजी नगर (भोपाल) की प्राचार्य श्रीमती कल्पना शर्मा के अनुसार सभी विषयों की कापियां रोज नहीं मंगाई जातीं, इसलिए बस्ते का वजन 1.5 किलो के लगभग ही होता है। लेकिन बच्चे या अभिभावक बस्ता इतना बड़ा और महंगा खरीदते हैं कि खाली बस्ते का ही वजन आधा किलो होता है, हम इसे कम करने की सलाह देते हैं। बच्चों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था स्कूल में ही रहती है इसलिए पानी की बोतल का लगभग आधा किलो वजन बच्चों को कम लाना होता है।वन विभाग में कर्मचारी श्री कालीचरण वर्मा का बेटा सोनू एक सरकारी स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढ़ता है। श्री वर्मा ने बताया कि निजी स्कूल में फीस बहुत अधिक होने के कारण अपने बेटे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पड़ रहा है, लेकिन वहां पढ़ाई अच्छी नहीं है। ट्यूशन लगाने पर ही बच्चा बोर्ड की परीक्षा में द्वितीय श्रेणी ला पाया है।-भोपाल से हरिमोहन मोदीNEWS
टिप्पणियाँ