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हिन्दू ही नहीं रहेंगे तो कहां रहेगा भारत?
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा,
लोकसभा में भाजपा के उपनेता
सम्पूर्ण भारत की सन् 2001 की जनगणना के पंथ आधारित आंकड़े सन् 2004 के सितम्बर मास में प्रकाशित हुए। ये आंकड़े प्रकाशित होते ही हंगामा मच गया। 1951 से लेकर 2001 तक हिन्दुओं की जनसंख्या का प्रतिशत निरन्तर कम होने और मुसलमानों का प्रतिशत निरन्तर बढ़ने पर हिन्दुओं, राष्ट्रवादियों का चिन्तित होना स्वाभाविक ही नहीं, आवश्यक भी था। परन्तु सेकुलर मंडली का हाहाकार मचाना और भी चिन्तनीय तथा स्तब्धकारी था। एक तो इस बात पर हंगामा किया गया कि जनगणना आयुक्त ने पत्रकार वार्ता में पंथाधारित जनगणना के आंकड़े और रपट क्यों प्रस्तुत की, जिससे हिन्दूवादी नेताओं और राष्ट्रवादियों को यह कहने का अवसर मिला कि देश में हिन्दुओं का प्रतिशत कम हो रहा है तथा मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ रहा है।
दूसरे, इस बात पर हंगामा मचाया गया कि 1991-2001 में मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी 36 प्रतिशत दिखाई गई है, जबकि 1991 में जम्मू-कश्मीर में जनगणना नहीं हुई थी। यदि सन् 2001 में से भी जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों की जनसंख्या निकाल दी जाए तो यह वृद्धि 29.3 प्रतिशत बनती है। इस पर खूब शोर मचाया गया, जांच बैठाई गई और निर्दोष अधिकारियों पर कार्रवाही की गई। इस हंगामे में वास्तविकता का गला घोंट दिया गया और देश के लिए एक घोर चिन्ता के विषय पर परदा डालने का प्रयास किया गया।
आंकड़े तो आंकड़े हैं। जैसे दर्पण झूठ नहीं बोलता वैसे ही तथ्य कितना भी छुपाएं, छुप नहीं सकते। सन् 2001 की जनगणना में से जम्मू-कश्मीर की पूरी जनसंख्या निकाल भी दी जाए तो भी जम्मू-कश्मीर को छोड़कर समस्त देश में 1991-2001 में हिन्दुओं की संख्या में वृद्धि हुई 19.9 प्रतिशत और मुसलमानों की संख्या में वृद्धि हुई 29.3 प्रतिशत, अर्थात् मुसलमानों की संख्या में हिन्दुओं की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक वृद्धि हुई। इस तथ्य से कोई इनकार कर सकता है क्या?
सन् 1981 में असम में जनगणना नहीं हुई थी और 1991 में जम्मू-कश्मीर में । समस्त देश में सन् 1961, 1971 व 2001 में जनगणना हुई थी। अत: उनके आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन से सचाई स्पष्ट रूप से सामने आ जाएगी। सन् 1971 में पूरे देश में हिन्दुओं की जनसंख्या थी 45 करोड़ 32 लाख 92 हजार छियासी और सन् 2001 में थी 82 करोड़ 75 लाख 78 हजार आठ सौ अड़सठ। इन 30 वर्षों में हिन्दुओं की जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत है 82.57 प्रतिशत। इसी प्रकार से 1971 में पूरे देश में मुसलमानों की जनसंख्या थी 6 करोड़ 14 लाख 17 हजार 934 और 2001 में थी 13 करोड़ 81 लाख 88 हजार 240। इन तीस वर्षों में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत रहा 125 प्रतिशत।
