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संघर्ष नहीं, संवाद जरूरी-प्रो. बर्नहार्ड वोगल, अध्यक्ष-कोनराड एडिनार फाउंडेशन, जर्मनी1965-67 में जर्मन संसद के सदस्य, 1967-76 में रीनेलैण्ड-पेलाटिनेट राज्य के शिक्षा-संस्कृति मंत्री रहे प्रो. बर्नहार्ड वोगल 1972 से 1976 के बीच जर्मनी के कैथोलिकों की केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष रहे। वे 1987-88 में जर्मन संसद के ऊपरी सदन के अध्यक्ष थे। इससे पहले 1976-1987 के बीच वे रीनेलैण्ड-पेलाटिनेट राज्य के प्रधानमंत्री रहे थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में शांति और लोकतंत्र की पैरवी करने वाली संस्था कोनराड एडिनार फाउंडेशन का जन्म हुआ। प्रो. वोगल सन् 2001 से इस संस्था के अध्यक्ष हैं। पिछले दिनों “भारत को समझने में हिन्दुत्व की भूमिका” विषय पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए वे नई दिल्ली आए थे। इस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय जागृति संस्थान ने किया था। सुप्रसिद्ध संविधानविद् और लोकसभा के पूर्व महासचिव डा. सुभाष कश्यप इस संस्थान के अध्यक्ष हैं। सम्मेलन की पूर्व संध्या पर पाञ्चजन्य ने प्रो. वोगल से हिन्दुत्व, सभ्यताओं में संवाद आदि विषयों पर बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश–आलोक गोस्वामीनई दिल्ली में राष्ट्रीय जागृति संस्थान के सम्मेलन में (बाएं से) प्रो. बर्नहार्ड वोगल,डा. कर्ण सिंह, श्री एच. आर. भारद्वाज (केन्द्रीय कानून मंत्री), स्वामी जितात्मानंद (रामकृष्ण मिशन)व डा. सुभाष कश्यपकोनराड एडिनार फाउंडेशन की स्थापना कब हुई?कोनराड एडिनार फाउंडेशन की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के तुरन्त बाद हुई थी। इसका मूल उद्देश्य था जर्मनी में लोकतंत्र की बहाली और अन्य लोकतांंत्रिक देशों में शांति व स्थायित्व के लिए प्रयास करना। फाउंडेशन की स्थापना के बाद इस उद्देश्य के साथ ही हमने प्रयास शुरू किया कि दुनिया के सभी देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हो। हमने लातिनी अमरीका, अफ्रीका और एशिया में काम किया। आज इस संस्था की स्थापना के 40 वर्ष बाद दुनिया के लगभग 75 देशों में हमारे प्रतिनिधि हैं। हमारा विशेष कार्य विकासशील देशों में है, लेकिन विकसित देशों में भी हम कार्यरत हैं। नई दिल्ली में ही हमारी संस्था की इकाई स्थापित हुए 35 वर्ष हो गए हैं।हिन्दुत्व में आपकी दिलचस्पी का क्या कारण है?आज जब दुनिया के देशों में नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं, वैश्वीकरण का दौर है, हमें लगता है कि विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद की बहुत जरूरत है। 10 साल पहले एक अमरीकी प्रोफेसर ने सभ्यताओं में संघर्ष के बारे में एक किताब लिखी थी। हम सभ्यताओं में संघर्ष नहीं, संवाद की बात करते हैं। हमें एक-दूसरे को जानना चाहिए। यूरोप के ईसाइयों को हिन्दुओं के बारे में और इसी तरह हिन्दुओं को यूरोप के ईसाइयों के बारे में जानना चाहिए। अपने इसी उद्देश्य के लिए कार्य हुए हम हिन्दुत्व की ओर आकर्षित हुए।आप सभ्यताओं के बीच संवाद के अपने उद्देश्य में कितने सफल रहे हैं?हमें इसमें सफलता तो मिली है, पर अभी उतनी नहीं जितनी उम्मीद थी। उदाहरण के लिए, एक यहूदी के लिए हिन्दू या मुस्लिम से संवाद उतना मुश्किल नहीं है। लेकिन जर्मनी में, जहां कैथोलिक ईसाई हैं, मुस्लिमों के साथ संवाद एक समस्या है।