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बंटवारे से मुसलमान तबाह हुएपाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की कोई हैसियत नहींहैदर फारुक मौदूदीपाकिस्तान के प्रसिद्ध इस्लामी राजनीतिक नेता, विद्वान और जमाते इस्लामी (मौदूदी) के अध्यक्ष हैदर फारुक मौदूदी से पाञ्चजन्य के सम्पादक तरुण विजय द्वारा लाहौर में की गई बातचीत के मुख्य अंश पिछले अंक में प्रकाशित हुए थे। यहां प्रस्तुत है उस साक्षात्कार का शेषांश।क्या आपको लगता है कि बंटवारे से मुसलमानों को कुछ फायदा नहीं हुआ?मुसलमान तक्सीम हो गए। हिन्दुस्थान में 20 करोड़ मुसलमान हैं, पाकिस्तान में 15 करोड़ और बंगलादेश में 18 करोड़। पचास-पचपन करोड़ अल्पसंख्यक तो नहीं होते। तो बंटवारे का नतीजा क्या हुआ? सिवाय मुसलमानों की तबाही के कुछ नहीं।यानी अगर एक रहते तो उनका बोलबाला ज्यादा रह सकता था?बोलबाले की बात नहीं, पर तब हम एक अहम रोल अदा कर सकते थे हिन्दुस्थान में।जमाते इस्लामी की छवि मुस्लिम कट्टरपंथी की है और माना जाता है इन जैसे संगठनों की वजह से हिन्दू-मुस्लिमों में दरार चौड़ी होती जा रही है। ऐसी छवि क्यों है और आप भारत-पाकिस्तान सम्बंधों के बारे में क्या सोचते हैं?यह जो छवि बनी है असल में उस जमाते इस्लामी की (एक अलग धड़ा, जिससे अलग होकर श्री मौदूदी ने अपनी पार्टी अलग बना ली -सं.) है जो बुनियादी तौर पर ये अयूब खां के जमाने से आयी। उस जमाने से “इन्टीलीजेन्स” एजेन्सियों के लिए सियासत करती है। वाजपेयी जी जब लाहौर आये तो जो मुजाहिरा हुआ, उनकी गाड़ी तोड़ी गयी वह सब आई.एस.आई. ने कराया था। नहीं तो किसी की जुर्रत हो सकती थी कि किसी विदेशी प्रधानमंत्री की गाड़ी तोड़ दी जाय। सबको पता है, कोई दबी-छिपी बात नहीं है। आई.एस.आई. ने पैसे दिए, उनके इशारे पर सारा हुआ।आप इतनी बेबाकी से बातें कर रहे हैं। क्या इन बातों को आम पाकिस्तानी भी समझता है?यहां हर आदमी सब बातें समझता है लेकिन हमारे यहां समस्या यह है कि कुछ लीडर ऐसे हैं जो दुष्प्रचार का काम करते हैं, नौजवानों के जज्बातों को भड़काते हैं। मैंने पिछले दिनों मुशर्रफ साहब को कश्मीर के बारे में सलाह दी थी कि साहब कश्मीर का हल जल्दी ढूंढा जाय। मुझसे जंग वालों ने पूछा था कि कश्मीर के मसले पर आपकी क्या राय है? मैंने कहा- मुशर्रफ साहब सेना प्रमुख हैं। किसी से लड़ने के लिए अपनी ताकत व दूसरे की ताकत का अंदाजा होना बहुत जरूरी है। मुशर्रफ साहब बहुत अच्छी तरह जानते हैं, इंडिया से अब हम नहीं लड़ सकते। 65 की लड़ाई से आज तक आपने देख लिया, हम नहीं लड़ सकते। इसलिए उन्हें अंदाजा है। जहां तक एटम बम चलाने की बात है वह सिर्फ धमकी ही है। इसको चलाने के बाद दुनिया में आपको जिन्दा कौन रहने देगा? सवाल यह है कि अगर आप एटम बम चला भी देते हैं और इंडिया नहीं चलाता तो इंडिया कहेगा ये देख लीजिए, पाकिस्तान लोगों को मार रहा है, इसके बाद क्या होगा? इसके बाद दुनिया में आपको जिंदा कहां रहने देंगे? यह मुशर्रफ साहब अच्छी तरह जानते हैं।अब कश्मीर के बारे में आप क्या सोचते हैं?अब कश्मीर के बारे में दो ही हल मुमकिन हैं, या तो आप जो मौजूदा कंट्रोल लाइन है उसे ठीक करें और उस कश्मीर को स्वतंत्र कर दिया जाय जो हरि सिंह के वक्त था। उसमें पाकिस्तान का ज्यादा नुकसान है। पाकिस्तान की खैर इसी में है कि जो नियंत्रण रेखा है उसको तसलीम कर ले।जनरल मुशर्रफ जो बात कर रहे हैं क्या ये भ्रमित करने के लिए है या अमरीकी दबाव में है। आखिर वे चाहते क्या हैं?मुशर्रफ साहब असल में चाहते ये हैं कि किसी न किसी तरह कश्मीर में कुछ मनमाफिक हो जाए। उनका विश्वास था कि शायद मनमोहन सिंह एक कमजोर वजीरे आजम हैं, उन्होंने यह मामला तय करने के लिए अजीज साहब को पहले भेजा भी था। वे भी जानते हैं असल में जिसे कहते हैं “तस्वीर देख के तमाशा देखने वाली बात” है। देखें क्या हल आता है।