श्री गुरुजी मानते थे
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श्री गुरुजी मानते थे

by
Aug 5, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Aug 2005 00:00:00

छुआछूत अभिशाप है-कुप्.सी. सुदर्शन, सरसंघचालक, रा.स्व.संघसमारोह में मंचस्थ (बाएं से) भन्ते ज्ञानजगत जी, श्री राम गोपाल सूर्यवंशी, श्री कुप्.सी. सुदर्शन, स्वामी गिरिजेशानन्द जी, श्री मोहनराव भागवत एवं श्री सत्यनारायण बंसल”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी छुआछूत को हिन्दू समाज के लिए एक अभिशाप मानते थे और उनके प्रयास से देश के प्रमुख 145 धर्माचार्यों ने उड़ुपी में एक मंच से यह घोषणा की कि हिन्दू पतित नहीं होता, वह सहोदर है तथा अस्पृश्यता को हिन्दू धर्म का कोई समर्थन नहीं है। जो अस्पृश्यता मानता है वह हिन्दू समाज को तोड़ने का कार्य करता है।” यह बात संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने गत 28 अप्रैल को नई दिल्ली में “श्री गुरुजी समग्र” के लोकार्पण अवसर पर कही। श्री गुरुजी के व्यक्तित्व और कृतित्व से सम्बंधित 12 खंडों वाले इस ग्रंथ का प्रकाशन श्री गुरुजी की जन्म शताब्दी के अवसर पर किया गया है। दिल्ली खटीक समाज के अध्यक्ष श्री रामगोपाल सूर्यवंशी के सान्निध्य में आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता रामकृष्ण मिशन के स्वामी गिरिजेशानंद जी ने की। इस अवसर पर संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत भी उपस्थित थे। उल्लेखनीय है इस ग्रंथ का लोकार्पण देश के प्रमुख नगरों में क्रमश: किया जा रहा है। श्री सुदर्शन ने इन ग्रंथों का लोकार्पण करने के पश्चात कहा कि श्री गुरुजी ने छुआछूत के खिलाफ अभियान चलाकर हिन्दू समाज के जागरण का जो कार्य किया वह उनके जीवन का सबसे बड़ा कार्य है।श्री सुदर्शन ने कहा कि संघ की गंगा दो धाराओं से मिलकर बनी। इनमें से डा. हेडगेवार संघ की राजनीतिक धारा के प्रतिनिधि थे और श्री गुरुजी आध्यात्मिक धारा के प्रतिनिधि। श्री गुरुजी ने संघ को आध्यात्मिकता के पुष्ट धरातल पर खड़ा किया। उन्होंने सबको जोड़ने वाले आत्मतत्व को पहचाना, जो भारतीय दर्शन की विशेषता है और यही विश्व बंधुत्व का आधार है। उन्होंने कहा कि डाक्टर साहब ने 1940 में संघ का भार श्री गुरुजी के कंधों पर डाला और श्री गुरुजी ने विपरीत परिस्थितियों में भी संघ कार्य को सुदृढ़ किया और इसका विस्तार किया। उनके दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही संघ को कुचलने का पंडित जवाहरलाल नेहरू का षडंत्र विफल हुआ। श्री सुदर्शन ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के 29 जनवरी, 1948 के उस भाषण का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने संघ को कुचलने की बात कही थी। उसी समय श्री गुरुजी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि संघ को कुचलने का कोई भी षडंत्र कभी सफल नहीं होगा। परन्तु अगले ही दिन (30 जनवरी को) दुर्भाग्य से महात्मा गांधी की हत्या हो गई और पंडित जवाहरलाल नेहरू को मौका मिल गया और उन्होंने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया।सभागार में उपस्थित गण्यमान्यजन। प्रथम पंक्ति में हैं (बाएं से) सर्वश्री राम माधव, रामफल बंसल, चरती लाल गोयल, (श्रीमती) सुषमा स्वराज, विजय कुमार मल्होत्रा, मदनलाल खुराना, मदनदास, मा.