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बहस बुनियादी सवाल पर नहीं हो रही

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Jul 8, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jul 2005 00:00:00

भिंडरावाले को बढ़ावा देने वालों को जो भुगतना पड़ा वही ओसामा को बढ़ाने वाले भुगत रहे हैं-कारी मोहम्मद मियां मजहरी,अध्यक्ष, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त विकास संस्थान(भारत सरकार)अयोध्या और लंदन में बम विस्फोटों के बाद दुनियाभर में मुस्लिम समाज पर उठ रहीं अंगुलियों के संदर्भ में कारी मोहम्मद मियां मजहरी से बातचीत के प्रमुख अंश–आलोक गोस्वामीब्रिटेन में बम धमाकों के बाद वहां के मुस्लिम समाज में एक दहशत और भय का भाव क्यों दिख रहा है? दुनियाभर में उन्हें शक के दायरे में क्यों रखा जा रहा है?बरतानिया में मुस्लिमों की संख्या बहुत कम है इसलिए दहशत हो सकती है। लेकिन गौर करने की बात है कि वहां के मुस्लिमों का शायद ही कोई तबका हो जिसने उस शर्मनाक हादसे की भत्र्सना न की हो।लंदन में इस वहशियाना हमले के बाद, शायद आतंकवाद जबसे शुरू हुआ तबसे पहली बार, पाकिस्तान और बंगलादेश की 70 से ज्यादा मुस्लिम संस्थाओं ने साफ तौर पर फतवा दिया कि आतंकवाद इस्लामी दृष्टिकोण से बिल्कुल गलत है। यानी मजहबी तबका अब खुलकर इसकी मुखालिफत में आ रहा है। यह तस्वीर का एक रुख है।दूसरा रुख क्या है?दूसरा रुख है, और जिसके वजाहात (कारण) बहुत साफ हैं, किसी निर्दोष इंसान से इंतकाम लिया जाए, इसकी केवल इस्लाम ही नहीं, दुनिया के किसी मजहब, तहजीब में इजाजत नहीं है। आतंकवाद ने जो खुदकश दस्तों (फिदायीन दस्ते) का नया रूप लिया है, इसकी तो इस्लाम में कोई गुंजायश नहीं है।ये खुदकश इस्लाम का नाम लेकर ही तो…।असली मुद्दा है कि हमें जिहाद और फसाद में फर्क करना पड़ेगा। यह वक्त की जरूरत है। आज जो कुछ हो रहा है उसे फसाद कहा जा सकता है जिहाद नहीं। कुरान में लिखा है – अल्लाताला जमीन पर फसाद करने वाले को पसंद नहीं करता। कोई अपना नाम अब्दुर्रहमान रख ले और काम करे शैतानों जैसा, लेकिन लेबल उस पर इस्लाम का चस्पां कर दे। यह सही नहीं है। आज आतंकवाद एक अभियान ही नहीं, उद्योग बन गया है। मेरा बुनियादी सवाल यह है कि इस उद्योग में पैसा कौन लगा रहा है?कौन लगा रहा है पैसा?मैं हिन्दुस्थान की मिसाल देता हूं। भिंडरावाला को इस मुल्क में किसने बढ़ावा दिया? जिन लोगों ने उसे बढ़ावा दिया, बाद में उन्हें ही उसे भुगतना पड़ा। ओसामा बिन लादेन को क्या मुसलमानों ने अफगानिस्तान में लाकर बिठाया था? कौन थे उसे वहां बिठाने वाले? जो उसे बिठाने वाले थे, आज ओसामा बिन लादेन उनके लिए मुसीबत बना हुआ है। मेरा कहना है कि आज बुनियादी सवाल पर तो बहस ही नहीं हो रही है कि इस अंतरराष्ट्रीय उद्योग में पैसा कौन लगा रहा है? उस पर चोट होनी चाहिए। आप इस्लाम का लेबल कब तक चस्पां करते रहेंगे?…लेकिन इससे कौम तो बदनाम होती है?कौम इसलिए बदनाम होती है क्योंकि कौम में ऐसे बाशऊर लोगों की कमी है जो मुद्दे की बात कह सकें। हिन्दुस्थान के संदर्भ में एक और उदाहरण देना चाहता हूं। मदरसों पर बहुत बहस हुई है। मैंने 2003 में हिन्दुस्थान के मदरसों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने पर एक कांफ्रेंस बुलाई थी। कांफ्रेंस में एक प्रस्ताव पास हुआ था। हमने तय किया था कि 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे कौमी दिनों पर मदरसों में कौमी तकरीब मुनक्कित की जाएं जिसमें गैर-मुस्लिम बंधुओं को बुलाकर दावत दी जाए। इससे वे भी साल में दो बार हमारे मदरसों में आकर उन्हें जानें। इससे साम्प्रदायिक सौहार्द भी कायम होगा।आपको सुनकर हैरत होगी कि उस प्रस्ताव को इस मुल्क की मीडिया में चार लाइन से ज्यादा जगह नहीं दी गई। तस्वीर का एक रुख यह भी है। हमारे इस सकारात्मक रुख की तो तारीफ की जानी चाहिए थी।स्व. जकरिया ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि यह समस्या मुस्लिम कौम की है और उसे अपने से ही इसका हल तलाशना होगा। आप उनसे कितना सहमत हैं?मैं डा. जकरिया के इस ख्याल से सहमत हूं। हिन्दुस्थान जैसे लोकतांत्रिक देश को आजाद हुए और उसका बंटवारा हुए 55 साल हो गए। 3 पीढ़ियां जवान हो चुकी हैं। आज 55 साल पहले के जहर को मुल्क में नाफिस करने की कोशिश करना मुल्क की जड़ें खोदने के बराबर है या उसे मजबूत करने के? इस देश का मुसलमान आज डंके की चोट पर कह रहा है कि यह मुल्क हमारा है, हमें यहीं जीना, मरना है, इसे छोड़कर नहीं जा सकते। उसी तरह आपको समझ लेना चाहिए कि आप इस देश के 20 करोड़ मुसलमानों को ले जाकर मुम्बई के समुद्र में नहीं झोंक सकते। बदकिस्मती से मसाइल का राजनीतिकरण किया जाता है। जो लोग वोट पालिटिक्स करते हैं वे मुसलमानों को कुछ नहीं देते, पर हंगामा इतना खड़ा कर देते हैं कि हम मुजरिम बना दिए जाते हैं। कहते हैं, अक्लीयतों (अल्पसंख्यकों) की चापलूसी हो रही है, उनका पेट भरा जा रहा है। हमसे कोई लिखने वाला यह आकर नहीं पूछता कि भाई, आपको इन स्कीमों से क्या मिल रहा है। इधर 15 सालों में, मजहब की बुनियाद पर खड़ी की गईं दीवारों को तोड़ने वाला कोई गैर सियासी बैनर इस मुल्क में कायम नहीं हुआ है। कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी पार्टी से यह दीवार खत्म नहीं हो सकती। इस काम के लिए, आज नहीं तो कल आर.एस.एस. को तैयार होना पड़ेगा।NEWS

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