आपको क्या लगता है कि हिन्दुस्थान से, रिश्ते कैसे सुधर सकते हैं? हिन्दुस्थान से रिश्ते बिगड़ने या सुधरने के पीछे जो असली मसला है वह कश्मीर नहीं बल्कि जेहनियत का है?जिन्ना साहब हिन्दुस्थान से अलग इसलिए हुए थे कि हिन्दुओं से अक्सर हमारी जो दुश्मनी है वह खत्म हो जायेगी, हम अलग हो जायेंगे। लेकिन 57 साला तारीख (इतिहास) ने यह बात गलत साबित की है। नफरत बढ़ी है, दुश्मनी बढ़ी है, कम नहीं हुई है। मसले का यह हल नहीं है जो उन्होंने किया है। मसले का हल यह था कि हम वहीं रहते और दूसरी बड़ी शख्सियत होते। आपस में मिल बैठकर बात करते, आखिर इससे पहले भी हम साथ रहते थे। जब कभी लड़ाई-झगड़ा होता था तो अंग्रेज कराते थे। गाय का सर काटकर मंदिर के सामने रखते थे और सुअर काटकर मस्जिद के सामने फेंक देते थे।पर नफरत तो बढ़ी। ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान में भारत से दुश्मनी की जड़ में हिन्दुओं के प्रति नफरत है?मैं समझता हूं कि आम आदमी दुश्मनी का हिस्सा नहीं है।कुल मिलाकर आप क्या महसूस करते हैं?अब लोग यह बात कहते हैं कि भई किसी तरह खुदा के लिए हिन्दुस्थान से मामला तय करें ताकि हम इस फौज से निजात हासिल करें। हमारी किसी से लड़ाई नहीं है। चीन से हमारी दोस्ती है। चीन हमारा भाई है, अफगानिस्तान से भी हमारी दोस्ती है, ईरान से भी हमारी दोस्ती है। तो फिर लड़ाई किससे है? अगर हिन्दुस्थान से हमारा मामला तय हो जाता है तो मैं समझता हूं कि इतनी बड़ी फौज जो हमने पाल रखी है, इससे तो निजात हासिल होगी।पाकिस्तान में जो अल्पसंख्यक हैं, उनके बारे में आपकी क्या नीति है? उनके बारे में आप क्या सोचते हैं कि फौजी हुकूमत ने उनके लिए क्या किया है, क्या नहीं किया?देखिए पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की कोई हैसियत नहीं है, न उनकी कोई सुनवायी है।लाहौर में हमको पूरे पाकिस्तान से एक भी हिन्दू या ईसाई पत्रकार नहीं मिला?मैं आपसे अर्ज करूं कि यहां जहां तक मैं जानता हूं, लाहौर में एक ही परिवार है कपूर साहब का। उनकी जायदाद पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। अदालतों में उनकी सुनवायी नहीं है। उच्च न्यायालय में उनकी कोठी का एक मुकदमा था जिसकी सुनवायी नहीं होती थी। बेचारे कपूर साहब ने मुझसे कहा, मैंने मुख्य न्यायाधीश से कहा था। न्यायाधीश ने कहा कि आप क्यों उनकी मुखालफत कर रहे हैं, अच्छा है मुसलमान का ही फायदा होगा। अपनी कौम की बात है।यह पाकिस्तान में बड़ी आम बात मानी जायेगी?हां, लोग इसकी प्रशंसा करते हैं।आप जमाते इस्लामी के होने के बावजूद इस तरह की बात करते हैं तो विरोधी बात मानी जायेगी, कहा जायेगा कि शायद आप…?नहीं। देखिए बात यह है कि दहशतगर्दो का किसी मजहब से कोई ताल्लुक नहीं है। मुसलमान के लिए सब इंसान बराबर हैं। जो मुजाहिद हैं वे इंसान को एक अच्छा इंसान बनाने का काम करते हैं।कश्मीर में जो दहशतपसंद लोग बंदूकें चला रहे हैं उनको इस्लाम के सरपस्त लोग ये बात क्यों नहीं बताते?कश्मीर में हो क्या रहा है। कश्मीर में हमारी जो “इन्टेलीजेंस” एजेंसियां हैं उन्होंने यह काम शुरू कराया था। उसके जवाब में भारतीय सेना वहां आयी और मार-धाड़ शुरू की। अब जिस परिवार के आप नौजवान कत्ल कर देते हैं और उसका एक भाई कत्ल हो जाता है तो दो भाई अपने आप दुश्मन हो जाते हैं। दुश्मनी बढ़ती चली जाती है। ये तो अपना काम करके एक तरफ हो जाते हैं, ये काम हो रहा है पाकिस्तान में। हमारे लिए मुश्किल यह है कि न हम इनको रोक सकते हैं न उनको जाकर ये कहते हैं कि ये काम न करो तो वे कहते हैं- उन्होंने हमारे बाप- भाई का कत्ल कर दिया, हमारी मां-बहनों की इज्जत लूट ली, बताइये हम कहां जायें हमारे सारे नौजवान कत्ल हो जायेंगे। क्या हम औरतों के कंधों पर कब्रिस्तान जाएंगे।आप कभी हिन्दुस्थान आते हैं?मैं अक्सर हिन्दुस्थान जाता रहता हूं। अभी तो मैं हिन्दुस्थान गया था, दिल्ली तो हमारा शहर है, वहां बल्लीमारान में ही हम पैदा हुए।NEWS
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