गो. वैध एवं श्री सुरेश सोनीमहात्मा गांधी की हत्या पर खेद व्यक्त करते हुए गुरुजी ने कहा था कि यह बहुत बुरा हुआ। एक श्रेष्ठ पुरुष की हत्या कर दी गई। पर, इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद श्री गुरुजी को गिरफ्तार किया गया। पूरे देश में संघ के कार्यकर्ताओं के घर पर हमले किए गए। छह माह बाद जब स्थिति शांत हुई तब श्री गुरुजी ने केन्द्र सरकार से पत्र व्यवहार किया, दिल्ली आकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल से मिले। श्री गुरुजी ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम पर जो अन्याय हुआ है उसका निराकरण किया जाए अथवा हम पर लगाए गए आरोपों को सिद्ध किया जाए। लेकिन पंडित नेहरू नहीं माने। तब श्री गुरुजी ने 9 दिसम्बर, 1948 को अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान किया। 77 हजार स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारियां दीं। अंतत: सरकार को झुकना पड़ा और उसे 12 जुलाई, 1949 को प्रतिबंध हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। श्री सुदर्शन ने बताया कि किस प्रकार प्रतिबंध हटने के बाद श्री गुरुजी ने पूरे देश में संघ शाखाओं का विस्तार कया। 1949 में विद्यार्थी परिषद् की स्थापना हुई, 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम, 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई और 1966 में प्रयाग कुम्भ के अवसर पर पहला विश्व हिन्दू सम्मेलन हुआ, जिसमें 25 देशों के 25 हजार से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए। उन्होंने बताया कि 1952 में जब डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना के लिए श्री गुरुजी से सहयोग मांगा तो उन्होंने स्वयंसेवक पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और सुंदर सिंह भंडारी को राजनीतिक कार्य के लिए उन्हें दिया। आज यह कार्य भारतीय राजनीति के केन्द्र में है और इनके खिलाफ विभिन्न राजनीतिक दल गोलबंद हो रहे हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामकृष्ण मिशन की जम्मू शाखा के अध्यक्ष स्वामी गिरिजेशानंद जी ने स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहा कि राष्ट्र का आदर्श त्याग और सेवा है। श्री गुरुजी त्याग और सेवा की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने त्याग अपने जीवन में उतारा और सेवा संगठन के द्वारा की। उन्होंने कहा कि आज श्री गुरुजी देह रूप में उपस्थित नही हैं परंतु वे श्री गुरुजी समग्र के रूप में हम सबके बीच विद्यमान हैं।इस अवसर पर महाबोधि सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष बौद्ध भिक्षु भंते ज्ञानजगत जी ने कहा कि ऐसा साहित्य चाहिए जो समाज को संस्कृति व स्वधर्म की मुख्य धारा से जोड़े, श्री गुरुजी समग्र ऐसा ही साहित्य है। दिल्ली खटीक समाज के अध्यक्ष श्री राम गोपाल सूर्यवंशी ने कहा कि दलित समाज के मुझ जैसे एक युवक को इस पवित्र समारोह में बुलाकर जो सम्मान प्रदान किया गया वह मेरे लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। हमारा प्रयास होगा कि श्री गुरुजी के आदर्शों का पालन करें। श्री गुरुजी समग्र का प्रकाशन सुरुचि साहित्य ने किया है। सुरुचि साहित्य के अध्यक्ष विनोद कुमार बजाज ने कार्यक्रम का संचालन किया व दिल्ली प्रांत के प्रचार प्रमुख श्री किशोरकांत ने ग्रंथों का परिचय दिया। इस अवसर पर श्री मोहन राव भागवत ने श्री गुरुजी समग्र के मुद्रक श्री बिहारी लाल सिंहल का शाल ओढ़ाकर अभिनंदन किया। दिल्ली प्रांत के संघचालक श्री सत्यनारायण बंसल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।(इं.वि.सं.के., दिल्ली)NEWS

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