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देश के लिए क्षण-क्षण न्योछावरइस पथ का उद्देश्य नहीं है,श्रांत भवन में टिककर रहना।किन्तु पहुंचना उस सीमा तक,जिसके आगे राह नहीं।।कविवर जयशंकर प्रसाद की उक्त पंक्तियां डा. (कु.) शरद रेणु पर सटीक बैठती हैं। कोई भी नई डायरी हो या किसी पुस्तक का पृथम पृष्ठ जैसे ही डा. शरद रेणु के आगे आता है तो उनकी अंगुलियां स्वत: लिख उठती हैं- इस पथ का उद्देश्य…। डा. शरद रेणु ने तो इन पंक्तियों को जिया भी है। इसी को गुरुमंत्र मानकर चलीं थीं, चल रही हैं और चलती जाएंगीं, जब तक “अभीष्ट” की प्राप्ति न हो जाए।28 जनवरी, 1950 को वृन्दावन में जन्मीं शरद दीदी सन् 1979 से राष्ट्र सेविका समिति की प्रचारिका हैं। उत्तर प्रदेश में समिति के कार्य विस्तार में उनका योगदान उल्लेखनीय है। देश की नि:स्वार्थ सेवा हेतु समर्पित रेणु दीदी वर्तमान में राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख हैं। उन पर उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल क्षेत्र की प्रचारिका का दायित्व भी है। वे भारतीय श्री विद्या परिषद् की मंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश में लगभग 80 बालिका विद्यालयों के संचालन का दायित्व भी कुशलतापूर्वक संभाल रही हैं।शरद दीदी के पिता डा. सुरेन्द्र शर्मा संघ के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं। एक बार उनके घर पर तत्कालीन प्रांत प्रचारक रज्जू भैया एक बैठक लेने आए थे। संभवत: 1971 की बात रही होगी, आगरा के रामलीला मैदान में पूज्य श्रीगुरुजी का विशाल कार्यक्रम होना था। इसी सिलसिले में रज्जू भैया ने जलपान आदि की व्यवस्था में लगी बालिका शरद से प्राथमिक परिचय लेते हुए पूछा, “क्यों संघ को जानती हो? गुरुजी के कार्यक्रम में आना।” और यही वह क्षण था जब रेणु का झुकाव संघ की ओर हुआ।परिवार में देशभक्ति का वातावरण तो आंख खुलते ही मिला ही था। वे सन् 1965 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान अपनी अध्यापिका के निर्देशन में सैनिकों की सहायतार्थ रात-रात भर जागकर स्वेटर बुनती थीं। शरद दीदी ने क्रांतिकारी साहित्य बहुत पढ़ा। प्रख्यात क्रांतिकारी लेखक श्री मन्मथनाथ गुप्त का तो उन्होंने सारा साहित्य ही पढ़ डाला। आपातकाल के समय समूचे देश में शासन-प्रशासन ने संघ कार्यकर्ताओं पर बर्बरतापूर्ण अत्याचार किए। इससे शरद दीदी उद्वेलित हो उठीं। बस यहीं से हुई क्रांति की शुरुआत। उन्होंने घर छोड़ा और समाज-हित में जीवन को न्योछावर कर दिया।शरद दीदी देश के समक्ष सबसे बड़ा खतरा सुरसा की भांति मुख फैलाते जा रहे आर्थिक साम्राज्यवाद को मानती हैं। डा. रेणु आंतरिक खतरों के रूप में मतान्तरण, आतंकवाद तथा अवैध घुसपैठ को बड़े खतरे के रूप में देखती हैं। भ्रूण हत्या, दहेज समस्या आदि सामाजिक रूढ़ियों के शीघ्रता से उन्मूलन को वे हिन्दू समाज के दूरगामी हितों के लिए जरूरी मानती हैं। इसके निदान के बारे में वे कहती हैं कि स्थायी समाधान व्यक्ति निर्माण से ही संभव है।और इसी कार्य के लिए उन्होंने अपना एक क्षण-क्षण स्त्री शक्ति के संगठन व जागरण में न्योछावर कर दिया है।- प्रस्तुति : मुरली मनोहर कूड़ाNEWS
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