क्या समस्या है?समस्या इस रूप में है कि इस्लाम को इस्लामवादी अपनी-अपनी परिभाषा देते हैं। कोई यह नहीं बताता कि असली इस्लाम क्या है। जर्मनी में भी इस्लाम के कई रूप दिखते हैं। जर्मनी में बड़ी संख्या में मुस्लिम नागरिक हैं। इनमें से एक वर्ग तो सबसे मिल-जुलकर रहना चाहता है। इससे किसी को कोई समस्या नहीं है। लेकिन एक दूसरा वर्ग सबके साथ मिलना नहीं चाहता। यही समस्या की जड़ है। हम अपने देश की पद्धति के अनुसार समरूपता चाहते हैं। उदाहरण के लिए, हमारा संविधान कहता है कि जर्मनी की भाषा जर्मन है। जो लोग जर्मन भाषा नहीं सीखना चाहते, सबके साथ घुलमिल नहीं सकते। दूसरे, हमारी परम्परा में पुरुष और महिला समान हैं। लेकिन जर्मनी के मुस्लिमों का एक वर्ग ऐसा नहीं मानता। मुस्लिम पुरुष किसी से मिलता है तो हाथ मिलता है, लेकिन मुस्लिम महिला नहीं। जो जर्मनी का नागरिक है, जिसे वहीं जीवन बिताना है, उसे हमारा संविधान मानना पड़ेगा, हमारी परम्पराओं को अपनाना होगा। इस दृष्टि से हिन्दुओं से हमें कोई समस्या नहीं होती, लेकिन मुस्लिमों के एक वर्ग से होती है। यह समस्या जितनी जर्मनी में है उतनी ग्रेट ब्रिटेन में है, फ्रांस में है, पूरे यूरोप में है।इस्लाम के नाम पर एक वर्ग जिहाद की बात करता है, आतंकवाद फैलाता है। इस पर आप क्या कहेंगे?सभी मुस्लिम आतंकवाद का समर्थन नहीं करते। जो कट्टरवादी मुस्लिम हैं, वे इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। मेरा मानना है कि मूलत: सभी मत-पंथ शांति का संदेश देते हैं।इस्लाम भी शांति का संदेश देता है, तो फिर आज दुनिया पर जिहाद, आतंकवाद का खतरा क्यों मंडरा रहा है?हां, आतंकवाद अमरीका या स्पेन के लिए ही नहीं, दुनियाभर के लिए एक बड़ा खतरा है। भारत के लिए भी यह एक खतरा है।जर्मनी में हिन्दू कितने हैं और क्या उनसे वहां कभी किसी तरह की समस्या उत्पन्न हुई?मेरा अंदाजा है कि जर्मनी में लगभग एक लाख हिन्दू होंगे। हमारी संस्कृति और परम्पराओं को हिन्दुओं से कभी कोई समस्या नहीं रही है। लेकिन आपको वास्तविक हिन्दुत्व की पहचान करनी होगी।हिन्दुत्व को आप संस्कृति मानते हैं या धर्म?कुछ लोग इसे जीवन दर्शन, जीवन-पद्धति मानते हैं और मैं कहता हूं कि जीवन दर्शन और धर्म में कोई अंतर नहीं है।हिन्दुत्व शांति की बात करता है, भाईचारे की, सहिष्णुता की, दोस्ती की बात करता है। क्या आप इससे सहमत हैं?यही सब ईसाई पंथ के संदर्भ में भी कहा जाता है। लेकिन ईसाई संस्कृति और हिन्दू संस्कृति में निश्चित ही अंतर है। मेरे अनुसार सभी एकेश्वरवादी पंथों की नींव आमतौर पर एक जैसी है। हां, अगर कहीं भिन्नता है तो उसके लिए संवाद होना चाहिए। हमें संस्कृतियों के बीच संवाद बढ़ाना चाहिए न कि आतंकवाद की बात करनी चाहिए। भविष्य की दृष्टि से यह आवश्यक है। अगर दुनिया के सभी देश संस्कृतियों में संघर्ष के विरुद्ध एकजुट हों तो हम संघर्ष की बात करने वालों पर काबू पा सकते हैं।क्या आपने गीता, रामायण, वेदों आदि का अध्ययन किया है?इनमें से ज्यादातर ग्रंथ मैंने पढ़े हैं। पर पढ़ना एक बात है और उन्हें समझना बिल्कुल अलग। जो लिखा है उसे आप पढ़ तो सकते हैं पर उसे समझने के लिए आपकी वैसी पृष्ठभूमि भी होनी चाहिए, इतिहास और परिस्थितियों की जानकारी होनी चाहिए।NEWS
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