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सिर्फ नशा और कामुकता?स्कूल, कालेज तथा व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे 15 से 21 वर्ष के किशोरों व युवाओं की पीढ़ी में एक बात सेकुलरपंथी मीडिया और अति धनाढ वर्ग के मीडिया मालिकों द्वारा प्रविष्ट कराई जा रही है कि आधुनिकता का पर्याय है-नशा और कामुकता।एक समय था जब एक बड़े मीडिया घराने की सुसंस्कृत एवं सुपठित संचालक ने भारतीय ज्ञानपीठ जैसे साहित्यिक अधिष्ठान और पराग, वामा, दिनमान, धर्मयुग जैसी पत्रिकाएं चलायी थीं। उन्हीं के पश्चिमीकृत उत्तराधिकारियों ने इन तमाम हिन्दी पत्रिकाओं का अन्त कर कामुक एवं नग्नता का पोषक “जूम” चैनल प्रारम्भ कर एक नई धारा शुरू कर दी है। इसी घराने ने वेलेन्टाइन्स डे, फादर्स डे, सिस्टर डे, वाइफ-हसबैंड और फ्रेंडशिप डे चलाकर भारतीय परम्पराओं की अनदेखी कर पैसे कमाना प्रारंभ कर दिया है। यही काम अब अन्य भारतीय भाषाओं में भी चालू हो गया है। बीते दिनों “प्रोवोग” के मालिक सलिल चतुर्वेदी, फैशन डिजायनर प्रकाश बिडप्पा और फिल्म अभिनेता फरदीन खान की कोकेन जैसे मादक द्रव्यों के सेवन के आरोप में गिरफ्तारी आखिर किस ओर संकेत करती है? हाल ही में दिल्ली के कथित सभ्य मोहल्लों में “कालगर्ल” के रूप में अपना शरीर बेचने वाली अनेक कम उम्र छात्राओं की गिरफ्तारी से क्या संकेत मिलता है? युवा स्वतंत्रता के नाम पर कामुकता और नशे के भयावह जाल के अलावा कुछ दिखाया भी नहीं जाता और इससे उबरने में सहायता करना तो दूर, इन चीजों को मीडिया का एक वर्ग आधुनिक जीवन शैली और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर न्यायपूर्ण सिद्ध करने पर तुला हुआ है। लेकिन वस्तुत: यदि इसे स्वतंत्रता कहा जाए तो फिर स्वच्छन्दता की परिभाषा क्या होगी? यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि इस प्रकार की मनोवृत्ति को उभारने में पैसा बनाने की एक वर्ग विशेष की चाहत अपना काम कर रही है। कथित बुद्धिजीवियों और व्यापारी घरानों का गठबन्धन गाहे-बगाहे इसके बचाव में आगे आ जाता है। और इनकी नकेल भी देशबाह्र, विशेषत: पश्चिमी आर्थिक शक्तियों के हाथों में है। वह दिन दूर नहीं जब भारतीय शहरी वर्ग अमरीकी समाज की प्रतिकृति बन जाएगा, भले ही हम अमरीका जैसी आर्थिक शक्ति बनें या न बनें। देश में युवा वर्ग की बदलती अभिरुचियों पर हमने देशभर से विभिन्न लोगों की राय ली। अगले पृष्ठों पर प्रस्तुत हैं उन्हीं विचारों की एक झलक। -सं.NEWS
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