इससे पूर्व का तुलनात्मक अध्ययन करें तो 1961 और 2001 में भी पूरे देश में जनगणना हुई थी। 1961 में हिन्दुओं की जनसंख्या 36,65,26,866 थी और सन् 2001 में हिन्दुओं की जनसंख्या थी 82,75,78,868। इन 40 वर्षों में हिन्दुओं की जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत हुआ 125 प्रतिशत। दूसरी तरफ 1961 में पूरे देश में मुस्लिम जनसंख्या थी 4,69,40,799 और 2001 में थी 13,81,88,240 अर्थात् 194.4 प्रतिशत की वृद्धि।
हिन्दू मुस्लिम
जनसंख्या में वृद्धिका प्रतिशत (1961-2001) 125 194.4
जनसंख्या में वृद्धिका प्रतिशत (1971-2001) 82.5 125
भारत में 1961 में हिन्दुओं की जनसंख्या 83.4 प्रतिशत थी और 2001 में वह घटकर 80.5 प्रतिशत रह गई। इसी अवधि में मुस्लिम जनसंख्या 10.7 से बढ़कर 13.4 प्रतिशत हो गई। 1951 में मुस्लिम जनसंख्या 9.93 प्रतिशत थी और हिन्दुओं की 84.99 प्रतिशत थी। अर्थात् हिन्दुओं की जनसंख्या में 50 वर्षों में 4.5 प्रतिशत की कमी हुई और मुसलमानों की जनसंख्या में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इसको ठीक प्रकार से समझने के लिए 1991-2001 की अवधि में विभिन्न प्रदेशों में हिन्दुओं व मुसलमानों की जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत देखने की आवश्यकता है, जो इस प्रकार है-
राज्य
हिन्दू जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत
मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि काप्रतिशत
पंजाब
28.65
59.58
हिमाचल
16.97
34.08
चंडीगढ़
45.41
103.40
दिल्ली
44.10
82.49
हरियाणा
27.03
60.11
केरल
7.29
15.84
गोवा
17.17
50.04
कर्नाटक
15.32
23.48
आंध्र प्रदेश
14.43
17.94
महाराष्ट्र
21.59
34.63
गुजरात
22.13
27.33
मध्य प्रदेश
23.34
28.77
उत्तर प्रदेश
24.53
31.34
उत्तरांचल
17.76
43.51
बिहार
27.12
35.48
झारखंड
9.63
40.28
अरुणाचल प्रदेश
18.65
73.42
नागालैण्ड
25.06
69.58
मणिपुर
-5.91
42.99
मिजोरम
-9.27
122.54
मेघालय
18.25
61.35
असम
12.26
29.30
प. बंगाल
14.23
25.91
उड़ीसा
5.86
25.91
असम व बंगाल के जनसंख्या के आंकड़े तो और भी अधिक दिल दहलाने वाले हैं। 1991-2001 की अवधि में असम के निम्न जिलों में हिन्दू व मुसलमान की जनसंख्या वृद्धि का प्रतिशत इस प्रकार है :-
1991-2001
असम में जनसंख्या वृद्धि का प्रतिशत
जिला
हिन्दू
मुस्लिम
धुबरी
7.1
29.5
गोलपाड़ा
14.4
31.7
हेलाकांडी
13.3
27.2
करीमगंज
14.5
29.4
कछार
16
24.6
बरपेटा
10
25.8
नगांव
11.3
