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पाठकीय

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Sep 1, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Sep 2005 00:00:00

अंक-संदर्भ, 12 दिसम्बर, 2004पञ्चांगसंवत् 2061 वि. वार ई. सन् 2005 पौष कृष्ण 14 रवि 9 जनवरी सोमवती अमावस्या सोम 10 जनवरी पौष शुक्ल 1 मंगल 11 जनवरी ,, ,, 2 बुध 12 (पंचकारम्भ) ,, ,, 3 गुरु 13 जनवरी ,, ,, 4 शुक्र 14 जनवरी ,, ,, 5 शनि 15 जनवरी कांग्रेस का हाथ किसके साथगरीब या कम्युनिस्ट?कांग्रेस राज में जिस प्रकार महंगाई बढ़ रही है उससे लगता है कि कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ नहीं, बल्कि गरीबों की जेब पर है। आज आवश्यक वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं, चाहे वह इस्पात हो, प्लास्टिक हो या रसोई गैस। रही-सही कसर दिल्ली सरकार ने पानी के दाम बढ़ा कर पूरी कर दी। परन्तु आश्चर्य यह है कि जो वामपंथी हमेशा गरीबों के हितों के लिए लड़ने का दिखावा करते थे, अब वे चुप हैं। उनका विरोध सिर्फ दीवारें काली करने तक ही क्यों सीमित रह गया है? वामपंथी नेता किसी भी कीमत पर सरकार को समर्थन देते रहने की बात क्यों करते हैं? चाहे भारत की गरीब जनता भुखमरी के कगार पर ही क्यों न पहुंच जाए, वामपंथियों की बस एक ही इच्छा है कि किसी भी कीमत पर भाजपा सत्ता से दूर रहे। इसीलिए कांग्रेस सरकार गरीब विरोधी कार्य कर रही है क्योंकि उसे पता है कि वामपंथी केवल बोल सकते हैं, सरकार गिरा नहीं सकते।-विजय बंसल21/490, त्रिलोकपुरी, नई दिल्लीयह नहीं, वह हैहमारा नव वर्षपहली जनवरी के एक सप्ताह पहले ही हमारे देशवासियों को बुखार चढ़ जाता है नव वर्ष का। आकर्षक और विभिन्न भाषाओं में छपे नव वर्ष के बधाईपत्र बाजार के हर कोने में लगे होते हैं। निजी कम्पनियों द्वारा जगह-जगह पर अपने विज्ञापन के लिए सतरंगी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जहां नवयुवक शराब के नशे में धुत होकर पश्चिमी सभ्यता के रंग-ढंग में नए वर्ष का स्वागत करते हैं। इस आधुनिक पीढ़ी को शायद इतना भी पता नहीं होता कि पहली जनवरी से अंग्रेजी नव वर्ष प्रारंभ होता है, जिसका न तो हमारे देश से कोई संबंध है और न ही हमारे देशवासियों से। वैसे भी इस दिन कुछ भी नयापन हमारे इर्द-गिर्द व प्रकृति में दिखाई नहीं देता। जितने समय में पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है, उस समय को वर्ष कहा जाता है अर्थात् वर्ष का सीधा संबंध प्रकृति से जुड़ा है। फिर भी हम नए साल के शोर में अपने आप को मूर्ख साबित करने पर क्यों तुले रहते हैं?हमारे यहां जब चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) आधा चला जाता है तो पेड़-पौधे अपने पुराने पत्तों को त्यागकर नए पत्ते धारण कर लेते हैं। सुन्दर फूलों की खुशबू से सारा वातावरण सुगन्धित हो जाता है। किसान अपनी पकी हुई लहलहाती फसल देखकर गुनगुना रहा होता है। अर्थात् हर तरफ सब नया ही नया। ठीक इसी समय हमारा भारतीय नव वर्ष विक्रमी संवत् आरंभ होता है। फिर हम अंग्रेजी वर्ष के पीछे भागकर अपनी सभ्यता और संस्कृति को स्वयं ही नष्ट क्यों कर रहे हैं? आइए, हम नकली तथा खोखली बातों को त्यागकर अपनी वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक मान-मर्यादाओं और रीति-रिवाजों को अपना कर राष्ट्रीय गौरव और मान-सम्मान में वृद्धि करें।