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अब आंध्र पर नजरभारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के बाद अब दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में ईसाई संस्थाएं ईसाइयत के प्रचार में जी-तोड़ कोशिश में जुटी हैं। आरोप है कि आंध्र प्रदेश में राजशेखर रेड्डी जैसे ईसाई के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने से इस काम में तेजी आयी है एवं ईसाई मिशनरियों का काम और भी आसान हो गया है। कनाडा निवासी डेरेन वाट्स, जो कि दक्षिण एशिया में “सेवंथ डे एडवेंटिस्ट” चर्च का प्रमुख है, ने अपनी अमरीकी पत्नी डोरथी के साथ मिलकर भारत में एक मजबूत ताना-बाना रच लिया है। विशेषकर आंध्र प्रदेश में उसकी गतिविधियां जोरों पर हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सत्ताधारी दल के स्थानीय नेता भी उन्हें सहयोग दे रहे हैं। वाट्स व्यापारिक वीजा पर भारत आया है और व्यवसाय की आड़ में ईसाई मिशनरी की भूमिका निभाते हुए गरीब देहाती भारतीयों को ईसाई बना रहा है। इस काम के लिए अमरीका से बड़ी मात्रा में धनराशि लायी जाती है। “सेवंथ डे एडवेंटिस्ट चर्च” का मुख्य कार्यालय वाशिंगटन में है। उल्लेखनीय है कि सभी विदेशी मिशनरी व्यावसायिक या पर्यटक वीजा लेकर ही भारत आते हैं और उसकी आड़ में ईसाई मत के प्रचार में अपना सहयोग देते हैं। हालांकि कानून इसकी इजाजत नहीं देता है, किन्तु सब कुछ जानकर भी राज्य सरकार अनजान बनी हुई है। अनुमान है कि 400 से ज्यादा ईसाई पादरी व्यापारिक वीजा पर भारत में रहकर भातवासियों को ईसाई बनाने में लगे हुए हैं। दो संगठन “मारान्था इन्टरनेशनल” एवं “ग्लोबल मिशन” धड़ल्ले से इस प्रदेश में जमीन खरीदकर चर्च बना रहे हैं जबकि यहां ईसाइयों की संख्या न के बराबर है। वाट्स ने ही इन दोनों संस्थाओं को भारत आने का निमंत्रण दिया था। इन संस्थाओं ने पांच साल के भीतर ही पांच लाख भारतीयों को ईसाई बनाया है अर्थात हर रोज 300 भारतीय ईसाई मत को अपनाते हैं। हजारों की तादाद में चर्चों का निर्माण हो रहा है। (आंध्र प्रदेश में चर्च की संख्या में आश्चर्यजनक बढ़ोत्तरी की रपट इस अंक में प्रकाशित की जा रही है।) वाट्स ने मारान्था नामक संस्था के अधिकारियों को जल्द ही चर्च बनाने के लिए धनराशि भेजने का अनुरोध भी किया है। एक रपट के अनुसार आंध्र प्रदेश के ओंगोल जिले में एक ही दिन में 15,018 लोगों का मतान्तरण करवाया गया।सुब्रात कहां बैठेंगे?पश्चिम बंगाल में सुब्रात मुखर्जी की हालत बड़ी दयनीय है। कभी वह कांग्रेस के हाथ का खिलौना बनते हैं, तो कभी माकपा के। यह बात अब खुलकर सामने आ गयी है। तृणमूल कांग्रेस से निकाले जाने के बाद पार्टी द्वारा उनका विधायक पद खारिज करने के साथ ही सदन में उनकी सीट बदलने के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष हाशीम अब्दुल हालिम को लिखित अपील दायर की गई थी। अध्यक्ष ने सुब्रात मुखर्जी को “समय सीमा का उल्लेख किये बिना” कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। अध्यक्ष की इस कार्रवाई से मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस के विधायक एवं इस नाते “सार्वजनिक लेखा समिति” के अध्यक्ष बने हुए हैं।कलकत्ता नगर निगम के चुनाव के ठीक पहले सुब्रात मुखर्जी ने तृणमूल-भाजपा गठबंधन छोड़कर “पश्चिम बंगाल उन्नयन मंच” बनाकर कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके चुनाव लड़ा था। इन चुनावों में वह 29 में से मात्र 4 सीटें जीत पाये थे। चुनाव के पहले केन्द्रीय रक्षा मंत्री एवं राज्य कांग्रेस अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी ने सुब्रात को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का वचन दिया था। लेकिन राज्य के कांग्रेसी नेताओं के विरोध के कारण प्रणव ऐसा नहीं कर पाये। उधर इस सम्पूर्ण घटनाक्रम पर नजर रख रही माकपा ने नई दिल्ली में राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से सम्पर्क साधकर मुखर्जी को राकांपा में लेने का अनुरोध किया। पवार ने इस अनुरोध पर विचार करने का वचन दिया। उधर विधानसभा अध्यक्ष को तृणमूल कांग्रेस ने सुब्रात की जगह सौगत राय को पार्टी के विधायक दल का नेता बनाये जाने की सूचना दी। इस पद के आधार पर सौगत राय सार्वजनिक लेखा समिति के अध्यक्ष भी होंगे क्योंकि पुराने नियमों के अनुसार विधानसभा के प्रतिपक्ष का नेता ही लेखा समिति का अध्यक्ष होता है।NEWS
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