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केरल

by
Jun 11, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jun 2005 00:00:00

माया ने भरमाया- प्रदीप कुमारकेरल में युवा वर्ग आधुनिकता की चपेट में उसी तरह दिशाहीन, उद्देश्यविहीन और संभ्रमित हो गया है जैसा देश के अन्य भागों में दिख रहा है। राज्य के युवकों की विशाल ऊर्जा का राज्य और देश की उन्नति में सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। बचपन से ही उनमें पैसा कमाने की तीव्र आकांक्षा पैदा हो रही है। लेकिन जब जीवन की चुनौतियों का सामना करने का वक्त आता है, वे अनेक मनोवैज्ञानिक समस्याओं से घिर जाते हैं।नई पीढ़ी के युवकों में इस समय केवल अपने बारे में सोचने, अपने सपनों और व्यावसायिक जीवन को संवारने की धुन सवार है। परिणामत: परिवारों में टूटन बढ़ी है। दूसरी ओर माता-पिता मूल्यों की जगह बच्चों को केवल पैसा कमाने की ही सलाह देना ज्यादा व्यावहारिक मानते हैं। आंकड़े बताते हैं कि केरल में विवाह पूर्व एवं विवाह बाद अवैध सम्बंधों में बढ़ोत्तरी हुई है। अनेक सर्वेक्षणों में अब उन युवतियों की संख्या में वृद्धि पाई गई है जो विवाह पूर्व सम्बंधों को नाजायज नहीं मानतीं। महिलाओं के प्रति अपराध बढ़े हैं तथा आत्महत्या करने वालों और मानसिक अवसादग्रस्त लोगों की संख्या भी तीव्रता से बढ़ी है। ये परिस्थितियां निश्चित रूप से चिन्ताजनक हैं। केरल के छोटे-छोटे शहरों में भी “महिलाओं के लिए बार” खुलने लगे हैं। इंटरनेट की एक और नई बीमारी युवाओं में बखूबी घर कर चुकी है। ज्यादा खराब हालत बच्चों और किशोरों की है। “इन्टरनेट के आदी” होने के कारण बच्चों के मनोवैज्ञानिक इलाज के लिए माता-पिता को एक नई समस्या से जूझना पड़ रहा है। इस सन्दर्भ में प्रख्यात मनोचिकित्सक डा. अनिल कहते हैं, “केरल के युवाओं में अवसाद, तनाव और निराशा बढ़ रही है। अधिक धन कमाने की चाहत तथा “कैरियर” की चिन्ता के कारण जो तनाव पैदा होता है, उसका सामना कर सकने में वे स्वयं को अक्षम पा रहे हैं।”इस संदर्भ में अंजना और अर्चना नामक दो जुड़वा बहनों की राय खासी दिलचस्प है। आधुनिक शिक्षा के साथ दोनों में परम्परागत जीवन मूल्यों के प्रति काफी सम्मान भी दिखा। युवकों में बढ़ती मूल्यहीनता के प्रति उनमें चिंता के साथ-साथ लाचारी का भी अहसास हुआ। अंजना जहां एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में वरिष्ठ “साफ्टवेयर इंजीनियर” हैं वहीं अर्चना राज्य सरकार के एक कृषि बैंक में “सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर” के रूप में कार्य कर रही है।अंजना कहती हैं, “आज के जमाने में पैसा ही सब कुछ नहीं है लेकिन पैसे के बिना कुछ करना भी काफी कठिन होता है। “कैरियर” में पैसे को प्राथमिकता देना स्वाभाविक ही है और जब कोई जरूरत से ज्यादा पैसा कमाता है तो वह व्यक्तिगत निर्भरता के चलते दूसरों की इच्छाओं और मूल्यों की परवाह नहीं करता। मैं इसे अच्छा नहीं मानती लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है?”अर्चना भी इससे सहमति जताती हैं। उनके अनुसार, आज “साफ्टवेयर इंजीनियरिंग” सहित अनेक क्षेत्रों में युवा बहुत ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। इसका ठीक से उपयोग करना ही अब उनके सामने एक समस्या बन गई है। ऐसे में खाने-पीने, मौज-मस्ती की चीजें उनके जीवन में प्रवेश करती हैं। हां, यह जरूर है कि ये सब मूल रूप से व्यक्ति की मनोवृत्ति और उसकी सामाजिक-पारिवारिक पृष्ठभूमि पर भी निर्भर करता है। युवकों में परम्परागत मूल्यों के प्रति अरुचि उत्पन्न हुई है, “कैरियर” संवारना और जिन्दगी में मौज उड़ाना, यही उनका उद्देश्य बन गया है।”त्रिवेन्द्रम के “टेक्नो पार्क” के मुख्य अधिशासी अधिकारी वी.जे. जयकुमार इन परिस्थितियों से चिंतित अवश्य हैं किन्तु उनकी सोच कुछ भिन्न है। वे कहते हैं कि भारतीय समाज हर चुनौती का सामना सफलतापूर्वक करता आया है। अपने ऊपर हो रहे इस सांस्कृतिक आक्रमण के प्रतिरोध में समाज शीघ्र ही कुछ-न-कुछ व्यवस्था अवश्य बना लेगा। हिन्दू समाज की आन्तरिक शक्ति अद्भुत है, कोई चुनौती इसके सामने नहीं ठहर पाएगी। जयकुमार इस कार्य में परिवारों की भूमिका महत्वपूर्ण मानते हैं।केरल के दक्षिणी भाग के जिलों में समाज कार्य करने वाली एक साफ्टवेयर कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी.के.शशि कुमार के अनुसार, “हमारे आध्यात्मिक गुरुओं और संगठनों की भूमिका आज महत्वपूर्ण हो गई है। हमें नई पीढ़ी को अपने जीवन-मूल्यों और परम्पराओं के महत्व के बारे में ठीक जानकारी देनी चाहिए अन्यथा नई पीढ़ी केवल पाश्चात्य आदर्शों की नकल मात्र रह जाएगी क्योंकि वायुमंडल में पश्चिमी आदर्श आज हावी होते दिख रहे हैं।” शशि कुमार को अपनी 5,000 वर्षों की महान विरासत पर गर्व है, वे आधुनिक व्यावसायिक संगठनों को भी अपने कर्मियों में सामाजिक मूल्यों और प्रतिबद्धताओं की प्रस्थापना के लिए जिम्मेदार बनाया जाना जरूरी मानते हैं। उनके अनुसार आज आई.टी. कम्पनियों में कार्यरत युवकों और आम आदमी में दूरी बढ़ गई है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने कर्मियों पर अपने जीवन मूल्य भी थोप रही हैं और युवा वर्ग उसे अपना भी रहा है, ऐसी स्थिति में परिवर्तन लाना बहुत जरूरी है। उनके अनुसार, “निकट भविष्य में ये होगा ही, क्योंकि भारतीय युवक का मन हमेशा भौतिकवादी मूल्यों के अनुसार नहीं चलने वाला है, उसकी अपनी विशिष्ट मनोवृत्ति, परम्परागत संस्कार ही उसे अपने जीवनमूल्यों पर वापस ले आएंगे।NEWS

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