———————————————————————————कृष्ण कुमार “भारतीय”कलायत मण्डी, जि. कैथल (हरियाणा)जब से केन्द्र में संप्रग सरकार आई है, महंगाई बढ़ने लगी है। निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों का घरेलू बजट बिगड़ चुका है। एक तो पहले से वेतन कम और अब ऊपर से कमरतोड़ महंगाई। लाखों परिवार ऐसे हैं जो किसी तरह बस गुजारा कर रहे हैं। रसोई गैस की किल्लत ने तो और भी समस्याएं खड़ी कर दी हैं। राजग सरकार के समय गैस की कोई कमी नहीं थी। पर इस सरकार के आते ही गैस का अभाव हो गया। नए “कनेक्शन” भी नहीं दिए जा रहे हैं। जबकि राजग सरकार ने “गैस कनेक्शन” के लिए प्रतीक्षा सूची भी समाप्त कर दी थी।-अंजनी कुमारटी-1881/2, अशोका पहाड़ी,करोल बाग, नई दिल्लीयह राहत देता हैइस अंक में आपने मुखपृष्ठ सहित कई पृष्ठों पर भाजपा के बारे में लिखा, फिर भी इस अंक ने मुझे प्रभावित किया है। शंकराचार्य के मुद्दे पर श्रीमती सुषमा स्वराज से बातचीत, बेगम हजरत महल के जीवन के अन्तिम वर्षों का विवरण एवं हिन्दू राष्ट्र नेपाल के प्रति उनका विश्वास, त्रिनिदाद एवं टोबैगो के उच्चायुक्त पं. मणिदेव प्रसाद द्वारा नई दिल्ली में दीवाली उत्सव का आयोजन- इन सब को पढ़कर श्रेष्ठ सामग्री का अहसास हुआ।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणानगर, एटा (उ.प्र.)शक्ति संगठन जरूरीश्री देवेन्द्र स्वरूप ने मंथन के अंतर्गत कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य के साथ हुए दुव्र्यवहार से व्यथित हिन्दू समुदाय द्वारा देशभर में शालीन विरोध प्रदर्शन का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि इस शालीनता को कायरता न समझा जाए। हिन्दू समाज की अपनी विशिष्ट प्रकृति है। नि:संदेह, इस प्रकृति में धीरज का काफी अनुपात है। हिन्दू समाज हिन्दू-विरोधी और भारत-विरोधी ताकतों के गठजोड़ के कारनामों को बड़े धीरज से देख रहा है। यह हिन्दू समाज के नेतृत्व की परीक्षा की घड़ी है। आत्म-संयम, आत्म-बल और आत्म-त्याग के आधार पर इन चुनौतियों का मुकाबला करना होगा। हिन्दुओं में एकता, जागृति और समर्पण के भाव जगाने होंगे और उनकी बिखरी शक्ति को एकसूत्र में बांधना होगा। यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बेहतर और कौन कर सकता है।-सुकन्या घोषचित्तरंजन पार्क, नई दिल्लीतड़क-भड़क बन्द होसम्पादकीय “शादियों का तमाशा” में एक सटीक सामाजिक विषय को उठाया गया है। दिखावे के लिए अनाप-शनाप खर्च करने की प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। मानो यह भी कोई अन्तरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता हो। इसका सबसे बुरा प्रभाव मध्यम वर्ग पर पड़ता है। इस तरह की तड़क-भड़क को देखकर वह भी इसकी बराबरी करना चाहता है। नतीजतन कर्ज के चंगुल में फंसकर वह अपनी सामाजिक व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर लेता है।-दीपक नाईक”वैभवी विहार”, 14,विद्युत नगर,हरनियाखेड़ी (म.प्र.)सुझाव सार्थक हैहिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डा. प्रेम कमार धूमल ने अपने लेख “अध्यक्षीय प्रणाली से होगा-विकास भी, आम आदमी की भलाई भी” में संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षीय प्रणाली लाने का सुझाव दिया है। इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि हमारे संविधान निर्माताओं ने देश के सर्वांगीण विकास के लिए जो शासन-पद्धति, नीतियां एवं मापदण्ड तय किए थे, वे असफल होते दिख रहे हैं।-सुभाष वडोलेसंघ कार्यालय, कुम्हारी मोहल्ला, अमरवाड़ा, जिला-छिंदवाड़ा (म.प्र.)