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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

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Sep 1, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Sep 2005 00:00:00

वर्ष 9, अंक 31, पौष शुक्ल 10, सं. 2012 वि., 13 फरवरी, 1956, मूल्य 3आनेसम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रप्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊउ.प्र. के मंत्री द्वारा उर्दू में बजट!आम चुनाव में मुस्लिम-वोट प्राप्त करने की चालमुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)लखनऊ : विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि उ.प्र. के वित्त मंत्री श्री हाफिज इब्रााहिम ने समस्त अनुरोधों तथा अनुनय-विनय को ठुकरा कर प्रादेशिक सरकार का बजट उर्दू में प्रकाशनार्थ प्रस्तुत किया। समझा जाता है कि सहयोगी मंत्रियों की सलाह पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया है। स्मरण रहे अब तक उ.प्र. का बजट सदैव हिन्दी में प्रकाशनार्थ प्रस्तुत किया जाता रहा है।गोआ और कांग्रेसकांग्रेस कार्यसमिति ने अभी हाल में शहीदनगर (अमृतसर) में होने वाले कांग्रेस ने 61 वें अधिवेशन के अवसर पर एक प्रस्ताव की रूप रेखा निर्धारित करते हुए कहा है कि कांग्रेस भारत भूमि से पुर्तगाली उपनिवेशवाद को यथाशक्ति मिटाने का प्रयास करेगी।” प्रस्ताव में आश्चर्य प्रकट करते हुए यह भी कहा गया है कि विश्व की कुछ प्रमुख शक्तियों ने भारत स्थित पुर्तगाली बस्तियों पर पुर्तगाली शासन का समर्थन किया है।इसके अतिरिक्त कांग्रेस के महामंत्रियों ने भी गत वर्ष की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा है “गोआ के निवासियों तथा भारतवासियों और यहां तक कि भारत सरकार का कर्तव्य और अधिकार हो जाता है कि वे गोआ को मुक्त कराकर भारत में मिलायें।” हमें हर्ष है कि कांग्रेस आज गोआ-मुक्ति की पुकार करने को तैयार हुई है। किन्तु हमें अभी संदेह है कि कांग्रेस इस पुकार को कहीं शब्दों तक ही सीमित न छोड़ दे और वास्तविक समस्या जहां की तहां बनी रहे। हमारी शंका निराधार नहीं है। हमारी शंका का आधार गोआ के सम्बंधों में अभी तक सरकार तथा कांग्रेस द्वारा बरती गई नीति है। हम अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करने के लिए आवश्यक समझते हैं कि अब तक के गोआ-मुक्ति-संग्राम और उसके प्रति कांग्रेस तथा सरकार के रुख पर दृष्टिपात कर लिया जाए। बर्बर पुर्तगाली शासन की यंत्रणाओं से प्रपीड़ित भारत माता का यह अंग, गोआ, सदियों से परतंत्रता का जीवन व्यतीत कर रहा है। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् सभी को आशा थी कि गोआ शीघ्रातिशीघ्र विदेशियों के चंगुल से मुक्त हो जाएगा। लेकिन ऐसा न हो सका। भारत सरकार ने इस ओर अधिक से अधिक जो किया वह यह कि गोआ के पुर्तगाली शासकों की सेवा में समय-समय पर विरोध पत्र प्रस्तुत किए। अंत में गोआ-वासियों ने निराश होकर स्वयं मुक्ति संग्राम के लिए कदम बढ़ाए। जुलाई-अगस्त, 1954 में स्वतंत्रता की लहर गोआ के कोने-कोने में व्याप्त हो गई। समस्त भारतीयों के अन्त:करण में अपने ही रक्त-मांस के टुकड़ों, गोआवासियों, की सहायता की भावना जाग्रत होना स्वाभाविक ही नहीं, अनिवार्य भी था। किन्तु कांग्रेस सरकार ने भारतीयों को गोआ में प्रविष्ट होने से रोक दिया, क्योंकि, उसके विचार से, गोआ की मुक्ति का प्रश्न गोवावासियों का प्रश्न है। इसके कारण भारतीयों की राष्ट्रीय भावना को ठेस लगी। स्वाभाविक प्रश्न उनके ह्मदय में शूल उत्पन्न करने लगा-क्या गोआ भारत का अंग नहीं है? क्या गोआवासी भारतवासी नहीं हैं?विधान-सभा को बनाए रखने की मांग अनुचित किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता असह्र(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)दिल्ली प्रदेश जनसंघ के प्रधान प्रो. बलराज मधोक ने कोटला फिरोजशाह में जनसंघ के कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भाषण करते हुए सरकार से अपील की कि “दिल्ली के भावी ढांचे का निर्णय करते समय वह उन लोगों को प्रसन्न करने का प्रयास न करे, जिनके दिल्ली विधानसभा के बने रहने में कुछ स्वार्थ उत्पन्न हो गए हैं। राज्य पुनर्गठन आयोग ने दिल्ली के विषय में जनसंघ के दृष्टिकोण की पुष्टि की है। इससे कुछ लोगों के स्वार्थ को अवश्य धक्का लगा है। वही लोग यह कहकर कि विधानसभा समाप्त करने से, राजधानी में प्रजातंत्र समाप्त हो जाएगा, मौजूदा ढांचा बनाये रखने के लिए दौड़-धूप कर रहे हैं।” प्रो. मधोक ने आगे कहा कि “असल में आयोग की रपट से प्रजातंत्र को नहीं, कुछ अधिकार के भूखे लीडरों के स्वार्थों को हानि पहुंचने का भय अवश्य है।”NEWS

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