32.1
मारी गांव
16.3
27.2
दरांग
9.6
28.9
इसी प्रकार से 1991-2001 की अवधि में मुसलमानों व हिन्दुओं की जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत प. बंगाल के निम्न जिलों में इस प्रकार था-
1991-2001 में प. बंगाल में जनसंख्या वृद्धि का प्रतिशत
जिला
हिन्दू
मुस्लिम
दक्षिण 24 परगना
11.5
34.2
उत्तर 24 परगना
22.6
23
मुर्शिदाबाद
16.4
20.4
मालदा
19.4
30.7
कोलकाता
0.7
19
दक्षिण व उत्तर
22.7
31.9
दीनाजपुर
जलपाइगुड़ी
20.4
31.3
कूच बिहार
12.8
18.5
देश के प्राय: सभी जिलों में मुसलमानों की जनसंख्या में वृद्धि का प्रतिशत हिन्दुओं के मुकाबले 1.5 गुणा के लगभग है। अर्थात् 40 वर्षों में मुसलमानों की जनसंख्या 7.61 प्रतिशत बढ़ गई है और हिन्दुओं की जनसंख्या उसी अनुपात में कम हो कर 64.9 प्रतिशत रह गई है।
इन आंकड़ों में छद्म पंथनिरपेक्षतावादियों का यह दुष्प्रचार बेनकाब हो जाता है कि भारत में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि नहीं हो रही थी तथा हिन्दू संगठनों द्वारा केवल डर पैदा किया जा रहा है। जबसे ये आंकड़े प्रकाशित हुए हैं, अनेक वामपंथी पंथनिरपेक्षतावादी लेखकों व नेताओं ने निरन्तर कम होते हिन्दुओं के जनसंख्या प्रतिशत पर चिन्ता न करने की सलाह दी है। इस प्रकार की सलाह देने वाले और भी अनेक वर्ग हैं। एक तो वे जिनका सम्बंध मुस्लिम व ईसाई पंथ से है। उनके लिए मतान्तरण मजहबी कर्तव्य है। हिन्दुओं को मुसलमान या ईसाई बनाना उनके मजहब के अनुसार पुण्य कार्य है। उनके मजहबी ग्रंथ, उनके मजहबी स्थान, उनकी मजहबी पाठशालाएं, उनके मजहबी सेवा संस्थान- सबका उद्देश्य अन्य मतावलम्बियों को अपने पंथ में लाना है। इसके लिए ईसाई देशों और मुस्लिम देशों से अरबों-खरबों रुपए प्रतिवर्ष भारत आते हैं और मतान्तरण के लिए खर्च किए जाते हैं। आठ सौ वर्ष तक मुस्लिम शासकों ने और दो सौ वर्षों तक ईसाई शासकों ने सत्ता के बल पर, नृशंस अत्याचारों से और धन व अधिकारों के लोभ से हिन्दुओं के मत परिवर्तन के अनथक प्रयास किए। स्वतंत्रता के बाद भी मतान्तरण का यह सिलसिला जारी है। हिन्दुओं की जनसंख्या का प्रतिशत कम होने और उनकी जनसंख्या वृद्धि पर ऐसे तत्वों का प्रसन्न होना स्वाभाविक है।
दूसरी ओर वे लोग हैं जिनका धर्म में विश्वास ही नहीं है, जिनमें कम्युनिस्ट व उनके सहयोगी हैं। धर्म के बंधन ढीले हों अथवा धार्मिक आस्था पूर्णतया नष्ट हो जाए तभी कम्युनिज्म का प्रसार हो सकता है। इस विश्वास के कारण वे हिन्दुत्व को अपना शत्रु समझते हैं और यदि हिन्दुओं का प्रतिशत कम होता है तो इस पर चिंता करना वे मूर्खता समझते हैं।
