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भाजपाशासित किसी राज्य अथवा उसके संगठन में जरा-सी आवाज उठे तो उसे “विद्रोह” कहा जाता है। वहीं कांग्रेसशासित हर राज्य में खींचतान और उठापटक चल रही है, कहीं-कहीं तो चरम पर है। “मैडम” सोनिया का जादू बेअसर है। पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह और उपमुख्यमंत्री राजिन्दर कौर भट्टल की “जंग” का विस्तार से वर्णन पिछले (1 मई, 2005) अंक में हो ही चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम.कृष्णा के कारण कर्नाटक के मुख्यमंत्री धरम सिंह हमेशा धरमसंकट में रहते हैं। गुटबाजी के चलते ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस साफ हो गयी। रायबरेली और अमेठी से चुने जाने और लागातार दौरा करने के बावजूद सोनिया और राहुल गांधी उ.प्र. कांग्रेस में जान नहीं डाल पाए।….. तो कांग्रेस मजबूत हो रही है? मात्र 145 सीट जीतकर वामपंथियों के सहारे केन्द्र में सत्ता पा लेने और कुछ राज्यों में जोर जबरदस्ती अथवा चोर दरवाजे से सत्ता हथिया लेने को क्या कांग्रेस की ताकत माना जाए? देश के कुछ प्रमुख राज्यों में कांग्रेस का हाल क्या है, जरा यह भी देख लीजिए। सं.केरलपिता-पुत्र ने दी 10-जनपथ को खुली चुनौतीकोझीकोड में रैली करते हुए मुरलीधरनके.करुणाकरन के साथ मुख्यमंत्री उमेन चांडीशायद सोनिया गांधी के समय में ऐसा पहली बार हुआ कि उन्होंने प्रदेश के किसी नेता को कोई आदेश दिया हो और उस आदेश की उस नेता ने खुलेआम धज्जियां उड़ा दीं हों। करुणाकरन और उनके बेटे मुरलीधरन सोनिया द्वारा नियुक्त मुख्यमंत्री उमेन चांडी के विरुद्ध हैं। सो, सोनिया गांधी के निर्देश के बावजूद अब दिख यह रहा है कि केरल में कांग्रेस (आई.) बिखर-सी रही है। केरल कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री के. करुणाकरन के पुत्र श्री के. मुरलीधरन, जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं, के निलंबन के बाद से पार्टी का दो फाड़ होना तय माना जा रहा है। अनुशासनहीनता तथा पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोपों के चलते मुरलीधरन के पार्टी से निष्कासन के बाद केरल में कुछ बातें साफ दिखती हैं। पहली, कांग्रेस में निश्चित विभाजन। दूसरी, सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा में टूट। तीसरी, तीसरे मोर्चे का उदय। तथा चौथी, केरल में भाजपा के अपने प्रभाव विस्तार का स्वर्णिम अवसर। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस में यह घमासान तब मचा है जबकि स्थानीय निकायों के चुनाव शीघ्र ही होने वाले हैं तथा विधानसभा चुनावों के लिए भी मात्र 1 साल का समय बचा है।पिछले चार दशकों में केरल की कांग्रेस करुणाकरन और ए.के. एंटोनी के इर्द-गिर्द ही घूमती रही। इन दशकों में इन दोनों धड़ों ने अपने-अपने मजबूत गढ़ बना लिए। पर पिछले लोकसभा चुनावों में जब प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया, तब केन्द्रीय नेतृत्व ने इस गुटबाजी को गंभीरता से लिया। पिछले लोकसभा चुनावों के समय करुणाकरन पार्टीविरोधी मुहिम को हवा दे रहे थे। साथ ही साथ वे परिवारवाद, जिसका कांग्रेस में चलन है, की नीति पर चलते हुए अपने पुत्र मुरलीधरन और पुत्री पद्मजा को ही बढ़ाने में लगे थे। (हालांकि इन दोनों सहित करुणाकरन खेमे के अन्य सभी उम्मीदवारों को लोकसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी थी) इस वजह से कांग्रेस आलाकमान ने करुणाकरन को किनारे कर दिया। दूसरी तरफ, सरकार चलाने में असमर्थता तथा विरोधी स्वरों को दबाने के लिए समझौतावादी रुख अपनाने के कारण अगस्त, 2004 में पार्टी ने मुख्यमंत्री ए.के.एंटोनी को भी चलता कर दिया। और उमेन चांडी मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए।हाल ही में (मार्च में) करुणाकरन खेमे ने मुरलीधरन के नेतृत्व तीन विशाल रैलियां कीं। कोच्चि में आयोजित तीसरी और सबसे बड़ी रैली में 13 कांग्रेसी विधायकों की उपस्थिति सुनिश्चित कर करुणाकरन खेमे ने मुख्यमंत्री उमेन चांडी की सरकार पर संकट के बादल होने का अहसास करा दिया। इसी के बाद कांग्रेस आलाकमान ने मुरलीधरन सहित करुणाकरन खेमे के कुछ नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया, पर एक रणनीति के तहत करुणाकरन को बने रहने दिया। उधर, आलाकमान का निर्देश पाकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने भी प्रदेश के तीन केन्द्रों में मुरलीधरन की रैली से ज्यादा विशाल आधिकारिक रैलियां आयोजित कीं। एंटोनी ने इन रैलियों में हिस्सा नहीं लिया और करुणाकरन ने घोषणा की कि वे अपने समर्थकों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद 1 मई को अपने निर्णय की घोषणा करेंगे।बहरहाल, जबसे सोनिया गांधी ने कांग्रेस का नेतृत्व संभाला है, तबसे वे एंटोनी और दूसरे ईसाई नेताओं की बातों पर ही अधिक ध्यान देती हैं। “मैडम” के नजदीकी ईसाई नेता राज्य के दूसरे नेताओं की खराब छवि ही प्रस्तुत कर रहे हैं। यह भी सचाई है कि नेहरू परिवार के साथ सदैव जुड़े रहे करुणाकरन अपने आपको तबसे बहुत उपेक्षित महसूस करने लगे हैं जबसे उन्हें सोनिया गांधी से मिलने के लिए कई-कई दिनों तक इंतजार करवाया जाने लगा है।दूसरी तरफ उमेन चांडी की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि कांग्रेस के कुल 60 विधायकों में से 13 (जो मुरलीधरन की रैली में शामिल हुए) के अलावा और कितने विधायक करुणाकरन के साथ हैं, यह भी उन्हें नहीं पता। करुणाकरन संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा के घटक दलों के साथ ही बहुसंख्यक नायर हिन्दुओं के संगठन “नायर सर्विस सोसाइटी” तथा “श्री नारायण धर्म प्रतिपालन योगम” के कार्यक्रमों पर भी नजर रखे हुए हैं, जो इन दिनों बहुसंख्यक समुदाय के हितों के लिए संयुक्त रूप से आंदोलनरत हैं। अगर बहुसंख्यक हिन्दुओं के संगठनों से करुणाकरन की निकटता बढ़ी तो इसका लाभ भाजपा को भी मिलेगा। पर ईसाई लॉबी के कहने पर चल रहीं “मैडम सोनिया” केरल कांग्रेस के इस गंभीर संकट को भांप नहीं पा रही हैं।तिरुअनंतपुरम से प्रदीप कुमारNEWS
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