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भारतीय प्रज्ञा के ज्योति-पुरुषहिन्दी साहित्य के स्तंभ, ज्ञानपीठ तथा शलाका पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार निर्मल वर्मा का गत 25 अक्तूबर, 2005 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में निधन हो गया। 76 वर्षीय श्री वर्मा पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। इस दौरान उन्हें कई बार विभिन्न अस्पतालों में दाखिल कराया गया। कुछ ठीक होकर वे वापस घर लौट आते। लेकिन इस बार उनका जाना, आने में न बदला।स्व. वर्मा ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने भाषा और कथ्य में नए प्रतिमान स्थापित किए। 1985 में उनके लघु कथा संग्रह “कव्वे और काला पानी” के लिए साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें शलाका पुरस्कार दिया गया। 1999 में उन्हें साहित्य जगत का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा उन्हें साधना सम्मान और लोहिया अति विशिष्ट सम्मान से भी नवाजा गया। वे हिन्दी साहित्य के अकेले ऐसे लेखक थे जिन्होंने हिन्दी पाठकों को यूरोपीय साहित्य से परिचित कराया। उन्होंने पांच उपन्यास, आठ कहानी संग्रह, नौ निबंध संग्रह व यात्रा वृतांतों के अलावा अन्य कई क्षेत्रों में भी साहित्य रचा। कई विदेशी भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ। फिल्म “माया दर्पण” उन्हीं की कहानी पर आधारित थी।निर्मल वर्मा का जन्म 3 अप्रैल, 1929 को शिमला में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कालेज से इतिहास में एम.ए. की डिग्री हासिल की। फिर उनकी पढ़ाई प्राग (चेकोस्लोवाकिया) के ओरिएंटल इंस्टिटूट में हुई। वह इंटरनेशनल इंस्टिटूट आफ एशियन स्टडीज के फेलो भी रहे।उनके निधन से हुई क्षति को सभी ने अपूरणीय बताया है। 26 अक्तूबर को लोदी रोड स्थित शवदाह गृह में उनके पार्थिव शरीर को उनकी पत्नी श्रीमती गगन गिल ने मुखाग्नि दी। इस समय मौजूद हर चेहरे पर एक सवाल ही परिलक्षित हो रहा था… अब कौन और किधर? उनके अंतिम संस्कार के समय वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, उदय प्रकाश, वरिष्ठ गांधीवादी अनुपम मिश्र, राजीव वोरा, समाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन, कपिला वात्स्यायन व बी.बी.सी. के पूर्व प्रमुख मार्क टुली उपस्थित थे।प्रख्यात विधिवेत्ता एवं साहित्यकार श्री लक्ष्मी मल्ल सिंघवी ने उन्हें नाम के अनुरूप “निर्मल” मन का धनी बताया है। उन्होंने अपने शोक सन्देश में कहा कि, “निर्मल वर्मा आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक शिरोमणि साहित्यकार थे। संवेदनशील, चिंतनशील, मृदुभाषी और मितभाषी निर्मल वर्मा से मेरा परिचय मेरे अभिन्न अग्रज अज्ञेय जी के माध्यम से हुआ था। उनकी सृजनशीलता में जो गहराई मैंने पाई, जो चिंतन पाया, जो वैश्विक आधार देखने को मिला, वह हिन्दी साहित्य की अद्वितीय उपलब्धि है। उनकी सोच का दायरा बहुत विशाल था। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि हमने समय पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना, यदि देर हो जाती तो मन में एक कसक रह जाती। हिन्दी साहित्य ने निर्मल वर्मा के रूप में एक ऐसा संवेदनशील साहित्यकार खो दिया है जिसकी क्षति अपूरणीय है।”अपने शोक सन्देश में ख्यातिलब्ध साहित्यकार श्री विभांशु दिव्याल ने उन्हें साहित्यिक भाषा का जादूगर बताया। श्री दिव्याल ने कहा कि, “वे दार्शनिक भी थे। उनके आलोचक उन्हें भले ही रूढ़िवादी विचारक ठहराएं पर वे वस्तुत: प्रश्नवादी विचारक थे, उन्होंने आधुनिकता के साथ रूढ़िवाद पर भी सवाल खड़े किये।” इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र न्यास के पदाधिकारियों ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।हिन्दी भाषा में आधुनिक कहानियों के पुरोधा निर्मल वर्मा के वे दिन, लाल टिन की छत, एक चिथड़ा सुख, रात का रिपोर्टर व अंतिम अरण्य आदि उपन्यास काफी चर्चित रहे हैं।पाञ्चजन्य परिवार की ओर से भारतीय प्रज्ञा के ज्योति-पुरुष स्व. निर्मल वर्मा को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित है।NEWS
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