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यशदेव शल्य को मूर्तिदेवी सम्मानसमारोह में (बाएं से) पुरस्कार मंडल के अध्यक्ष डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, श्री विष्णु प्रभाकर, श्री यशदेव शल्य एवं श्री विद्यानिवास मिश्रलेखक का लेखक के हाथों सम्मान, यह भावपूर्ण संयोग भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा आयोजित मूर्तिदेवी सम्मान समारोह के अवसर पर साकार हुआ। भारतीय ज्ञानपीठ का वर्ष 2002 का मूर्तिदेवी पुरस्कार प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर के हाथों प्रसिद्ध दार्शनिक श्री यशदेव शल्य को अर्पित किया गया। पुरस्कार में प्रशस्ति पत्र, देवी सरस्वती की प्रतिमा और एक लाख रुपए का चेक समाहित है। यह कार्यक्रम गत 17 दिसम्बर को नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में सम्पन्न हुआ।इस अवसर पर बोलते हुए श्री विष्णु प्रभाकर ने कहा, “हम जब किसी का सम्मान करते हैं तो उसके साथ स्वयं भी सम्मानित होते हैं। श्री शल्य जैसे ज्ञानी का सम्मान भी करने पर उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ को साधुवाद देते हुए कहा कि आज के युग में जब हम पश्चिम से आक्रांत हैं, हमें ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो नई भूमि तैयार कर सके। पुरस्कार निर्णायक मंडल के अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार श्री विद्यानिवास मिश्र ने कहा, “श्री यशदेव शल्य दर्शन के भारतीय भाषा में साधक हैं। हिन्दी भाषा में दर्शन के विचार प्रकट करने में श्री शल्य का अतुलनीय योगदान है। उन्होंने ऐसी भाषा का निर्माण किया जिसमें शास्त्र भी लिखे जा सकें और जो आम आदमी के जीवन के भी नजदीक हो। श्री शल्य ऐसे प्रतिष्ठित दार्शनिक हैं जो अस्तित्व, सत्ता और मूल्यवत्ता पर विचार करते रहे हैं।”पुरस्कार स्वीकार करते हुए श्री यशदेव शल्य ने कहा, “मैं दर्शन का विद्यार्थी हूं। दर्शन मेरी औपचारिक शिक्षा का विषय या मेरे जीवन-यापन का साधन कभी नहीं रहा। मेरी पढ़ाई का माध्यम हिन्दी ही रहा इसलिए दर्शन के बारे में मैंने बाहर से ही पढ़ा। विश्वविद्यालय की परीक्षाएं मेरे लिए “पंगुं लंघयते गिरिम्” की तरह रहीं। मैं विद्यालय व्यवस्था से बाहर और निगुरा ही रहा।” कार्यक्रम की शुरुआत में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक श्री प्रभाकर श्रोत्रिय ने मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकारों के बारे में जानकारी दी।-प्रतिनिधिNEWS
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