उन्हें भी अच्छा नहीं लगाश्री शाहिद रहीम की रपट “स्वामी जी की गिरफ्तारी, बाबरी ध्वंस से बड़ी घटना” पढ़कर लगा कि मुस्लिम मजहबी नेता भी पूज्य शंकराचार्य की गिरफ्तारी से सहमत नहीं हैं। परन्तु वोट बैंक के लालची हमारे नेताओं को वही बात सुहाती है, जो उन्हें सत्ता दिला सके।-शक्तिरमण कुमार प्रसादश्रीकृष्णनगर, पथ सं. – 17, पटना (बिहार)क्या बताना चाहती हैराजस्थान सरकार?हमारे त्योहार कौन-कौन से हैं? इसके बारे में आम नागरिक से पूछने पर एक ही जवाब मिलता है कि होली एवं दीवाली। लेकिन राजस्थान सरकार की नजर में हमारे त्योहार ईद एवं क्रिस्मस हैं।चकित कर देने वाली यह बात वर्तमान में सरकारी विद्यालयों में कक्षा चार के विद्यार्थियों को पढ़ायी जा रही है। इस पुस्तक में हमारे त्योहार नामक पाठ में सिर्फ ईद एवं क्रिस्मस को ही त्योहार माना गया है। होली और दीपावली जैसे विश्व प्रसिद्ध भारतीय त्योहारों का इसमें जिक्र तक नहीं है जबकि ईद व क्रिस्मस को चित्रों सहित प्रकाशित किया गया है। विद्यालयों में यह पाठ पिछले काफी समय से पढ़ाया जा रहा है। इससे अबोध बालकों में गलत धारणाएं फैल रही हैं। त्योहारों के बारे में गलत पाठ को सुधारने के लिए न तो विपक्ष जाग रहा है और न ही सत्तारूढ़ दल संशोधन के बारे में सोच रहा है। रोचक तथ्य यह है कि इस पाठ्य सामग्री को पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने मान्यता दी थी मगर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने भी इसकी सुध नहीं ली है।पूरा विश्व जानता है कि भारत के दो प्रमुख त्योहार दीवाली एवं होली हैं। इन त्योहारों के बारे में देश-विदेश की पुस्तकों में उल्लेख मिलता है। इसके अलावा हिन्दू संस्कृति में पूरे वर्ष में करीब 300 प्रमुख त्योहार आते हैं, लेकिन राजनीति में उलझे राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल के पास यह सोचने और समझने का समय नहीं है। पुस्तक के लेखक डा. कमला जैन, श्रीमती मयूरनी भट्ट तथा श्री ओमप्रकाश जोशी हैं। इस पुस्तक में रा.रा.शै.अ.प्र.सं., उदयपुर के निदेशक ने अभिभावकों के लिए लिखे संदेश में बताया है कि यह पाठ्यपुस्तक इस संस्थान द्वारा निर्मित जन सम्मत एवं जीवनोपयोगी शिक्षाक्रम के आधार पर तैयार की गई है। इस शिक्षाक्रम का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ भावी पीढ़ी को परस्पर सहयोग की भावना से कार्य करने के लिए सक्षम बनाना है। इसके अध्ययन के बाद शिक्षार्थियों में योग्यताएं विकसित हांेगी। पर ये संदेश इस पुस्तक में दिए गए ज्ञान से परे हैं। क्या इस शिक्षा को अपने मनमंदिर में उतारने वाला अबोध बालक सही दिशा में आगे बढ़ सकता है? बालक तो यही सोचेगा कि उसे जो पढ़ाया जा रहा है वही सही है। बहरहाल, यह सच है कि ईद और क्रिस्मस भी भारतीय त्योहारों की श्रेणी में आते हैं मगर बहुसंख्यक विद्यार्थी हिन्दू हैं और दीवाली व होली को इस पाठ्यपुस्तक में शामिल नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है।-हेमन्त जोशीसुराणों की बड़ी पोल, नागौर (राजस्थान)स्तरवेअपना-अपना”स्तर”ऊंचा उठा रहे हैं…।आपस मेंएक-दूसरे को”नीचा” दिखा रहे हैं…।।-श्रीराम साहू “अकेला”समलाई चौक, क्षितिज निवास, बनसूला, पत्रालय – बसना,जि. महासमुंद (छ.ग.)-493554पकड़े गएलालू जी पकड़े गए, बांट रहे थे नोटरैली में आओ सभी, फिर दो हमको वोट।फिर दो हमको वोट,देश को मूर्ख बनाकरजीते सभी चुनाव, निर्धनों को बहकाकर।कह “प्रशांत” जब तक विपक्ष संगठित न होगालालू का आतंक वहां से नहीं मिटेगा।।-प्रशांतNEWS

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