तीसरे प्रकार के लोग वे हैं जो आधुनिक विज्ञान और तकनीक के युग में जनसंख्या को महत्वपूर्ण नहीं समझते। उनका तर्क यह है कि इस्रायल की जनसंख्या 60 लाख है परन्तु अपने इर्द-गिर्द के सात-आठ करोड़ मुस्लिम जनसंख्या के देशों को उसने दबा रखा है। चीन, जो पहले जनसंख्या को अत्यन्त महत्वपूर्ण समझता था, अब जनसंख्या कम करने पर कटिबद्ध है। परन्तु ऐसे लोग जनसंख्या के कम होने पर तथा जनसंख्या में प्रतिशत कम होने के अन्तर को नहीं समझते।
परन्तु इन सबसे अधिक गुनहगार कांग्रेसी नेता व प्रशासक हैं। उनकी चिन्ता इस बात को लेकर नहीं है कि हिन्दुओं की जनसंख्या कम हो रही है, उनकी चिन्ता इस बात को लेकर है कि इस विषय को लेकर हिन्दू समाज कहीं चिन्तित न हो जाए। हिन्दू समाज में इसकी प्रतिक्रिया होने पर उनका सेकुलरिज्म खतरे में पड़ता है और उनका मुस्लिम तुष्टीकरण का एजेण्डा हानिकारक दिखने लगता है। उन्हें लगता है कि मुसलमानों की संख्या जितनी बढ़ेगी उनका वोट बैंक उतना ही बढ़ेगा। मीर जाफरी मानसिकता वाले ये लोग क्यों नहीं समझते कि भारत में सेकुलरिज्म, बहुलतावाद, उदारवाद, सर्वपंथ समभाव तभी तक जीवित है, जब तक यह देश हिन्दूबहुल है। विश्व के 60 से अधिक मुस्लिम बहुल देशों में से किसी एक में भी सर्वधर्म समभाव या सेकुलरवाद है क्या? सभी ने अपने को इस्लामिक देश घोषित कर रखा है और इस्लाम उनका सरकारी मजहब है। अल्पसंख्यकों के अधिकार इन सभी देशों में नगण्य है और कुछ मुस्लिम देशों में तो इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को सार्वजनिक रूप से मानने पर भी पाबंदी है। हमें स्मरण रखना चाहिए कि मुस्लिमबहुल राष्ट्रों में अल्पसंख्यकों का समूल विनाश होता है। हिन्दूबहुल अफगानिस्तान प्राय: हिन्दूविहीन हो गया है। पाकिस्तान में विभाजन के समय हिन्दू जनसंख्या 23 प्रतिशत थी जो अब एक प्रतिशत से भी कम है। कश्मीर घाटी भारत का अंग होते हुए भी अब प्राय: हिन्दूविहीन है। बंगलादेश में 1951 में हिन्दुओं की जनसंख्या 30 प्रतिशत थी जो अब 7-8 प्रतिशत रह गई है।
पाकिस्तान व बंगलादेश मुस्लिम देश हैं। वहां पर हिन्दुओं की जनसंख्या कम हो रही है, इसके कारणों को समझा जा सकता है। परन्तु स्वतंत्र भारत में पिछले 50 वर्षों में हिन्दुओं का प्रतिशत कम होता जा रहा है यह आश्चर्यजनक तो है ही, उससे भी अधिक आश्चर्यजनक यह है कि हिन्दुओं और हिन्दू नेताओं में इस पर कोई दु:ख, कोई परेशानी या चिंता भी नहीं दिख रही है।
यह तर्क भी दिया जाता है कि 50 वर्षों में हिन्दुओं की जनसंख्या 4.5 प्रतिशत घटी है तो हिन्दुओं को भारत में अल्पसंख्यक होने में 300 से 400 वर्ष लगेंगे। परन्तु हमें समझना चाहिए कि एक तो जनसंख्या की बढ़ोतरी ज्यामितीय अवरोह में होती है। दूसरा बंगलादेश व पाकिस्तान से साजिश के तहत हो रही अन्धाधुंध घुसपैठ भी विनाशकारी है। तीसरा किसी राष्ट्र के जीवन में 300-400 वर्ष की अवधि होती ही क्या है?
