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फ्रेड स्टेला की चिंताहाल ही में एक अमरीकी विद्वान फ्रेड स्टेला भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के दौरे पर थे। वहां उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों का जायजा लेने के बाद कहा था कि ईसाई मिशनरियां वहां बड़े पैमाने पर जनजातीय समाज का मतान्तरण कर रही हैं। स्टेला की इस बात पर पूर्वोत्तर के चर्चों के कान खड़े हो गए। वहां इस संवेदनशील मुद्दे पर इसलिए भी चर्चा चली क्योंकि स्टेला खुद ईसाई मत छोड़कर हिन्दू धर्म अपना चुके हैं। मिशिगन (अमरीका) के फ्रेड स्टेला ने यहां तक कहा कि मतान्तरण के कारण स्थानीय जनजातीय समाज स्वधर्म और स्वसंस्कृति से कट जाता है और पश्चिमी ईसाई मिशनरियां किसी प्रेम के कारण नहीं बल्कि अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मतान्तरण अभियान चलाए हुए हैं।स्थानीय पत्रकारों से बात करते हुए फ्रेड ने कहा कि वे ईसाइयत के विरोधी नहीं हैं, पर मतान्तरण लोगों की इच्छा पर होना चाहिए न कि किसी की मजबूरी का फायदा उठाते हुए। उन्होंने जबरदस्ती मतान्तरण की किसी भी कोशिश के विरुद्ध मेघालय सहित सभी पूर्वोत्तर राज्यों के निवासियों को सचेत किया और कहा कि वे स्वधर्म और स्वभाषा पर अडिग रहें। अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के कई लोगों ने फ्रेड स्टेला को व्यक्तिगत बातचीत में बताया कि किस तरह “संदिग्ध परिस्थितियों” में उन्हें ईसाइयत अपना लेने को मजबूर किया गया था।एक अन्य घटनाक्रम में जमायते उलेमा हिन्द ने असम के चर्चों पर आरोप लगाया है कि वे निचले असम और बराक घाटी में मुसलमानों का जबरन मतान्तरण कर रहे हैं। वहां के चर्च समाज सेवा व आर्थिक मदद के नाम पर मतान्तरण में लगे हैं। निचले असम में गोलपाड़ा और बरपेटा तथा बराक घाटी में सिलचर से मुस्लिमों को ईसाई बनाए जाने की जानकारी प्राप्त हुई है। ईसाई बनाने के बदले चर्च 50 हजार से एक लाख रु. तक बांट रहा है और उनके लिए स्वास्थ्य केन्द्र, स्कूल व घर बनाकर देने का वायदा भी कर रहा है। जमायत के अतिरिक्त महासचिव बशीर अहमद ने कहा कि जिस प्रकार मिशनरियों ने नागा, मिजो और गारो जनजातियों का मतान्तरण किया है, वही षड्यंत्र मुसलमानों पर चलाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि उड़ीसा और प. बंगाल से पादरियों को यहां इसी काम के लिए लाया गया है।बगलीहार क्यों चुभ रहा है पाकिस्तान को?भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध जहां धीरे-धीरे बहाल हो रहे हैं वहीं पाकिस्तान के कुछ संस्थानों की ओर से ऐसे वक्तव्य दिये जाते रहे हैं जिनके कारण रिश्तों में खटास बनी रहने की आशंका जताई जा रही है।ऐसा ही एक मुद्दा है बगलीहार विद्युत परियोजना। जनवरी के पहले सप्ताह में भारत व पाकिस्तान के जल संसाधन सचिवों के बीच नई दिल्ली में बगलीहार विद्युत परियोजना से सम्बंधित जो बातचीत हुई उसको कामयाबी की बजाय नाकामी के दल-दल में झोंकने के लिए पाकिस्तानी अधिकारी जिम्मेदार हैं। पाकिस्तान के उच्च अधिकारी बगलीहार विवाद को एशियाई विकास बैंक में ले जाने की भी बातें करते हैं।उधर एशियाई विकास बैंक ने कहा कि बगलीहार समस्या के समाधान में वर्षों लग सकते हैं। वाशिंगटन में एशियाई विकास बैंक के उच्च अधिकारी सलमान ने कहा कि बगलीहार के मामले में भारत और पाकिस्तान की हठधर्मी से यह समस्या तूल पकड़ती जा रही है। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक, सामाजिक और दूसरे क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि जब से पाकिस्तान अस्तित्व में आया है, उसके नेता और अधिकारी अपने हित के लिए कश्मीरियों के हित को रौंदने से पीछे नहीं हटे हैं।जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भी कहा कि “अगर पाकिस्तान कश्मीरी जनता का हमदर्द होता तो वह बगलीहार परियोजना के निर्माण में रुकावट डालने का प्रयास न करता”।पाकिस्तान में बहने वाली अधिकतर नदियां कश्मीर से होकर गुजरती हैं, जिनमें सिंधु और झेलम जैसी नदियों का ब्राोत जम्मू-कश्मीर राज्य ही है। पाकिस्तान का जन-जीवन और उसकी अर्थव्यवस्था इन पर निर्भर है। पाकिस्तान बगलीहार पर तो काफी शोर-शराबा मचा रहा है पर उसने मीरपुर में बांध बनाया है, जिसके कारण अनगिनत कश्मीरियों को बेघर होना पड़ा है, जबकि जम्मू-कश्मीर को तुलबुल परियोजना पाकिस्तान की आपत्ति के कारण स्थगित करनी पड़ी थी।NEWS
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