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हिन्दुओं के नकारात्मक बनने का है
इधर कुछ वर्षों से हिन्दुओं के एक वर्ग में उत्पन्न असहिष्णुता, उग्रता और हिंसक प्रवृत्ति को मैं हिन्दू धर्म के अस्तित्व पर प्रहार मानता हूं। मैं हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का खतरा उतना बड़ा नहीं मानता जितना कि उसके कुछ वर्गों में आई नकारात्मकता को मानता हूं।
लल्लन प्रसाद व्यास
इधर कुछ वर्षों से हिन्दुओं के एक वर्ग में उत्पन्न असहिष्णुता, उग्रता और हिंसक प्रवृत्ति को मैं हिन्दू धर्म के अस्तित्व पर प्रहार मानता हूं। मैं हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का खतरा उतना बड़ा नहीं मानता जितना कि उसके कुछ वर्गों में आई नकारात्मकता को मानता हूं। यह हिन्दू परम्परा, प्रकृति और संस्कार के विरुद्ध है। विभिन्न हिन्दू संगठनों में भी इन प्रवृत्तियों का दबाव बढ़ रहा है। मुझे लगता है कि हिन्दुओं का भारतीयों के विरुद्ध खतरों, चुनौतियों और षडंत्रों का सामना नीतिमत्ता और विवेक से करना चाहिए। राजनीतिक हितों के पोषण हेतु उग्रता और धार्मिक उन्माद हिन्दू हितों के विरुद्ध जाएगा। महात्मा गांधी की हत्या से लेकर गुजरात कांड तक की घटनाओं को मैं हिन्दू समाज के लिए कलंक मानता हूं। भारतीय संस्कृति की अमरता उसकी उदारता में समाई है, उग्रता या प्रतिक्रिया में नहीं। काश, इस दर्द को महत्वपूर्ण हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन भी ह्मदयंगम कर सकते। क्रिया-प्रतिक्रिया या हिंसा-प्रतिहिंसा के चक्र में पड़कर देश और समाज का क्या होगा, यह प्रश्न विचारणीय है।
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