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लालू और कांग्रेसएक जान, एक प्राणटी.वी.आर. शेनायटी.वी.आर. शेनायहर जांच अधिकारी जानता है कि किसी अपराध को सुलझाने का पहला नियम यह देखना है कि: उसका फायदा किसको पहुंचा? क्या इस सिद्धान्त को लालू प्रसाद यादव पर “हमले” के संदर्भ में लागू किया जा सकता है?मैं यह मान ही नहीं सकता कि नरेन्द्र मोदी अपने समर्थकों को वडोदरा आए रेल मंत्री पर पत्थर बरसाने को कहेंगे। यह जानते हुए कि दिल्ली में उनकी वैचारिक विरोधी सरकार है, ऐसा करना आत्मघाती मूर्खता ही होता। और आप चाहे गुजरात के मुख्यमंत्री के प्रशंसक हों या उनके अस्तित्व से जलते-कुढ़ते हों, यह तो मानेंगे ही कि नरेन्द्र मोदी बहके हुए तो कतई नहीं हैं।बहरहाल, यह विवाद का मुद्दा है क्योंकि इस बात का रत्तीभर भी सबूत नहीं है कि इसमें नरेन्द्र मोदी शामिल थे, लालू यादव चाहे जैसी भी उत्तेजक और अश्लील भड़ास निकालें। राज्यपाल नवल किशोर शर्मा- एक पुराने कांग्रेसी और भाजपा के दूर-दूर तक भी मित्र नहीं- इस तरह का कोई सबूत नहीं ढूंढ पाए। अगर ढूंढ पाए तो केवल इतना कि इस पांव का जूता दूसरे पांव में था यानी ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो साबित करता कि “हमला” आखिर हुआ कब।रेल मंत्री बिना राज्य सरकार को सूचित किए गुजरात पहुंचे थे (राज्य सरकार को तो वडोदरा हवाई अड्डे के उड़ान नियंत्रण प्रशासन की मार्फत अंतिम घड़ी में इसकी जानकारी हुई थी)। लगता है कि रेल अधिकारियों को भी अंधेरे में रखा गया था। नहीं तो आखिर क्या कारण था कि रेलमंत्री सरकारी गाड़ी की बजाय भाड़े की टैक्सी में वडोदरा में घूम रहे थे? और आखिर में, यहां तक कि लालू यादव ने खुद किसी को भी पत्थर फेंकते हुए नहीं देखा था, उनका कहना था कि जब वे साबरमती एक्सप्रेस दुर्घटना में घायल लोगों को देखने अस्पताल पहुंचे थे, वहां उनके साथ यह सब घटा। क्या इस कपोल कथा पर बहस के लिए ही इतनी हड़बड़ी में राजनीतिक मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति को तलब किया गया था?क्या मैं यह कहने की हिमाकत कर सकता हूं कि यह बड़ा अजीब “हमला” था कि जिसमें कथित पीड़ित को एक खरोंच तक नहीं आई? शायद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने भांप लिया था कि दाल में कुछ काला है; जब सदन में यह मुद्दा उठा तब दोनों बड़े संदिग्ध रूप से खामोश बैठे रहे थे। अब में अपने मूल प्रश्न पर लौटता हूं: इसका फायदा किसको हुआ?फरवरी से ही लालू यादव गाहे-बगाहे सुर्खियां उछालते रहे हैं। विधानसभा चुनावों में उनकी कुर्सी छिन गई। रेलमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल स्तरहीन रहा है। चार घोटाले में रांची की अदालत ने उनके विरुद्ध आरोप दायर करने की आज्ञा दे दी है। इतना ही नहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने जानना चाहा है कि कर अधिकारियों ने उनके विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला संप्रग सरकार के गठन के तुरन्त बाद इतनी जल्दबाजी में कैसे बंद कर दिया। और आखिर में, बिहार में बाढ़ राहत के 17 करोड़ रुपए जिस तरह गायब हो गए, उस पर भी जांच चल रही है। राष्ट्रपति शासन में राज्य के प्रशासक राज्यपाल बूटा सिंह ने पूरी जांच का वादा किया है (बिहार में राष्ट्रपति शासन का पहला फल तो उस समय दिखा था जब पुलिस ने सीवान में मोहम्मद शहाबुद्दीन के गांव में उसके घर पर छापा मारा था। यह बाहुबली राजग सांसद बिहार में लालू राज में कानून से ऊपर था।)।बाढ़ राहत घोटाले, जो मीडिया की जांच के कारण खबर में आया, के अलावा लालू यादव को दूसरी बुरी खबरों का नतीजा पता चल गया होगा। जैसा कि उनके अपने समर्थक कहते हैं- बिहार में उनकी मर्जी चलने देने से इनकार करके कांग्रेस द्वारा उन्हें पहले ही “धोखा” दिया जा चुका है। (केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से राम विलास पासवान की छुट्टी करने से इनकार करके!) इन परिस्थितियों में, लालू यादव कांग्रेस को अपने साथ बांधे रखने का कोई बहाना जरूर खोज रहे होंगे ताकि कहीं यह नैतिकता के नाम पर उन्हें ही चलता न कर दे। क्या यही कारण था कि रेल मंत्री ने “हमले” की ही रात केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की बैठक बुलाने का प्रधानमंत्री पर दबाव बनाया था?बहरहाल, लालू प्रसाद यादव के इस तरह पहाड़ सर पर उठाने के पीछे कोई छोटी-मोटी विडम्बना नहीं है। जब जयललिता ने करुणानिधि, स्व. मुरासोली मारन और टी.आर.बालू (ये बाद के दो उस समय केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य थे) को गिरफ्तार करने का निर्णय लिया था, उस समय लालू द्वारा की गई प्रतिक्रिया मुझे अब भी याद है। राजद अध्यक्ष ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को इस बात के लिए धन्यवाद दिया था कि उन्होंने प्रदेशों की ताकत का परिचय करा दिया था। उन्होंने खूब जोर-शोर से तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के बिहार में कदम रखने पर उनको गिरफ्तार करने की मंशा जताई थी।टी.आर बालू, जो इस समय लालू यादव के मंत्रिमंडलीय सहयोगी हैं, भले चार साल पहले जो हुआ उस पर चुप हों, पर रामविलास उतने क्षमावान नहीं हैं। वडोदरा की खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पासवान ने याद दिलाया कि खुद उन पर राजद की भीड़ ने हमला किया था, जब वे वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री के नाते बिहार गए थे। मुलायम सिंह यादव ने बीच में अपनी भी बात जोड़ दी कि अगर नरेन्द्र मोदी सरकार को केन्द्रीय मंत्री को सुरक्षा न उपलब्ध करा पाने के नाम पर बर्खास्त किया जाता है तो रेल मंत्री को यात्रियों को सुरक्षा न दे पाने के कारण बाहर कर देना चाहिए।लालू प्रसाद यादव को शायद पता था कि राष्ट्रपति शासन लगाने की उनकी मांग पर कोई कान तक नहीं देगा। द्रमुक तो हमेशा से ही धारा 356 के खिलाफ रही है। वाम मोर्चे ने खुलकर इस विचार का विरोध किया है। कांग्रेस, भले ही राजद अध्यक्ष का समर्थन करती है, ऐसी रुकावटों के सामने कुछ नहीं कर सकती।तब आखिर लालू यादव ने इतनी हाय-तौबा क्यों मचाई? क्या इसलिए कि वे खुद अपने सर पर शहीद का ताज पहन सकें?(27 अप्रैल, 2005)NEWS
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