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नीति या अनीति?नेपाल में आपातकाल और भारत की सुरक्षासमय रहते सावधान होना चाहिएलेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) दत्तात्रेय शेकटकरमाओवादी नेता बाबूराम भट्टाराईआपातकाल के बाद काठमाण्डू की सड़कों पर गश्तलगाते हुए सैनिकनेपाल नरेश ज्ञानेन्द्र ने नेपाल में आपातकाल लगाकर सत्ता हाथ में लेने का जो कारण दुनिया को बताया है, उसमें उन्होंने एक सत्य छिपा लिया है। दरअसल उन्होंने यह सब राजघराने की सत्ता बचाने के लिए किया। हाल के कुछ वर्षों से नेपाल में माओवादी संगठन हिंसा के बल पर सरकार का तख्तापलट करने के लिए सशस्त्र क्रांति व संघर्ष कर रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व राजघराने में घटी त्रासद घटना के बाद नेपाल की प्रशासनिक व्यवस्था गड़बड़ा गई और माओवादी संगठनों का प्रभाव बढ़ा।यूं तो नेपाल में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार को कई बार आघात लगा है। 1960 में नेपाल नरेश राजा महेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री बी.पी. कोइराला की सरकार बर्खास्त कर दी थी और अपने पसंदीदा लोगों को शासन में बैठाया था। उसी प्रकार 1990 में तत्कालीन नेपाल नरेश बीरेन्द्र ने भी सरकार में फेरबदल किया था। कई राजनीतिक दलों की मिली-जुली सरकारें चुनने का प्रयास हुआ। लेकिन सभी दल आपस में लड़ते रहे। प्रशासन बिगड़ता गया।एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि नेपाल में माओवादी संगठन किसने खड़ा किया? उसके कार्यकर्ता कहां से आए? विचारधारा कहां से आई? शस्त्रास्त्र, धन, ताकत व सामथ्र्य कहां से आया? उन्हें किसका समर्थन मिल रहा है? क्या ये संगठन एक ही दिन में खड़े हो गए? क्या यह माओवादी हौव्वा अचानक पैदा हो गया? इसका जिम्मेदार कौन है? बहरहाल, नेपाल के घटनाक्रम का भारत की आंतरिक सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या भारत भावी परिस्थिति का सामना करने को तैयार है? क्या हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था और विदेश नीति समर्थ व सक्षम है? क्या इन माओवादी संगठनों का संबंध भारत में कार्यरत राष्ट्रद्रोही संगठनों से है? इन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा करना और उनका समाधान खोजना आवश्यक है।नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.एन.) ने 1991 में नेपाल में हुए चुनावों में भाग लेकर एक बड़ा राजनीतिक दल यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट आफ नेपाल (यू.पी.एफ.एन.) तैयार किया था। लेकिन इस दल का विघटन होने पर कामरेड बाबूराम भट्टराई ने कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (माओवादी) बना ली। इस दल की विचारधारा सैन्य क्रांति व शस्त्रों के बल पर सरकार बदलने और सत्ता पर काबिज होने की रही है। 1995 से इसने नेपाल में तोड़फोड़, मारपीट व आतंकी कार्रवाइयों की शुरुआत की। इन माओवादियों ने व्यापारी, बड़े किसान, कुछ धनवान व उद्योगपतियों के खिलाफ आतंकी कृत्य किए। सरकारी खजाने व बैंक लूटने शुरू किये। इन माओवादी संगठनों का साहस व शक्ति इतनी बढ़ गई है कि उन्होंने भारत से नेपाल आने वाले सभी मार्ग बंद कर दिए। नेपाली पुलिस, सेना, स्कूली छात्र, किसान, व्यवसायी, यात्री व राजनेताओं को बंदी बनाना आरंभ किया। अंतत: परिस्थिति इतनी बिगड़ गई कि नेपाल नरेश को पूरे देश में आपातकाल घोषित करना पड़ा और सेना को माओवादियों के खिलाफ सख्त सैन्य कार्रवाई करने की पूर्ण अनुमति देनी पड़ी।नेपाल में चल रहे घटनाक्रम का प्रभाव भारत पर पड़ रहा है और आगे भी पड़ता रहेगा, यह भी तय है। नेपाल में सक्रिय माओवादी संगठन व भारत में सक्रिय नक्सलवादी संगठन व अन्य देशद्रोही संगठन एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। माओवादियों के संबंध पूर्वोत्तर में कार्यरत विद्रोहियों व देशद्रोही संगठनों, पाकिस्तान व बंगलादेश में कार्यरत आई.एस.आई. व श्रीलंका में कार्यरत लिट्टे के साथ भी हैं। नेपाल के एक पूर्व सेनाध्यक्ष ने भी माओवादी व नक्सलवादियों के बीच संबंध व सहयोग पर चिंता प्रकट की है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नेपाल में ही इंडियन एयरलाइन्स का विमान अपस्रत कर कुछ आतंकवादी उसे कंधार ले गए थे। खबर है कि नेपाल में आपातकाल की घोषणा के बाद सैनिक कार्रवाई के भय से बड़ी संख्या में माओवादी, खासकर नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता, भारत की ओर पलायन कर रहे हैं, यहां शरण ले रहे हैं। उन्हें सहारा, आश्रय, धन व मदद कौन लोग तथा राजनीतिक दल देते हैं और क्यों देते हैं? उनका क्या संबंध और उद्देश्य है? यह एक गंभीर प्रश्न है। ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार द्वारा नेपाल को सैन्य सहायता देने से इनकार करने का फैसला समझ से परे है। माओवादियों पर प्रहार भारत की दृष्टि से एक अच्छा कदम है। ऐसे में नेपाल को सैन्य सहायता से मुंह फेर लेना भविष्य के लिए महंगा पड़ सकता है।NEWS
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