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पाठकीय

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Oct 7, 2005, 12:00 am IST
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दिंनाक: 07 Oct 2005 00:00:00

अंक-सन्दर्भ- 12 जून, 2005प्रेरक पर्यटन की दिशापञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005 आषाढ़ शुक्ल 4 रवि 10 जुलाई (वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत) ,, ,, 5 सोम 11 “” ,, ,, 6 मंगल 12 ,, ,, ,, 7 बुध 13 ,, ,, ,, 8 गुरु 14 “” ,, ,, 9 शुक्र 15 “” ,, ,, 10 शनि 16 “” आवरण कथा “घूमें और गुनगुनाएं-सबसे प्यारा देश हमारा” के अन्तर्गत अनेक ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों की जानकारी मिली। तनोट माता का मन्दिर, रत्नागिरि स्थित तिलक का पैतृक आवास, शिवनेरी दुर्ग, हनुमान जी की जननी माता अंजनी का मन्दिर आदि स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से और अधिक विकसित करने की आवश्यकता है।-विजय पुष्करणहरमू चौक, रांची (झारखण्ड)किन्हीं कारणों से एक लम्बी अवधि के बाद पाञ्चजन्य पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। इसमें किए गए बदलाव अच्छे लगे। आवरण कथा सराहनीय है। ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों की जानकारियों से परिपूर्ण यह अंक बेहद पसन्द आया।-संदीप चिमानिया “सचिन”शारदा अपार्टमेंट, बाबई खुर्द, होशंगाबाद (म.प्र.)आज भारतवासियों का एक वर्ग अपनी छुट्टियां मनाने के लिए विदेश जाना पसंद करता है, ऐसे में तीर्थों की जानकारी समेटे लेख प्रेरणादायक सिद्ध हो सकता है। भारतीय संस्कृति तथा इतिहास विश्व का सिरमौर रहा है। यहां के लोग, उनकी भावनाएं, यहां के धार्मिक तथा ऐतिहासिक स्थल गौरव के प्रतीक हैं। ये सभी हमारी विशिष्ट परम्पराएं और शेष विश्व के लिए अनुकरणीय हैं। आज आवश्यकता है अपने हृदय में देशप्रेम जगाने, भारतीय संस्कृति को समझने तथा उसका अनुकरण करने की। भारत के गौरवशाली इतिहास से जुड़े क्षेत्रों में भ्रमण करने तथा उन्हें जानने से हमारे मन में देशभक्ति का संचार हो सकता है। हमें छुट्टियों में सैर-सपाटे के साथ-साथ ऐसे स्थलों पर भी जाना चाहिए।-हेमन्त सिंह, 2/28,डी.एम. कालोनी, बुलन्दशहर (उ.प्र.)आखिर हैं तो वे वामपंथीचर्चा-सत्र में श्री सोमनाथ चटर्जी की चुप्पी के बारे में पढ़ा। लेखक श्री ब्राहृदेव उपाध्याय ने त्रिनिदाद-टोबैगो में रह रहे भारतवंशियों की पीड़ा को व्यक्त किया है। त्रिनिदाद-टोबैगो में भारत आगमन दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वामपंथी नेता श्री सोमनाथ चटर्जी सिवाय क्रिकेट के कुछ और बोल ही नहीं सकते थे। वे तो उस माक्र्सवाद-लेनिनवाद पर भी कुछ नहीं बोल सकते थे, जिसकी उन्होंने बरसों पूजा की है, क्योंकि भारत के अलावा सारे संसार में माक्र्सवाद-लेनिनवाद की कब्रों भी नहीं बची हैं। धर्म को अफीम समझने वाले एवं संस्कृति, गीता, गंगा, गुरु और गोपाल को अपना जन्मजात शत्रु समझने वाले वामपंथियों से हमें इन विषयों पर बोलने की उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए। रहा सवाल त्रिनिदाद के पूर्व प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पाण्डेय की गिरफ्तारी का, तो सोमनाथ बाबू ठहरे धुर वामपंथी। ऐसे में हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों से प्रभावित एक देश में उसके पूर्व हिन्दू प्रधानमंत्री के बचाव में वामपंथी नेता से कुछ कहने-सुनने की आशा कैसे हो सकती थी। अपने राजनीतिक हानि-लाभ के लिए जो लोग ईश्वर को नकार सकते हैं, अपने मन की मलिनता से सरस्वती जैसी परम् पावन सात्विक देवी को मैला करने की कोशिश कर सकते हैं, जिनके दिमागों में औरंगजेब और बाबर के इतिहास के सड़े-गले कूड़े के अलावा कुछ न हो, वे सिर्फ सत्ता के लिए जोड़तोड़, संस्थानों में कब्जा जमाने और अपने कुतर्कों से धर्म का अपमान करने के अलावा कुछ और करना नहीं जानते। वैसे सोमनाथ बाबू देश के सम्मानित नेताओं की श्रेणी में आते हैं, मगर आखिरकार हैं तो वे वामपंथी ही।