यह भी हमारे मन-मस्तिष्क में रहना चाहिए कि भारत में विभाजन से पूर्व मुस्लिम जनसंख्या 22-23 प्रतिशत थी और उन्होंने भारत का विभाजन करवा कर एक नहीं दो-दो मुस्लिम राष्ट्र बनवा लिए। अब शेष भारत में मुस्लिम जनसंख्या का 23 प्रतिशत तो अगले तीस-चालीस वर्ष में ही हो जाएगा। अभी भी पृथक मुस्लिम जिले बनाने की मांग निरन्तर उठ रही है। हिन्दुओं का जनसंख्या-प्रतिशत घटने और मुसलमानों का जनसंख्या प्रतिशत बढ़ने के अनेक कारण हैं, जैसे-
एक षडंत्र के तहत बंगलादेश और पाकिस्तान से घुसपैठ।
हिन्दुओं द्वारा परिवार नियोजन और मुसलमानों द्वारा इसका विरोध।
देश में सामान्य नागरिक संहिता न होने के कारण दूसरा विवाह करने के लिए हिन्दुओं का मुसलमान बन जाना।
ईसाई मिशनरियों तथा अन्तरराष्ट्रीय मुस्लिम संस्थाओं द्वारा प्राप्त खरबों रुपए की धनराशि का प्रयोग कर वनवासियों व दलितों का मतांतरण।
इसलिए सर्वप्रथम तो भारत में घुसपैठ को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। भारत कोई धर्मशाला नहीं है कि विश्व भर से कोई भी आकर यहां बस जाए। भारत का एक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर होना चाहिए। पासपोर्ट की तरह प्रत्येक नागरिक का एक बहुमुखी परिचय पत्र होना चाहिए और उसका परिचय पत्र क्रमांक होना चाहिए। मृत्यु होने पर अथवा पता बदलने अथवा नगर, प्रदेश बदलने पर उसमें संशोधन होना चाहिए। विश्व के अनेक देशों में ऐसी व्यवस्था है। ऐसा होने पर पाकिस्तान, बंगलादेश तथा विश्व के अन्य देशों से भारत में घुसपैठ कर आने वालों की पहचान स्वत: हो जाएगी और उन्हें निकालना सम्भव होगा।
बढ़ती हुई जनसंख्या देश की आर्थिक व सामाजिक स्थिति के लिए भीषण खतरा है। जिस देश में 50 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करते हों, जहां दस करोड़ से अधिक बेकार हों, जहां पचास प्रतिशत से अधिक अशिक्षित हों, जहां करोड़ों बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर जाते हों, वहां जनसंख्या वृद्धि को रोकना अनिवार्य एवं राष्ट्रीय कर्तव्य है। अत: यह मांग करना उचित नहीं होगा कि मुसलमान परिवार नियोजन नहीं करते अत: हिन्दुओं को भी परिवार नियोजन नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत चीन की तरह हिन्दू व मुसलमानों, दोनों को कानूनन परिवार नियोजन के लिए बाध्य करना चाहिए। दो से अधिक संतान होने पर अनेक प्रकार के अनुत्साहन और तीन से अधिक पर कानूनी प्रतिबंध लगाना अधिक उपयुक्त होगा। इसी प्रकार से सारे देश के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाना भी अत्यावश्यक है, जिसमें एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह गैर-कानूनी और अपराध हो। इस समय हिन्दू कानून के अन्तर्गत तो यह अपराध है परन्तु वही हिन्दू यदि अपने को मुसलमान घोषित कर दे तो चार विवाह कर सकता है।
यह ठीक है कि ईसाई मिशनरियां और मुस्लिम मतप्रचारक अरबों रुपए सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से शोषित एवं दलित लोगों पर खर्च कर रहे हैं और उनकी गरीबी व पिछड़ेपन का अनुचित लाभ उठाकर बेहतर आर्थिक व सामाजिक जीवन की ललक में उनका मत परिवर्तन कर रहे हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के क्षेत्रों में शिक्षा, चिकित्सा व नागरिक सुविधाओं के व्यापक कार्यक्रम शुरू करे। उन क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने के विशेष प्रयत्न हों। साथ ही हिन्दू समाज को भी सामाजिक दृष्टि से पिछड़े अपने भाइयों को अपने समकक्ष स्थान देना चाहिए। हिन्दू रहते हुए वह अछूत और हेय है और मुसलमान या ईसाई बनते ही सामाजिक दृष्टि से वह हमारे बराबर हो जाते हैं, यह स्थिति चल नहीं सकती। सभी धर्माचार्यों को एक स्वर से जन्म के आधार पर ऊंच-नीच, छूत-अछूत को अमान्य करने तथा सामाजिक समरसता के लिए आवाज उठानी चाहिए।
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