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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ”स्त्री” स्तम्भ के लिए सामग्री, टिप्पणियां इस पते पर भेजें-“स्त्री” स्तम्भद्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य,संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटीजब भी सासबहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।वजीफे की राशिअपनी सासू मां के साथ श्रीमती विभा शर्मासास-यह शब्द सुनते ही एक गुस्सा करने वाली और तीखी नजरों वाली प्रौढ़ महिला की तस्वीर आंखों के सामने आती है। मैं भी जब शादी के बाद अपनी ससुराल पहुंची तो सास की ऐसी ही छवि मेरे अंदर भी व्याप्त था। चलते-फिरते, उठते-बैठते लगता था कि पता नहीं, कहीं मुझसे कोई चूक न हो जाए और मुझे सास की डांट पड़े। शुरुआत के कुछ दिनों तक तो मैं अपने आपको सहज नहीं पा रहा थी, परन्तु समय के साथ मेरा भय निराधार साबित हुआ। आज तक मेरी सासू मां ने मुझे डांटा तक नहीं है। कोई गलती हो जाने पर भी वह मुस्कुरा देती हैं बस। और उस मुस्कान का अर्थ मैं समझ जाती हूं।मेरी सासू मां श्रीमती रामसखी देवी बड़ी सुलझी हुई महिला हैं। अपने सिद्धान्तों के साथ वह कभी भी समझौता नहीं करती हैं। मैंने उन्हें कठिनतम परिस्थितियों में भी डगमगाते नहीं देखा है। आर्थिक तंगी में भी घर किस प्रकार सुचारू रूप से चलाया जाए, यह हमने उनसे ही सीखा है।मेरी तीन बेटियां हैं। पर जैसी कि बेटी की मां को सास का उलाहना सहना पड़ता है, वह उलाहना आज तक मुझे नहीं मिला है। मेरी बेटियों से मेरी सासू मां जितना प्यार करती है, उतना और कोई नहीं कर सकता।एक बार की घटना मुझे याद है। हम लोग बोकारो में रहते थे। दूसरी बेटी प्रज्ञा को पढ़ाई के लिए दिल्ली के एक छात्रावास में रखना था। इसलिए हम लोग सीतामढ़ी स्थित अपने गांव पहुंचे। वहां उन्हें हमारी बेटियों से ही पता चला कि प्रज्ञा के लिए वजीफे की राशि से कुछ सामान खरीदा जाएगा और वही सामान लेकर वह दिल्ली जाएगी। पहले तो उन्होंने सारी बात ध्यान से सुनी फिर तीनों बहनों को साथ बैठाकर समझाया कि मां-बाप अगर अपने पैसे से सामान खरीदकर न दें तो एक गठरी लेकर दिल्ली जाओ और खूब मन लगाकर पढ़ो। वजीफे के रूप में जो पैसा मिलता है, उसका खर्च पढ़ाई के लिए ही करो और यदि बचे तो उसे बचाओ, भविष्य में काम आएगा। यह सुनकर हमें उस समय तो कुछ अटपटा लगा पर बाद में उसका महत्व समझ में आया। उनकी सलाह पर ही जो भी राशि बची वह बैंक में सावधि जमा के रूप में डाल दी गई। अभी भी वह पैसा बैंक में है और एक बड़ी राशि हो चुकी है। अब मैं सोचती हूं कि अगर मेरी सास ने मुझे रास्ता न दिखाया होता तो मेरे बच्चे इतनी बड़ी राशि से वंचित रह जाते। सच ही है, बड़ों का स्नेह और आशीर्वाद बहुमूल्य होता है और जिसको वह प्राप्त हो, उसे सौभाग्यशाली ही माना जाना चाहिए। वास्तव में मैं अपने को सौभाग्यशाली मानती हूं कि मेरे जीवन को गढ़ने में मेरी सासू मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है।-विभा शर्मा1001, सनब्राीज “ए”, सेक्टर-5, वैशाली, गाजियाबाद-201010 (उ.प्र.)NEWS
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