-डा. हेमन्त शर्मामहू(म.प्र.)ओछी मानसिकताखजूरिया एस. कांत की रपट “अमरनाथ यात्रा में फिर रोड़ा बनी मुफ्ती सरकार” पढ़कर दु:ख हुआ। जो सरकार हज यात्रा के लिए आवेदन देने वाले सभी कश्मीरियों को मक्का-मदीना जाने की अनुमति देती है, जिसके मंत्री हज यात्रा को सफल एवं सुखद बनाने के लिए श्रीनगर से दिल्ली आते हैं, वही सरकार अमरनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण शुल्क बढ़ाती है और यात्रा के लिए अनेक बाधाएं खड़ी करती है। पिछले वर्ष अमरनाथ यात्रा के सम्बंध में मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था, “अमरनाथ यात्री गंदगी फैलाते हैं।” वहीं उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती कहती हैं, “इस यात्रा से स्कूली बच्चों और बीमार लोगों को असुविधा होती है।” इन बयानों से ही पता चलता है कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज के प्रति इनकी मानसिकता कैसी है।-बी.एल. सचदेवा263, आई.एन.ए. मार्केट (नई दिल्ली)प्रजातंत्र का भविष्यसम्पादकीय “कितनी राजनीति” का यह आशय बिल्कुल ठीक है कि इस समय देश राजनीति से इतना अधिक प्रभावित है कि इसी ओर खिंचा चला जा रहा है। कितने ही परिवार ऐसे हैं, जो केवल राजनीति-आधारित होकर रह गए हैं और ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यह अनायास ही जमींदारी प्रथा की याद दिलाता है। इसी का प्रभाव है कि राजनेता, भ्रष्ट नौकरशाह और माफिया का शिकंजा आज अपने चरम पर है। यदि देश की राजनीति का स्तर इसी तरह तेजी से गिरता रहा तो निश्चित है कि प्रजातंत्र का भविष्य सुरक्षित नहीं है।-आर.सी. गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)घोर पापपिछले दिनों एक टी.वी. चैनल पर गाय काटे जाने की तस्वीरें देखीं, जो छुपे कैमरे से ली गई थीं। भारत देव भूमि है। देवता भी भारत में जन्म लेने के लिए तरसते हैं। नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विख्यात विश्वविद्यालयों में विदेशी भी पढ़ते थे। हम अपनी धरती, गाय और गंगा को माता कहते हैं। किन्तु अंग्रेजों ने भारतीयों को सिखाया कि इन्हें “प्रापर्टी”, “केटल” और “रिवर” कहो। अंग्रेजों ने ही राजकुमारों को क्रिकेट, चाय और शराब की आदत लगवाई और अय्याशी के लिए “अंग्रेजी मेमें” दीं। हमारा खान-पान, पोशाक, हमारी विचारधारा आदि सब कुछ अंग्रेजों ने एक तरह से बदल दी है। क्या इसी का परिणाम है अब हम ऐसे दृश्यों के प्रति संवेदनशून्य हो चुके हैं?-रजत कुमार278, भूड़, बरेली (उ.प्र.)एक सुझावसिन्धु दर्शन महोत्सव की सूचना दी-धन्यवाद! इस सम्बंध में मेरा एक सुझाव है। अगले साल यह उत्सव 13, 14 व 15 जून को मनाया जाए, क्योंकि 14 जून को पंजाबी आषाढ़ की पहली तिथि (आषाढ़ की संक्रांति) का धार्मिक पर्व प्रतिवर्ष पड़ता है। अत: वैशाखी (वैशाख संक्रांति) के दिन जिस प्रकार पंजाब, हरियाणा, कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग हरिद्वार में गंगा स्नान करते हैं, तद्नुसार आषाढ़ की संक्रांति को सिन्धु नदी में स्नान कर पुण्य के भागी बनें। इसी अवसर पर सिन्धु महोत्सव भी सम्पन्न हो जाए तो अत्युत्तम होगा-ऐसा मेरा विचार है।-इन्दु प्रकाश उपाध्यायहरिद्वार (उत्तराञ्चल)कीमत कम करेंपाञ्चजन्य समाचार पत्र ही नहीं, अपितु वैचारिक अनुष्ठान भी है। राष्ट्रहित के ऐसे समाचार, जो अन्य समाचार-पत्रों में नहीं छपते हैं उन्हें पाञ्चजन्य में पढ़ा जा सकता है और साथ में विशेषज्ञों के लेख भी।लेकिन एक बात का कष्ट जरूर होता है पाञ्चजन्य आम पाठकों के लिए सुलभ क्यों नहीं है? मेरे विचार से इसके प्रसार में इसकी कीमत बाधक है। क्यों न इसका मूल्य कुछ कम कर दिया जाए।-लोकेश पटेल,चकरावदति, घटीया, उज्जैन (म.प्र.)पुरस्कृत पत्रकानपुर में गंगा लुप्तक्या आज मां गंगा की कोई धारा, छोटी ही सही, हरिद्वार के आगे पूर्व की ओर प्रयागराज, वाराणसी या गंगा सागर तक बिना किसी व्यवधान के प्रवाहित हो रही है? जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन (जाइका) का मानना है कि वर्तमान में गंगाजल (गंगा नाम की नदी में समय-समय पर डाला जाने वाला जल) न तो पीने योग्य है और न ही नहाने योग्य। यह अकाट सत्य है। अब तो गर्मी के दिनों में, जब गंगा व उसकी सहायक नदियों के उद्गम से बर्फ पिघलने के कारण जल अधिक प्रवाहित होने लगता है और उस जल को नरौरा बांध में रोकना असम्भव हो जाता है तब गंगा का जल अपने प्रवाह मार्ग से होकर प्रयाग पहुंचता है। सन् 1930 ई. में अंग्रेजों ने गंगा को धारारहित करने का प्रयास किया था पर महामना पं. मदन मोहन मालवीय के प्रयास से वे ऐसा नहीं कर पाए। किन्तु हरिद्वार के पास स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद मायापुर में बहुद्देशीय बांध बनाया गया और गंगा जल को बांधकर योजनानुसार छोड़ा जाने लगा। अब हरिद्वार में कुम्भ या अद्र्धकुम्भ के अवसर पर एक धारा सीधे गंगा के प्रवाह से आने दी जाती है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में अंग्रेजों ने अपर गंगा नहर व लोअर गंगा नहर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिंचाई के लिए निकाली, जो मध्य उत्तर प्रदेश में भी सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती हुई प्रयाग के उपरान्त गंगा में गिरती है। अब नरौरा में गंगा नदी को पूर्ण रूप से बांध दिया गया है। सन् 2004 के माघ मेले के अवसर पर प्रतिदिन केवल 100 क्यूसेक जल प्रवाहित किया गया और किसी प्रकार माघ मेला सम्पन्न हुआ। वर्तमान में गंगा जी का जल नरौरा के पूरब में केवल कानपुर नगर को दिया जाता है और मां गंगा का प्रवाह मार्ग केवल बरसात में बाढ़ के पानी की निकासी एवं गंगा की सहायक नदियों, रामगंगा, कोसी एवं शारदा से निकाली गई नहरों के बचे जल को प्रवाहित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। गंगा के किनारे-किनारे हरिद्वार से गंगा सागर तक भ्रमण करने वाले एक सन्त के अनुसार गंगा कानपुर में विलुप्त हो जाती है। अर्थात् नरौरा से जो जल कानपुर तक आता है वह कानपुर नगर में पेय जल की आपूर्ति में ही खत्म हो जाता है और गंगा के प्रवाह मार्ग में जल नहीं रह जाता है। केवल वहां का दूषित जल प्रयाग तक बहकर आता रहता है। यहां गंगा का पानी इतना गंदलाया रहता है कि इस वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर सन्तों ने प्रयाग में गंगा-स्नान का बहिष्कार किया था। अब तो प्रयागराज को तीर्थ स्थान की श्रेणी में रखने हेतु भागीरथ प्रयास की आवश्यकता है।-इन्द्रप्रताप श्रीवास्तवएम.एस. ब्लाक 1, फ्लैट सं. 904, केन्द्रीय विहार,सेक्टर-56, गुड़गांव (हरियाणा)NEWS

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